सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

धन लक्ष्मी साधना एवं प्राप्ति के उपाय - पुस्तक (पेज न. 4)

                                           

                                                       पेज न. 4

                                      दीपावली पंचमहापर्वीय साधनाएँ                                
                                    धनत्रयोदशी साधना 

                       जैसा कि हम सभी जानते है कि धन त्रयोदशी के दिन आयुर्वेदाचार्य धनवंतरी जी का जन्म हुआ था, साथ ही धनाध्यक्ष कुबेर की पूजा-अर्चना का भी विशेष महत्व है। इसलिए इस दिन धनाध्यक्ष कुबेर लक्ष्मी की साधना का विशेष महत्व है, जिससे घर का खजाना भी सदैव हरा-भरा रहे।
                   
                         साधना सामग्री:-  कुबेर लक्ष्मी चौतीसा युक्त त्रिशक्ति यन्त्रम्, गौमती चक्र, अभिमंत्रित सरसो एवं मंत्रसिद्ध लक्ष्मी दायक मणिया।
                               इस साधना को संपन्न करने हेतु अपने मंदिर या पूजा कक्ष या घर के किसी भी कोने में तीन बाजोट स्थापित करे तथा उन पर लाल वस्त्र बिछाकर बायीं ओर बाजोट पर चावल से शुभ का चिन्ह (शुभ) बनाये तथा दायी ओर के बाजोट पर चावल से लाभ का चिन्ह अर्थात लाभ लिखे। फिर बाये ओर दाये वाले बाजोट के चारो कोनो में गेहूँ की छोटी-छोटी ढेरी बनाकर उन दोनों पर चार-चार तेल के दीपक प्रज्वलित करे व सभी दीपक में थोड़ी थोड़ी अभिमंत्रित सरसो डाले तत्पश्चात बायीं ओर वाले बाजोट पर जहाँ शुभ का चिन्ह लिखा है, उस पर बड़ा पीतल अथवा मिटटी के तेल का दीपक व दायी ओर वाले बाजोट जहाँ लाभ का चिन्ह लिखा है, उस पर भी पीतल या मिटटी का दीपक प्रज्वलित करे। तत्पश्चात मध्य के बाजोट पर चावल से श्री लिखे व् बाजोट के चारो कोनो में उड़द की ढेरी बनाकर उस प्राण प्रतिष्टा युक्त अभिमंत्रित एक एक गोमती चक्र विराजमान करे। उसके बाद एक शुद्ध चांदी या स्टील की थाली लेकर उसमे पुष्प का आसान बनाकर उस पर प्राण प्रतिष्ठा युक्त अभिमंत्रित कुबेर लक्ष्मी व चौतीसा युक्त त्रिशक्ति यन्त्र स्थापित करे तथा उसके चारो तरफ आपके घर के सोने-चांदी के सिक्को को भी थाली में यन्त्र के चारो ओर रख दे और यन्त्र पर मंत्र सिद्ध लक्ष्मी दायक मणिया स्थापित कर दे फिर उस पर सवा पाव पंचामृत द्वारा निम्न मंत्र का जप करते हुए अभिषेक करे-
            यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्यधिपतये धनधान्यसमृद्धि में देहि दापय स्वाहा।
               अभिषेक पूर्ण हो जाने के पश्चात् यन्त्र, सिक्के एवं मणियो को शुद्ध जल से स्नान करवाये तथा दूसरी शुद्ध चांदी या स्टील की थाली लेकर उसमे अष्टगंध से "श्री" का चिन्ह बनाकर, उस पर पुष्पो का आसन बनाकर मध्यवाले बाजोट पर रखे व उसमे त्रिशक्ति यन्त्रम्, सिक्के एवं मणियो को भी विराजमान करे। फिर हाथ में जल लेकर विनियोग करे। -
            अस्य श्री कुबेरमंत्रस्य विश्रवा ऋषि: बृहती छन्द: घनेश्वर: कुबेरो देवता ममाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोग।
                यन्त्र को विराजमान करने के बाद कुबेर का ध्यान करे -
                                       मनुजवाहमविमानवरस्थितं गरुड़रत्ननिभं निधिनायकम्। 
                                       शिवसखं कुमुकुरादिविभूषितं वरगदे दघतं भज तुन्दिलम्।।
               कुबेर का ध्यान करते हुए सभी सामग्रियों पर केसर-अष्टगंध द्वारा तिलक करे, अक्षत चढ़ाये, अबीर-गुलाल, पुष्प, नैवेध चढ़ाते रहे- ॐ श्रीं ॐ ह्नीं श्रीं ह्नीं क्लिं वित्तश्वराय नम:
                     मंत्र जाप पूर्ण हो जाने के बाद कुबेर जी का ध्यान करते हुए क्षमा प्रार्थना करे कि हे कुबेर देवता, मैने मन्त्रहीन, क्रियाहीन एवं बुद्धिहीन होकर जो पूजन किया है उसे स्वीकार करे। कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा करे तथा मुझे आशीर्वाद प्रदान करे कि मेरे घर में सदैव सुख समृद्धि एवं शांति रहे, चिराय़ू हो एवं आपकी कृपा दृष्टि सदैव बनी रहे। इस तरह कुबेर ध्यान एवं क्षमा प्रार्थना के पश्चात् नैवेद्म (प्रसाद) परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करे। सभी पूजन सामग्री यथास्थिति में रहने दे तथा अगले दिन रूप चतुर्दशी कि सांयकाल में उसी स्थिति में पूजा प्रारम्भ करे। कुबेर उपासना तथा ध्यान से दुःख दरिद्रा दूर होकर अन्नत ऐश्वर्य कि प्राप्ति होती है। शिव के सखा होने से कुबेर भक्त की सभी आपत्तियों से रक्षा कर साधक में आध्यात्मिक उन्नति, शांति, सौभाग्य आदि सात्विक गुण प्रदान करते है।

