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लक्ष्मी का निवास कहाँ ?
जो मनुष्य धर्मशील, जितेंद्रिय, विनम्र पर दुःखकातर, भक्त, कृतज्ञ और उदार है। सदाचारी, बड़े-बुढो कि सेवा में तत्पर, पुण्यात्मा, क्षमाशील एवं बुद्धिमान है। जो दानपुण्य, गुरुपूजा-देवपूजा नियमित करता है। त्याग, सत्य और शौच उनका भूषण है। जो स्त्रिया गुरु-भक्ति एवं पति परायणा है, जिनमे क्षमा, सत्य, इंद्रिय संयम, सरलता, घीरा, प्रियवादिनी, लावण्यमयी एवं सुशीला है। जो देवताओ एवं ब्राह्मणो में श्रद्धा रखती है और जो कलहहीन है। जिस घर में हमेशा यज्ञ, होम होता है। देवता गौ, और गुरु-ब्राह्मणो की पूजा होती है। वहाँ लक्ष्मी का निवास होता है। इसके अलावा- आंवला, फल, गोबर, शंख, शुक्लवस्त्र, चन्द्र, महेश्वरी, नारायण, वसुंधरा, उत्सव, मंदिर इन स्थानो में लक्ष्मी का स्थायी निवास है।
लक्ष्मी का निवास नहीं- जो मनुष्य पापकर्मरत, ऋणग्रस्त या अतिशय कंजूस, कटुभाषी, कलहकारी हो। जो व्यक्ति कन्या, आत्म और वेद विक्रय करता हो। जो माता-पिता, आर्या, गुरु-पत्नी, गुर-पुत्र, अनाथाभगिनी, कन्या और आश्रयरहित बांधवो का पोषण प्रदाता न हो और जिसके दांत गंदे, मलिनवस्त्र, सूखा मस्तिष्क तथा हास्य विकृत है। जो सायं शयन, पूर्ण नग्नशयन, दिन में स्त्री का संसर्ग बहुभक्षी, निष्ठर और झूठ बोलता हो। पराया अन्न, परायी नार, पराया वस्त्र और पराया वाहन पर बुरी नजर रखता हो। जो आलसी, क्रोधी, कृपण, व्यसनी, अपव्ययी, दुराचारी, अदुरदर्शी और अहंकारी हो। वहाँ लक्ष्मी नही रहती। माँ लक्ष्मी को चोरी, दुर्व्यसन, अपवित्रता और अशांति से घृणा है।
लक्ष्मी को क्या है सर्वाधिक प्रिय ?
सौभाग्य एवं ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी को पुष्पो में सर्वाधिक प्रिय कमल का फूल है। कमल सौभाग्य का प्रतीक है और उस पर विराजमान देवी लक्ष्मी सौभाग्यदामिनी है अत: उनका सम्बन्ध कमल से अनिवार्य प्रतीत होता है। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार लक्ष्मी को कमल से उत्पन्न माना जाता है, इसलिए इसे पदमजा कहा जाता है। सृष्टि को प्रारम्भ करने का श्रेय भी कमल को जाता है। काव्य तथा श्रृंगार में भी कमल को भरपूर प्रसिद्धि मिली है। समस्त जल पुष्पो में कमल ही श्रेष्ठ है। वेदो के अनुसार रक्तिम, श्वेत एवं नील कमल क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश के प्रतीक माने गए है। कमल भारतीय धर्म, दर्शन एवं संस्कृति का सन्देश वाहक है। संसार रूपी कीचड में उत्पन्न होते हुए भी कमलवत् (असंसारी) रहो यही कमल का सन्देश है। यह सात्विक पुष्प है लक्ष्मी को सर्वाधिक प्रिय है।
लक्ष्मी के स्थायित्व के सात कल्प
कहां है- "पुरुष पुरातन की वधु क्यों न चंचला होय"। पुरुष पुरातन यानि विष्णु की पत्नी अर्थात लक्ष्मी चंचला है। या यह भी कि बूढ़े व्यक्ति की युवा पत्नी चंचल क्यों नही होगी। लक्ष्मी कभी भी एक स्थान पर टिक कर नही रहती। किन्तु लक्ष्मी की स्थायी प्राप्ति के इन सात अमूल्य अलौकिक कल्पो के सहारे हम लक्ष्मी की स्थायी कृपा प्राप्त कर सकते है। प्रत्येक सनातन धर्मी और जो लक्ष्मी के स्थायी निवास की कामना रखते है, उनके लिए लक्ष्मी के प्रिय सात कल्प आवश्यक है।