                                              रूप चतुर्दशी साधना 

                     सुख-सौभाग्यदायक कलश, लक्ष्मी प्रिय सिक्के, अभिमंत्रित हल्दी की गांठ एवं 11 लक्ष्मी दायक कौड़िया आदि साधना सामग्री तैयार रखे।
                     यह साधना रूप चतुर्दशी की शाम 07 से 09 के मध्य संपन्न करनी है। इस साधना को केवल स्त्रिया ही कर सकती है और पति इनके पास बैठकर हवन संपन्न कर सकते है।
                    सर्वप्रथम धन त्रयोदशी के दिन पूजित कुबेर लक्ष्मी चौतीस युक्त त्रिशक्ति यन्त्रं को अपने घर के पूजा कक्ष में स्थापित करे तथा उस पर सौभाग्यशाली मणिया भी यन्त्र पर स्थापित कर दे। साथ ही दाये व बाये बाजोट पर रखी सामग्रीयो को यथास्थिति में रहने दे और दोनों बाजोट के  दीपक बदलकर नए दीपक प्रज्ज्वलित करे एवं मध्य के बाजोट पर पूर्व की सामग्री हटाकर एक पात्र में रख दे तथा इस पर पुन: लाल वस्त्र बिछाकर उसके चारो कोनो में लाल मसूर की चार ढेरी बनाकर उस पर मंत्र चैतन्ययुक्त एक-एक हकीक पत्थर रख दे। फिर मध्य में चावल द्वारा स्वस्तिक चिन्ह बना ले। एक शुद्ध चाँदी या स्टील की थाली लेकर उसमे अष्टगंध, केसर या कुमकुम चावल और गुलाब की पंखुड़िया डाले और महालक्षमी से मन ही मन पति की दीर्घायु, सुख शांति, आर्थिक उन्नति एवं जो भी समस्या हो उसे दूर करने की कामना करे और मेरी साधना सफल हो "अहंकरिस्यामि" कहते हुए जल छोड़ दे। फिर अपने हाथश्शुद्ध जल से धोले। अब पीले चावल ले या हल्दी युक्त चावल की तीन मुठ्ठी थाली में डाले। बाद में थाली में सुख सौभाग्यर्धक कलश विराजमान करे तथा कलश के चारो ओर जो सिक्के धनत्रयोदशी की पूजा में रखे थे उन्हें भी चारो ओर रख दे। फिर कलश के अंदर लक्ष्मी प्रिय सिक्के डाले। उन पर केसर, कुमकुम से तिलक करे, अक्षत चढ़ावे, पुष्प नैवेद्य चढ़ावे फिर एक पात्र (कुण्ड) लेकर उसमे थोड़ी कपूर की टिकिया और अभिमंत्रित सिद्ध कमलगट्टे एवं हल्दी की गांठ उसमे डालनी है। फिर उन पर घी डालकर अग्नि प्रज्ज्वलित करे और निम्न मंत्र का उच्चारण करने के साथ साथ एक-एक कोडिया उसमे डालते रहे। चिंतन करे कि जैसे जैसे यह क्रिया संपन्न हो रही है, घर में व्याप्त दुःख, विपत्तिया, कष्ट एवं पति की सभी परेशानियां समाप्त हो रही है। मंत्र इस प्रकार है -
                                                           ॐ  ऐं  ऐं  अक्षय  लक्ष्मी  ऐं  ऐं  नम:।
                      इस मंत्र को 11 बार पढे और एक कौड़ी को अग्नि में डाले, फिर मंत्र को 11 बार पढ़े और एक कौड़ी अग्नि में डाले। यह प्रक्रिया दुहराकर सारी कौड़िया (11) अग्नि में डालनी है। साथ ही साथ घी व कपूर भी डालते रहे जिससे अग्नि निरंतर जलती रहे।
                      यह क्रिया संपन्न करने के पश्चात् माँ लक्ष्मी से आशीर्वाद मांगने की मुद्रा में प्रार्थना करे, तत्पश्चात सुख-सौभाग्यवर्द्धक कलश को अपनी तिजोरी में सिक्के सहित सादर विराजमान कर दे तथा बाकि बचे सिक्के पूजा कक्ष में रख दे। थाली में चावल लेकर घर के सभी कोनो में थोड़े-थोड़े डाल दे। कौड़िया पूर्ण रूपेण नही जलती इसलिये कौड़ियो को उठाकर अपने घर के उत्तर-पूर्व ईशान कोण में गड्ढा खोदकर गाड़ दे। काली हल्दी की राख को पूजा कक्ष या घर में रख दे तथा अगले दिन उसे अपने गले पर लगावे। ऐसा करने से पति की आयु में वृद्धि, पति-पत्नी में मनमुटाव ख़त्म तथा आर्थिक सुख समृद्धि एवं शांति प्राप्त होती है।

                                   विष्णु महालक्ष्मी साधना एवं पूजा  

              धन त्रयोदशी, रूप चतुर्दशी साधनाये प्रत्येक साक्षार व्यक्ति कर सकता है, विद्धान ब्राह्मण हो तो और भी अच्छा है, किन्तु दीपावली के दिन विष्णु महालक्ष्मी साधना और पूजा में विद्वान ब्राह्मण की आवश्यकता होती है। विद्वत् ब्रह्मण द्वारा की गयी साधना, पूजा-अर्चना ही श्रेयस्कर एवं फलीभूत होती है। दीपावली का दिन, जिसका सभी को वर्ष भर इंतजार रहता है प्रत्येक व्यक्ति माता लक्ष्मी का आशीर्वाद पाना चाहता है, किन्तु भगवान विष्णु को याद नही करता। कोई भी पत्नी अपने पति के बिना आपके यहाँ कैसे आएगी इसलिए दीपावली के विशेष अवसर पर माता लक्ष्मी के साथ शेष शैययाधारी भगवान विष्णु की पूजा करना अत्यंत आवश्यक है। इस दिन विष्णु-लक्ष्मी साधना  एवं पूजा संपन्न की जानी चाहिए।
                  साधना सामग्री:-  प्राण प्रतिष्ठित अभिमंत्रित विष्णु-लक्ष्मी प्रतिमा, अभिमंत्रित कमल पुष्प, सिंहासन, मंत्रसिद्ध माला, ब्राह्मण निर्देशित पूजन सामग्री, सौभाग्यदायक कलश, दीपक, शंख, कुबेर लक्ष्मी यन्त्र, बही रजिस्टर रोकड़ खाता, तराजू, लेखनी, दवात आदि।
                  साधना पूजा सामग्री:-  वैसे दीपावली की सम्पूर्ण रात्रि ही शुभ है, तथापि साधना-पूजा वृषभ एवं सिंह लग्न में करना सर्वश्रेष्ठ है। इसके लिए स्नानादि से निवृत होकर स्त्रिया लाल साड़ी एवं पुरुष श्वेत वस्त्र धारण करे। फिर दायी और बाये वाले बजट के मध्य में जहाँ शुभ और लाभ लिखा हुआ है, उस पर तांबे के कलश में पानी भरकर, उस पर अशोक वृक्ष के पत्ते लगाकर नारियल स्थापित करे तथा चारो ओर गेहुं की ढेरियों पर पुन: नए दीपक प्रज्ज्वलित करे और मध्य के बाजोट को पुन: साफ करके कपडा बिछा दे। तत्पश्चात मध्य के बाजोट पर चारो कोनो में चावल की ढेरिया बना दे और थाली लेकर उसमे पुष्प का आसन बनावे तथा उसमे मन्त्र चैतन्ययुक्त एवं अभिमंत्रित विष्णु लक्ष्मी प्रतिमा विराजमान करे तथा उनके आगे लक्ष्मी प्रिय कमल पुष्प रख दे।

                                       सांगपाग महालक्ष्मी पूजनम् 
                                             
                    पूजन की सामग्री विद्वान ब्राह्मण के निर्देशानुसार कटोरियों में रख देवे। केसर को घिसकर कटोरी में लेवे। कुमकुम का स्वास्तिक करे। उस पर कोरा तांबुल, सुपारी, मोली, गुड, धाणा, घ्रोब(पूर्वा), पैसा (मुद्रा) रखकर गदी बिछा देवे। फिर गदी पर यजमान बैठकर पूजन प्रारम्भ करे।
                   
                     शिखा (चोटी) बंधन करे:-      ॐ चिद्रुपिणी महाम्माये दिव्यतेज:समन्विते।
                                                                   तिष्ठ देवी शिखा बंधे तेजो वृद्धि: कुरुष्वमें।। ।।
                                           
                                                                   आचमन-प्राणायाम करे।
                                                                   फिर-ॐ अपवित्र: पवित्रोर्वा सर्वावस्थाडंगतोडपिवा।
                                                                   य: स्मरेतपुण्डरीकाक्षं स बाहयामभ्यवर: शुचि: क।। 2 ।।
                          इस मंत्र से वाम (बाया) हाथ में जल लेकर दाये (दक्षिण) हाथ से स्वयं एवं पूजा सामग्री पर जल के छींटे लगाने, श्री कृष्ण का ध्यान करने से अपवित्र भी पवित्र हो जाता है। इसके पश्चात् यजमान के ललाट में तिलक इस मंत्र से करे -
                                                        ॐ स्वस्तिना इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्तिन: पूषा विश्ववेदा:।
                                                        स्वस्तिनस्तारक्ष्र्यो अरिष्टनेमि: स्वस्तिनो बृहस्पतिद्रघतु:।। 3 ।।
                         
                             यजमान के कुमकुम तिलक करके अक्षत लगावे। पुरुष के दाये (जिमणे) हाथ व स्त्री के बाये (डावे) हाथ में मोली बांधे। सिर पर पगड़ी पहिने तथा या सिर पर मोली रखकर पूजन प्रारम्भ करे।

                           प्रथम नमस्कार करे:-  ॐ श्री मन्महागणाधिपतये नम:। इष्ट देवताओ नम: कुलदेवताभ्योनम:। ग्राम देवताभ्योनम:। स्थानदेवताभ्योन्म:। वास्तुदेवताभ्यो नम:। वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नम:। श्री लक्ष्मीनारायणाभ्याम् नम:। श्री उमामहेश्वराभ्याम् नम:। शची पुरन्दराभ्याम् नम:। मातृपितृचरण कमलेभ्यो नम:। श्री गुरुभ्यो नम:। परमगुरुभ्योनम:। परमेश्दी गुरुभ्योनम:। पराप्तरगुरुभ्यो नम:। सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम:। निर्विघन मस्तु।।
                         
              गणपति स्मरण:- 
                      ॐ समुखश्चेक दन्तश्च कपिलो गजकर्णक:। लम्बोदरश्च  विकटो विध्नाशोगणाधिप: ।। 1 ।।                             धुम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भाल चन्द्रो गजानन:। द्वादशे तानि नामानि य: पठेच्छ्रणुयादपि ।। 2।।
                      विधारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्वस्य न जायते ।। 3।।
                      शुक्लाम्बर धरंदेवं शशिवर्ण चतुर्भुजम, प्रसन्नवदनं ध्यायेत सर्वविघ्नोपशान्तये ।। 4 ।।
                      अभिसितार्थ सिद्धयर्थ पूजितो य: सुरासुरै:। सर्व विघ्न हरस्तस्मै गणाधिपतये नम: ।। ।।
                      सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।। ।।
                      सर्वदा सर्वकार्येषु नास्तितेषाममंगल येषा ह्रदिस्थो भगवान मंगलायतनं हरि।। ।।
                      तदैव लग्न सुदिनं तदैव ताराबलं चन्द्र बलं तदैव। विधाबलं दैव बलं तदैव लक्ष्मीपते तेंघ्रियुगं                           स्मराभी ।। ।।
                      लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषा पराजय:। येषामिन्दिवरश्यामो ह्रदयस्थो जनार्दन:।। 9 ।।
                      यत्र योगीश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्घर:। तत्र श्री विर्जयो भूतिधुर्वा नीतिर्मतिमर्म ।। 10 ।।
                      सर्वेष्वारब्ध कार्येषु त्रयस्त्रि भुवनेश्वरा:। देना दिशन्तुन: सिद्धि ब्रहमेशान जनार्दना ।। 11 ।।
                      विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्म विष्णु महेश्वरान। सरस्वती प्रणभयादौ सर्वकार्यार्थ सिद्धये ।। 12 ।।
                     अनन्यअश्चिन्तयन्तो माँ ये जना: पर्युपास्ते।तेषां नित्याभियुक्तानां योग क्षेम वहाभ्यम्।।13।।
                      स्मृते सकल कल्याण भाजन यत्र भाजते। पुरुष तमजं नित्यव्रजामि शरणं हरिम ।। 14 ।।
                      विश्वेशं माघवं ढुदीं दण्डपापी च भैरव। वंदे काशी गुहा गंगा भवानी मणिकर्णिकाम ।। 15 ।।
                     
          अथ संकल्प:-   ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्री मदभगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्री ब्रहमणोड द्वितीयेपराद्वेर श्री श्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुग कली प्रथम चरणे जम्बुद्विये भरत खण्डे आर्यावर्तान्तगर्त ब्रहमाव्रतकदेशे कुमारिका क्षेत्रे श्री मन्महान्ध भागीरथ्या: पश्चिम दिग्भागे श्री मन्नर्प विक्रमादित्य राज्यात अमुक वर्षे, अमुक सवत्सरे, अमुकअयने, अमुकऋतो, अमुकमासे, अमुक पक्षे, अमुकतिथौ, अमुकवासरे, एवमादि ग्रह्गुण विशेषण विशिष्टे देशेकाले, अमुक गोत्रोत्प्न्नोह, अमुक नाम, मम सकुटंबस्य सपरिवारस्य कायिक, वाचिका, मानसिक सांसर्गिक चतुर्विध पाप क्षयपूर्वक सर्वापच्छन्ति पूर्वक, पुत्र पौत्र धनधान्य समृद्धि दीर्घायु ऐश्वर्याभिवृद्धयर्थम मम भवने स्थिर लक्ष्मी निवासार्थ सर्वाभीष्ट संसिद्य़र्थ सर्वविध व्यापारे उत्तरोत्तर लाभार्थ, सुवर्ण रजत मणि माणिक्य सम्पदा अभिवृद्धार्थ महालक्ष्मी देवता प्री त्यर्थ महालक्ष्मया: पुजनमहं करिष्ये।
                           ( यहाँ करिष्ये- अपने लिए पूजा पाठ करते समय।  करिष्यामि- यजमान के लिए पूजा पाठ करते समय।  कारयिष्ये- ब्राह्मण द्वारा पूजा पाठ कराना हो तो कहना चाहिए। )

                          दिग रक्षण:-   अप्सर्यन्तु ते भुता ये भुता भूमि संस्थिता। ये भुता विघ्नकर्तारस्ते-नश्यन्तु शिवज्ञया ।। 1।।     चारो दिशायों में से सरसो के दाने फेंके।
                        भैरव नमस्कार:-  ॐ तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पान्त दहनोपम। भैरवाय नमस्तुभ्यं मनुज्ञा दातु मह्रसी।। 2 ।।    ॐ भं भं भैरवाय नम:। भैरव को नमस्कार करे।
                        कलश पूजनम:-   ॐ वं वं वरुणाय नम:, सर्वे समुद्रा: सरितसतीर्थानी जलदा नदा:। आयान्तु देव पूजार्थ दुरित क्षय कारक: ( सम्मुखस्थ कलश के मोली बांधे, पांच पान, सुपारी, दूर्वा, मुद्रा, अक्षत व जल से पुरितकर ऊपर पूर्ण पात्र, लाल वस्त्र से वेष्टित सेदुरूप नारियल रखे )  कलश के चारो दिशाओ में चार बिंदिया देते हुए बोले- ॐ पूर्वे ऋग्वेदाय नमः, दक्षिणे यजुर्वेदय नमः, पश्चिमे सामवेदय नमः, उतरे अर्थववेदय नमः। हाथ जोड़े- ॐ कलशस्य मुखे विष्णु: कष्टे रुद्र: समाश्रित:। मुले तत्र स्थितो ब्रहमा मध्ये मातृगणा: स्मृता।।1।।
 कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्रद्वीपा वसुंधरा। ऋग्वेदास्थ यजुर्वेद: सामवेदोहयथर्वण:।। 2 ।।
अङ्गेश्च सहिता: सर्वे कलशांतु समाश्रिता:। अत्रगायिनी सावित्री शांति: पुष्टि करी तथा ।। 3 ।।
आयान्तु मम शान्त्यर्थ द्रितक्षय कारका:। गंगे च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधि कुरु ।। 4।।
ब्रह्माण्डोडरतीर्थानि करै:। स्प्रस्टानी ते रवे। तेन सत्येन में देव तीर्थ देहि दिवाकर।। 5।। ( आस्मिंकलशे वरुण सांडगं सपरिवार सायुध सशक्तिम आवाहयामि )
                          कलश प्रार्थना:-   देवदानव संवादे मध्यमाने महोदधौ। उत्पन्नोडसी तदा कुम्भ विघ्रतो विष्णुना स्वयं। त्वतोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वेत्वयि स्थिताः। त्वयि तिष्ठन्ति भूतानी त्वयि प्राणा: प्रतिष्ठिता:। शिव स्वयं त्वमेवाड़सी विष्णुस्त्वं च प्रजापति:। आदित्य वसवो रूद्र विश्वेदेवा: सपत्रक:। त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेपि यतः कामफल प्रदा:। त्वत्प्रसादाद इमा पूजां कर्तुमिदे जलोदभ्व। सानिध्य कुरु में देव प्रसन्नो भव सर्वदा। प्रसन्नोभव। वरदोभव (कलश का जल पूजा के लिए पंचपात्र में या अन्य पात्र में कुछ ले लेवे व् उस जल से भी छींटे डालकर प्रोक्षण करे। यजमान के सम्मुख दक्षिण दिशा को छोड़कर पाटा बिछाकर या अष्टदन बने कोष्ठक के बिच में कलश को स्थापित कर सकते है। कलश के मध्य सेंदरूप नारियल की पूजा कर लाल या पीला कपडा वेष्टित कर कलश के ऊपर रखे, ताम्बूल, पीपल या अशोक वृक्ष के पत्ते, कुमकुम अक्षत एवं पुष्पादि से पूजा कर सिक्का भी कलश में डाले।
                          दीप पूजनम्:-   भो दीपदेवी रूपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्राविहनकृत। यवतकर्म समाप्ति: स्यात तावतवं सुस्थिरो भव ।। 1 ।।
                          शंख पूजनम:-   शंखादौ चन्द्रदेवतयं कुक्षेवरुण देवता। पृष्ठे प्रजापतिश्चैव अग्रे गंगा सरस्वती। त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि वासुदेवस्य चाज्ञया। शंखे तिष्ठन्ति विरपेन्द्र तस्मशंख प्रपूजते। त्वं पूरा सगरोत्पन्नो विष्णुना विघ्रता करे। निर्मितः सर्वे देवैश्च पांचजन्य नमोस्तुते। ॐ पांच जनयाय विदभहे पावमानय धीमहि। तन्न: शंख प्रबोदयत। (शंख के चन्दन, पुष्प चढ़ावे)
                          घंटा पूजनम:-   आगमनार्थ तु देवानां गमनार्थ च रक्षसां। कुरुघंटे वरं नादं देवता स्थान सन्निघौ। प्रार्थना के बाद घण्टा बजाये और यथास्थान रख दे ( घण्टा को चन्दन-फूल से अलंकृत कर उक्त मंत्र पडे )
                         ॐ भूभुर्वः स्व: घन्टास्थापय गरुड़ाय नमः आवाहयामि। सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि नमस्करोमि।
                          इसके पश्चात् स्वस्ति पुष्याहवाहन भी करना चाहिए।
                           स्वस्त्ययन-  ॐ आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतोड़दबदासो अपरितस उद्विद:। देवा नो यथा सदमिद वृधे असन्नप्रयुवो रक्षितारो दिवे दिवे।।
                             देवना भद्रा सुमतिॠजूयतां देवना छुं रातिरभि नो निवर्तताम। देवानां छुं सख्यमुपसेदिभा वयं देवा न आयु: प्रतिरन्तु जीवसे।। तनपूर्वया निविदा हुम्हे वयं भंग मित्रमदिति दक्षमस्त्रिधम्। अर्यमण वरुण छुं सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत।। तन्नो वातो मयो भु वातु भेषज तन्मता पृथिवी तत्पिता ह्यो:। तद ग्रावान: सोमसुतो मयोभुवस्तदशविना श्रृणत घिषया युवम्।। तभीशान जगतस्तुसथुशासपति घीयनजीनवभव्से हुम्हे वयम। पूषा नो यथा वेदसांसद व्रघे रक्षिता प्युर्दब्ध स्व्स्तये।। सवस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति नस्ताश्रयों अरिष्टनेमी स्वस्ति नो बृहस्पतिदर्घातु।। प्रषदश्वा मरुत: प्रश्नीमातर: शुभ यावानो विद्थेषु जगमय:। अग्निजिह्म मनव: सुरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह।।भद्र कर्णेभी: श्रृनुयाम देवा भद्र पश्येमाक्षभीर्यजत्रा:। स्थिरेरडगेस्तुष्टुवा घू सस्तनूभिवर्यशेमहि देवहित यदायुः। शतमिभु शरदो अंति देवा यत्रा नश्चक्रा जरस तनूनाम। पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्य रिरिश्तायुगन्ति:। अदितिगौरधितिरन्त्रिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्र:। विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिरजातमदितिरजनितवं।। घौ: शान्तिरन्तरिक्ष घूं शांति: पृथिवी शान्तिराप:  शांतिरोषिधय: शांति। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवाः शांतिब्रह्म शांतिः सर्व घुश्शन्ति: शान्तिरेव शांति: सा मा शान्तिरेधि।।यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु। शं नः कुरु प्रजाभ्योडभय नः पशुभ्य:।। सुशान्तिर्भवतु।।
                          संक्षिप्त पुन्यहवाहनम:-   यजमान बोले- ब्रह्मा पुण्य महर्यच्च सृष्टय़ुत्पादनकारकम्।                                                                              वेद वृक्षोदवं नित्यं तत्पुन्याह ब्रुवन्तु नः।
                                                                   भो ब्राह्मणा: मम सकुट्मबस्य स परिवारस्य गृहे लक्ष्मी
                                                                   पूजन कर्मण: पुण्याहं भवन्तो ब्रुवन्तु।
                                                                   ब्राह्मण- ॐ पुण्याहं, ॐ पुण्याहं, ॐ पुण्याहं।
                                                                   ॐ पुनन्तु मा देवजना: पुनन्तु मनसाधिय:।                
                                                                   पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेद: पुनिहिमा।।
                                           यजमान बोले:-  पृथिव्यामुद्घ्रताया तु यत्कल्याण पुरा कृतम।
                                                                    ऋषिभि: सिद्धगन्धवेस्तत्कल्याण ब्रुवन्तु नः।
                        भो ब्राह्मणा: मम सकूटमबस्य सपरिवारस्य गृहे लक्ष्मीपूजन  कर्मण: कल्याण भवन्तो ब्रुवन्तु।                          ब्राह्मण:-  ॐ कल्याणम्, ॐ कल्याणम्, ॐ कल्याणम्
                                        ॐ  यथेमा वाचं कल्याणमावदानी जनेभ्यः। ब्रह्मराजन्याभ्या घू शूद्राय चार्यय च स्वाय चरणाय च। प्रियो देवना दक्षिणाये दतुरिह भूयासभयं में कामः समृध्यतामुप मादो नमतु
                                           यजमान बोले:-   ॐ सागरस्य तू या ऋद्विर्महालक्ष्मयादिभि: कृता।
                                                                     संपूर्णा सुप्रभावा च तां च ऋद्वि ब्रुवन्तु नः।।
                       भो ब्राह्मणाः मम सकुट्मबस्य सपरिवारस्य गृहे महालक्ष्मीपूजन कर्मण: ऋद्वि भवन्तो ब्रुवन्तु।
                          ब्राह्मण:-  ॐ कर्म ऋध्यताम, ॐ कर्म ऋध्यताम, ॐ कर्म ऋध्यताम
                              ॐ सत्रस्य ऋद्विरस्यगनम ज्योतिरमृता अभूम। दिव पृथिव्यां अध्याडरूहामाविदाम देवान्त्स्वज्योर्ति:
                                           यजमान पुनः बोले:-  ॐ स्वस्तिस्तु याडविनशाख्या पुष्यकल्याणवृद्विदा।
                                                                            विनायकप्रिया नित्यं तां च स्वस्ति ब्रुवन्तु नः।
                       भो ब्राह्मणा: मम सकूटमबस्य सपरिवारस्य गृहे लक्ष्मीपूजन  कर्मण: स्वस्ति भवन्तो ब्रुवन्तु।
                         ब्राह्मण:-  ॐ आयुष्मते स्वस्ति, ॐ आयुष्मते स्वस्ति, ॐ आयुष्मते स्वस्ति
                               ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति नस्ताश्रर्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।
                                            यजमान बोले:-  ॐ समुद्रमथानाज्जता जगदानन्दकारिका।
                                                                     हरिप्रिया चा मांगल्या तां श्रिय च ब्रुवन्तु नः।
                        भो ब्राह्मणा: मम सकूटमबस्य सपरिवारस्य गृहेकरिष्यमाणस्य महालक्ष्मी पूजनकर्माण: श्रीरस्तु इति भवन्तो ब्रुवन्तु।
                         ब्राह्मण:-  ॐ अस्तुश्री:, ॐ अस्तुश्री:, ॐ अस्तुश्री:
                                ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्योवहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनो व्यातम्। इषणन्निषाणाभु म ईशाण सर्वलोक म ईशाण।
                                            यजमान बोले:-  ॐ मृकण्डसूनोरयुर्यद ध्रुवलोमश्योस्तथा।
                                                                     आयुषा तेन संयुक्त जीवेम शरदः शतम।।
                         ब्राह्मण:-  ॐ शतम जीवन्तु भवन्त:, ॐ शतम जीवन्तु भवन्त:,
                                        ॐ शतमिन्नु शरदो अंति देवा यत्रा नच्चक्रा जरसं तनूनाम।
                                        पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषताय़ुर्गान्तो:।।
                                           यजमान बोले:-  ॐ शिवगौरी विवाहे तु या श्री रामे नृपात्नजे।
                                                                    घनदस्य गृहे या श्रीरस्माकं सास्तु सञनि ।।
                     
                        ब्राह्मण:-  अस्तु श्री:, अस्तु श्री:, अस्तु श्री:।
                                         ॐ मनसः काममाकूति वाच: सत्यमशीय ।
                                         पशुना घूं रूपभन्नस्य रसोयश: श्री: श्रयता मयि स्वाहा ।।
                                                 यजमान पुन: बोले:-  प्रजापतिर्लोकपालो घाता ब्रह्मा च देवराट।
                                                                                 भगवान्छाश्रवतो नित्यं स नो रक्षतु सर्वत:।
                                                                                 योडसो प्रजापति: पूर्वे य: करे पदमसम्भव:।
                                                                                 पदभा वै सर्वलोकानां तन्नोडस्तु प्रजापते ।।
                       पश्चात् हाथ में जल लेकर छोड़ दे और कहे:- भगवान प्रजापति: प्रियताम्।
                         ब्राह्मण:-  ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा रूपाणि परिताबभूव।
                                          यत्कामास्ते जुहमस्तभो अस्तुवय घूं स्याम पतयो रयीणाम ।।
                                                 यजमान बोले:-   आयुष्मते स्वस्तिमते यजमानाय दाशुषे।
                                                                           श्रिये दताशिष: सन्तु ऋत्विग्भिर्वेद पारगे:।।
                                                                           या स्वस्तिर्ब्राह्मणो भूता या च देवे व्यवस्थिता।
                                                                           धर्मराजस्य या पत्नी स्वस्ति: शांति: सदा मम।।
                                                                           देवेन्द्रस्य यथा स्वस्तिर्यथा स्वस्तिरगुरोरगृहे।
                                                                           एकलिंगे यथा स्वस्ति तथा स्वस्ति सदा मम।।
                       ब्राह्मण:-   ॐ आयुषमेत स्वस्ति, ॐ आयुषमेत स्वस्ति, ॐ आयुषमेत स्वस्ति
                                         ॐ प्रति पन्थामपदनहि स्वस्तिगामनेहसम।
                                         येन विश्वा: परि दिषो वृणक्ति विदंते वसु।।नत्
                                         ॐ पुण्याहवाहन समृद्धिरस्तु।।   
                                                  यजमान बोले:-    अस्मिन् पुन्यहवाहन न्यूना तिरिक्तो योविधिरूपविष्ट ब्राह्मणानां वचनात श्री महागणपति प्रसादच्च परिपूर्णेडिस्तु।
                    दक्षिणा संकल्प:-   कृतस्य पुण्याहवाहनकर्मण: समृद्धयर्थ पुन्यहवाहकेभयो ब्राह्मणेभ्य इमां (जितनी दक्षिणा देनी हो) दक्षिणा विभज्य अहं दास्ये।
                     ब्राह्मण:-  ॐ स्वस्ति।
आगे पाटे या बर्तन में अभिमंत्रित प्रतिष्ठा युक्त गणेश जी , चाँदी आदि के सिक्के , अभिमंत्रित विष्णु लक्ष्मी प्रतिमा , महालक्ष्मी श्री यन्त्र , कुबेर यन्त्र आदि को व्यवस्थित रखकर मंत्रो के द्वारा गंधाक्षत , पुष्पादि से पूजा करे।
गणपति पूजनम :- ॐ गं गणपतये नम : । ॐ गजवक्त्र गणाध्यक्ष सर्व विघ्न विनाशन:। लम्बोदर त्रिनेत्राढ़य आगच्छ गणनायक ।। 1 ।। ॐ गणनंतवा गणपति घू हवामहे प्रियानांतवा प्रियपति घू हवामहे निधिनान्त्वा निधिपति घू हवामहे वासो मम । आहमजानि गर्भधभत्वाभजासि गर्भधम। ॐ भूर्भुव : स्व: ऋद्धि सिद्धि : लक्ष लाभ सहित गणपते इहागच्छ इहातिष्ठ । ॐ श्री ही  क्लीं ग्लौ गं गणपतये नम: गणपतिभावाहयामी स्थापयामि। ( दूध , दही , घी , शहद और शक्कर से स्नान कराकर , शुद्ध जल से स्नान कराकर कुमकुम , केशर या चन्दन का तिलक गंधाक्षत एवं पुष्प चढ़ावे तथा धूप दीप नैवेद्य फल तथा ताम्बुल चढ़ाकर प्रार्थना करे -
                            नमस्ते ब्रम्हरूपाय विष्णु रूपाय ते नम: ।
                            नमस्ते रूद्ररूपाय करिरूपाय ते नम: ।
                            विश्वरुपस्वरूपाय नमस्ते ब्रम्हचारिणी।
                            भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक।।
                           अनेन कृत पूजनेन सिद्धि बुद्धि सहित : श्री भगवान गणाधिपति : प्रियन्ताम्।
                            एक आचमनी जल निर्माल्य पात्र में छोड़ दे।
लक्ष्मी आह्वाहनम् :-  या श्री स्वयं सुकृतिनां भुवनेश्व लक्ष्मी : पापात्मनां कृतधियां ह्रदयेषु बुद्धि :। श्रृद्धा सतां कुलजन प्रभवस्य लज्जा , ता त्वां नता : स्म् परिपालय देवी विश्वम।  श्री आवाहयामि , ॐ श्रीं हीं क्लीं लक्ष्मिरागच्छागच्छ मम मन्दिरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा।  ॐ श्रीं हीं क्लीं श्रीं सिद्ध लक्ष्मयै नम: । ॐ श्रीं हीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री हीं श्रीं महालक्ष्मयै नम : ।
अर्थ: ध्यानम:-   या सा पद्नासनस्था विपुलकटितरि पदमपत्रायताक्षी गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता                                  शुभ्रवस्त्रोतशिया
                         या लक्ष्मिर्दिव्यरुपेमणिगणखचितै: सापिता हेमकुम्भै:
                         स नित्यं पदमहस्ता मम वास्तु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता ।।
ॐ अम्बेडमभीकेभ्वालिके नमा:, क्लिं महालक्ष्मी, श्री महालक्ष्मी हीं महासरस्वती सहित महालक्ष्मी आवाहयामि स्थापयामि। आवाहनार्थे आसनार्थे कमलादि पुष्पाणि समर्पयामि। पूजयामि।                       विष्णु का ध्यान एवं पूजन करे:-   शान्ताकारं भुजग शयनं पदमनाभं सुरेशं, विश्वधर गगन सदृशं मेघवर्ण शुभाडगम। लक्ष्मीकान्त कमल नयन योगिभिर्ध्यान गम्य, वन्दे विष्णु भवभय हरण सर्वलोक नाथम ।।1।।
                                                  आवह्येत गरुडोपरि स्थित, रमार्ध देह सुरराजवन्दितम्। कंसंतक चक्रगदाब्ज हस्त भजामि देव वासुदेव सुनुम ।।2।।
 ॐ विष्णोरराटमसि विष्णो: शनप्रे स्थो विष्णो: स्युरसि विष्णोधरवोडसि। वैष्णवमसि विष्णवे त्वा ।। देवदेव जगन्नाथ भक्तानुग्रहकारम्। चतुर्भुज रमानाथ विष्णुभावाहयाम्यहम्। ॐ नारायणाय विदभहे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु: प्रचोदयात ।। वैकुण्ठलक्ष्मी सहित विष्णो आवाहयामि, स्थापयामि ।। पूजयामि ।। गंधाक्षत, फल-पुष्पर्ण समर्पयामि।
    शिव:-   ऐ हयेहि गौरीश पिनाकपाणे शशांक मौले वृषभाधिरूढ़। देवाधि देवेश महेश नित्यं ग्रहणा पूजा भगवान नमस्ते ।।1।। ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवाय धीमहि । तन्नो रूद्र : प्रचोदयात ।। 2 ।। ॐ नम: शम्भवाय च रुद्रकालशोपरि रूद्र आवाहयामि , स्थापयामि , पूजयामि।  गंधाक्षत , फल - पुष्पाणी समर्पयामि।
    सूर्य :-  आवाह्यन्तं द्धिभुजं दिनेश सप्ताश्ववाहनं धुमणि ग्रहेशम।
                सिंदूरवर्ण प्रतिमावभासं भजामि सूर्य कुलवृद्धिहेतो ।। 2 ।।
                ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्य च।
                हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।
नवग्रह स्मरण - पूजन :-  ॐ ब्रह्मभुरारि स्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशि भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुकः शनि राहु केतवः सर्वेग्रहा शान्तिकरा भवन्तु। (नौ सुपारी लेकर कुंकुमादि लिकर कर गंधाक्षत पुष्प फलादि समर्पित कर अष्ट-नवदलादि कोष्टकों में रखे। नवग्रहो को नमस्कार करे।)
नवग्रह सहित:-  ॐ  सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुरवे नमः, ॐ शुक्राय नमः, ॐ शनैश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः,ॐ केतवे नमः आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि।
इन्द्र:-  ऐरावत समारुढो व्रज हस्तो महाबल:। शतयज्ञाधिपो देव स्तस्मै इन्द्रय ते नमः।। स्वर्ग लक्ष्मी सहित इन्द्रम आवाहयामि स्थापयामि, पूजयामि।
कुबेर पूजा:-  तिजोरी या गल्ले में स्वस्तिक करे। कुबेर यन्त्र की स्थापना करे। पान पर सुपारी, हल्दी गंठिया, धनिया, कमलगट्टा, सिक्का, रूपये आदि रखे फिर मंत्र बोले- ॐ आवाहयामि कुबेरत्व मिहायही कृपा करन। कोष वर्दक नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।    कुबेरत्व धनाधीश गृह्यते कमलस्थितां। ता देवी प्रेषयाशु त्वं मद्गृहे ते नमोनमः।।  धनदाय नमस्तुभयं निधि पद्भाधिपय च। भगवंतु त्वत्प्रसदनमे धन धान्यादि सम्पदः।।    ॐ श्री वित्तेश्वराय, कुबेराय आवाहयामि स्थाप्यमि।।   इष्टदेवता कुल देवी देवताध्यान, आवाहयामि स्थापयामि पूजयामि च।
  फिर आचमनी से जल चढ़ावे:-  पादयोः पद्म समर्पयामि।  हस्यो अध्र्य समर्पयामि, मुखे आचभनीय समर्पयामि। सर्वागे स्नानीय समर्पयामिगङगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदा जले:। स्नापितोडसी मायदेव तथा शांति कुरुष्व में।।  पंचामृत स्नानं समर्पयामि-पयोदधि घृत चैव मधु च शर्करायुतम्। पंचामृत मयनित स्नानार्थ प्रतिग्रहयतम।।  शुद्धिदक स्नानं समर्पयामि (इद मत्र वस्त्र, पुष्प, धुप, दीप, नैवेध दक्षिणा, समर्पयामि।
 अमृताभिषेक:-  यहां गणपति अथर्वशीर्ष, पुरुष सूक्त, श्री सूक्त आदि किसी भी मंत्रो से दुग्धधारा, पंचामृतदी से गणपति, सिक्को, विष्णुलक्ष्मी प्रतिमा, श्री यन्त्र पर अभिषेक करे।
  श्री सूक्त से अमृताभिषेक-पूजा सम्मुचय में न्यास क्रम:-    हिरण्यवणाम…....  मुघ्न।  ताम्र आवह…… नत्रमा।  अश्वपुर्णमी…… कर्णयो।  कंसोस्मितम्……नाशिकयों। चन्द्रा प्रभासाम……  नाभो। मनस: कामना  .... गुह्ये। कर्दमेन…… आपाने।  आये: सृजन्तु  ….... ऊर्वो। आद्र यः करणीय.......  जंवो। आद्र पुष्कर्णिम .......  जंघयो:। तोम आवह …… पड्यो। यः ष्षुचि…… सर्वगड़े।  1. आछान- ऑन हिरण्यवर्णा हरिणी सुवर्ण रजतरत्रजाम। चन्द्र हिरण्यमयी लक्ष्मी जातवेदो म आवह।। इस मंत्र से महालक्ष्मी जी का आह्वान करे।      2. आसान- तामडआवह जातवेदो लक्ष्मी मनपजमिनीम्।  यस्य हिरण्य विन्दे गामश्व पुरुषानहम।। इस मंत्र का आसान समर्पण करे। 3. पाधम- अश्व पूर्णा रथमध्यां हस्तिनद प्रमोदिनीम्। श्रिय देवीमुपह्वये श्री माँ देवीजुशतम।। इस मंत्र से पाध समर्पण करे। 4. अधर्य- ॐ कांसोस्मिता हिरण्य प्रकारमर्दा ज्वलन्तीं तृप्ता पात्यन्तिम। पधे स्थित पढ़वर्ण तमिहोपहवये श्रियम।। इस मंत्र से अध्र्य दे। 5. आचमन- ॐ चन्द्रा प्रभास यश सा ज्वलन्तीं श्रीय लोके देवजुष्टा मुदारम। तां पढ़िनिमि  शरनं प्रप्ध्ये अलक्ष्मीम्रे नशयतात्वावृणोमि।। इस मंत्र से आचमन करावे। अन्नतर पंचामृत से स्नान करावे। 6.  स्नान- ॐ आदित्यवर्णे तपसोधिजातो वनस्पतित्व वृक्षोडथ बिल्वः। तस्य फलानि तपसानुदन्तु मयन्त्रायतश्च बाह्या ड अलक्ष्मी।। इस मंत्र से स्नान करावे। 7.  वस्त्र- ॐ उपैतु मा देवसख: कीर्तिश्च मणिना सहु। प्रादुभूतो सुराष्ट्रेस्मिन कीर्ति वृद्धि ददातुमे।। इस मंत्र से वस्त्र चढ़ावे। 8.  उपवस्त्र- ॐ क्षुप्तिपसामला ज्येष्ठमलक्ष्मी नश्यभीहम। अभूतिमसमृद्धि च सर्व निर्णुद में गृहात।। इस मंत्र से कंचुकी(चोली, ब्लाउज) चढ़ावे। 9. गंध- ॐ गंध द्वारा दुराधर्षां नित्यपुष्टां कृषिनीम्। ईश्वरी सर्वभूतानां तामिहोपहाये क्ष्रीयम।। इस मंत्र से इत्र चन्दन चढ़ावे। 10.  सौभाग्यद्रव्य- ॐ मनसः काममाकुति वाचः सत्यमशीमहि। पशुना रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयता यशः।।इस मंत्र से सौभाग्यद्रव्य(सुहाग चाबड़ा) सिंदूरदी चढ़ावे। 11.  पुष्प- ॐ कर्धभेन प्रजा भुता मयि सम्भ्रम कर्धां। श्रिय वसायमे कुले मातरे पधमलिनीम्।। इस मंत्र से कमल पुष्प चढ़ावे। 12.  धूप- ॐ आप: स्त्रजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वसु में गृहे। निचदेवी मातर श्रिय वासमये कुले।। इस मंत्र से धुप बत्ती दिखावे। 13. दीप- ॐ आद्रा पुष्करिणी पुष्टि सुवर्ण हेममलिनीम्। सूर्य हिरण्यमयी लक्ष्मी जातवेदो ममावह।। इस मंत्र से दीपक दिखावे। 14. ॐ यःशचि प्रयतो भुत्वा जुहूयदाज्यमनवहम। सूक्त पंचदश्र्चच श्री कामः सतत जपेत।। इस मंत्र से नमस्कार करे। पश्चात् यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रिया दीषु। न्यून सम्पूर्णता याति सद्यो वन्द्र तमच्युतम्।। इस मंत्र को कहकर तीन बार ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः। कहे। पश्चात् लक्ष्मी सूक्त का पाठ करे।
  लक्ष्मी सूक्तम:-  सरसिज निलये सरोजहस्ते धवलतरा शुकगंधमाल्य शोभे। भगवती हरिवॉल्भभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरी प्रसिद्ध मह्यम।। धनमग्निर्धनवयु धनसूर्यो धनवासु:। धनमिन्द्रो ब्रहस्पतिर्वरुन धनमष्विनो।। वैनतेय सोम पिबसोभ पिबतु वृत्रहा। सोम धनस्य सोमनो महय ददातु सोमिनः।। धुप अग्रयामी। दीप दर्शयामि। नैवेध निवेदयामि। नैवेध मध्ये पानीयम। ॐ प्रणय स्वाहा, ॐ पानाय स्वाहा, ॐ उदानाय स्वाहा, ॐ व्यानाय स्वाहा, ॐ साभानाय स्वाहा। दि आचमन, उतरपोशन, हस्तप्रक्षालन, मुख प्रक्षालन, आचमनीय च समर्पयामि। मुख वासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि। पुंगीफल महदिव्य नागवल्ली दलेर्युतम्। एलाचूर्णादि संयुक्त ताम्बूल प्रतिगृह्यतां।। फलम समर्पयामि। दक्षिणा समर्पयामि (इस प्रकार नवग्रहादि का भी साथ में पूजन कर ले।)
  इसके पश्चात् महाकाली मसि पात्र (दवात) एवं कलम ले मौली बांधकर कुमकुम से पूजा करे:-  ॐ महाकल्ये नमः। ॐ कलिकेतवं जगन्मात मसिरूपेणावर्तते। उत्पन्न त्वं च लोकानां व्यव्हार प्रसीदये।। ॐ लेखनी निर्माता पूर्व ब्रह्मणा परमेष्ठिना। लोकाना च हितार्थाय, तस्माता पुज्यभयहम्।।
 बही रजिस्टर रोकड खाता पूजनम:- महासरस्वती स्वरूप बहियो में स्वस्तिक (साखिया) करे। सादा पान, गुड, धनिया, चावल, मौली आदि रखकर पूजन करे। ॐ वीणा पुस्तक धारिण्यै नमः। पंजीके सर्वलोकानां निधिरूपेण व्रतसे अतस्त्वां पूजयिष्यामि व्यवहारस्य सिध्ये।। बहियो में श्री गणेशाय नमः लिख कर दिनांक संग्रदी, मासादि लिखे।
ध्यान करे:- ॐ या कुन्देन्दुतुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता। या वीणा वरदण्ड मण्डितकरा या श्वेत पढासना। या ब्र्ह्माच्युतशंकर प्रभृतिभीदेवे: सदा वन्दिता। सा मा पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड़सा पहा।।
 तुला (तराजू) पूजन:- तराजू के मौली बांधकर, स्वस्तिक बनाकर पूजन करे। (यह उन व्यवसायियों के लिए है, जो तराजू का उपयोग करते है )
                     ॐ तुलाये नमः। ॐ नमस्ते सर्वदेवानां शक्तिस्तवेसत्य मश्रिता। साक्षी भुता जगद्धात्री निर्मिता                        विश्वयोनिना।।
  दीपमालिका (दीपक) पूजन- प्रथम दीप ज्योति करे:- किसी पात्र में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपक प्रज्ज्वलित करे, मंत्र बोले- त्वं ज्योति द्रीप ज्योति: स्थित नमः। महालक्ष्मी के समीप उक्त दीपो को रखकर ॐ दीपवत्यै नमः इस नाम मन्त्र से गन्धादि उपचारो द्वारा पूजन करे। दीपमालिकाओं का पूजन कर अपने आचार के अनुसार संतरा, ईख. पानी फल, धान का लावा आदि चढ़ावे। धान के लावे (खिल) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी देवताओ को समर्पित करे। अंत में एक बड़ा दीपक लक्ष्मी जी के सम्मुख रखकर अन्य दीपो से घर को अलंकृत करे। बहार पटाखे छोड़े एवं लक्ष्मी जी के सम्मुख अंदर धूपिये पर अग्नि ज्योति प्रज्वलित करे। फिर सभी घर के सदस्य अधोलिखित ह्रदयस्पर्शी लक्ष्मी प्रार्थना जो रमलशास्त्री पं शंकरलाल जी (पद्मसागर) द्वारा लिखी गयी थी, सस्वर पाठ करे। हो सके तो इस लक्ष्मी स्तुति को कंठस्थ कर ले। नित्य पढ़ सकते है किन्तु दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के पश्चात् इसका अत्यंत भाव के अनुसार पाठ करना चाहिए। महालक्ष्मी जी का प्रसन्न होना सुनिश्चित है।

                                                    यहाँ तक चतुर्थ चरण समाप्त होता है।  
                     
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