एकाक्षी नारियल
सामान्यत: नारियल की जय उतारने पर टहनी की ओर तीन काले बिंदु दिखाई पड़ते है। मान्यता है कि दो बिंदु नेत्रो के एवं एक बिंदु आँख का प्रतीक है। लक्ष्मी सूक्त (यज्ञवक्लयाचार्य) में कहा गया है- संसार में सब कुछ सुलभ है, किन्तु एकाक्षी नारियल दुर्लभ है। संस्कृत में कहा है- दुर्लभ स्फटिकं हारं, दुर्लभ पारदंशिवं।
दुर्लभो वपु एकाक्षी नालिकेश्च दुर्लभम् अर्थात स्फटिक मणियो की माला, पारद शिवलिंग तथा एकाक्षी नारियल संसार में अत्यंत दुर्लभ है। विष्णु पुराण में तो कहा गया है कि जिसके घर में मन्त्र सिद्ध, प्राण प्रतिष्ठित एकाक्षी नारियल है, उसके घर में स्थायी रूप से अटूट लक्ष्मी का निवास रहता है। दीपावली पर जो व्यक्ति लक्ष्मी मूर्ति के समक्ष एकाक्षी नारियल रखकर उसकी पूजा करता है, उसके जीवन में धन-धान्य का अभाव रह ही नही सकता। इसे सुंघाने मात्र से स्त्री गर्भ के कष्ट से मुक्ति पा लेती है तथा सरलता से प्रसव होता है। जिस घर में यह नारियल होता है वहां तांत्रिक प्रभाव बेअसर होता है। एकाक्षी नारियल प्राण प्रतिष्ठित, लक्ष्मी मंत्रो से अभिमंत्रित तथा रूद्र मंत्रो से अभिषेशित होना चाहिए। यह कार्य प्रत्येक साधक के लिए असम्भव है अत: उसे अपने गुरु से ही यह विशिष्ठ नारियल प्राप्त करना चाहिये।
कनकधारा यन्त्र
यह यन्त्र अत्यंत दुर्लभ, परन्तु लक्ष्मी प्राप्ति के लिए रामबाण है। यह यन्त्र दरिद्रतानाशक एवं ऐश्वर्य प्रदान करने वाला है। यह अदभुत यन्त्र तुरंत फलदायी है, परन्तु इसकी प्राण प्रतिष्ठा उतनी ही दुःसाध्य है अत: सिद्धहस्त गुरु द्वारा ही इसे प्राप्त करना चाहिए।
यदि आप बेरोजगार है या कई प्रकार के व्यवसाय कर हार चुके है अथवा गृहस्थ जीवन में आर्थिक अभाव है तो यह यन्त्र विशेष फलदायी है। शीघ्र धन प्राप्ति के लिए कनक धारा साधना विशेष प्रभावी है।
यदि कनकधारा यन्त्र के सामने बैठकर आदिशंकराचार्य कृत कनकधारा स्त्रोत का पाठ किया जाए जो तुरंत फलदायी होता है। मनुष्य अपने कर्ज से छुटकारा पता है। अचानक धन का आगमन होने लगता है। कनकधारा यंत्र एवं कनकधारा स्त्रोत अत्यंत प्रभावी है और स्वानुभूत है।
श्री यन्त्र
श्री यन्त्र सम्बधित आख्यान है कि एक बार लक्ष्मी अप्रसन्न होकर बैकुण्ड धाम चली गयी। इससे पृथ्वी पर हाहाकार व्याप्त हो गया। चारो ओर के लोग धराधाम पर दीन-हीन होकर इधर-उधर घूमने लगे। तब ब्राह्मणो में श्रेष्ठ वशिष्ठ ने बैकुण्ठ में जाकर लक्ष्मी से पृथ्वी पर आने की प्रार्थना कि। माँ लक्ष्मी किसी भी स्थिति में भूतल पर आने को तैयार नही हुई। तब वशिष्ठ ने अनंत श्री विष्णु की आराधना कि। श्री विष्णु प्रसन्न हुए एवं वशिष्ठ को साथ लेकर लक्ष्मी के पास गए और उन्हें मनाने लगे किन्तु लक्ष्मी ने द्रढ़ता से कहा मै किसी भी स्थिति में पृथ्वी पर नही जाऊंगी। खिन्नमना वशिष्ठ खाली हाथ पुन: पृथ्वीलोक लौट आये एवं लक्ष्मी के निर्णय से सबको अवगत करा दिया। सभी किंकर्तव्यमूढ़ थे कि अब क्या किया जाये ? तब देवताओ के गुरु बृहस्पति ने कहा कि अब तो मात्र एक ही उपाय है- श्री यन्त्र कि साधना। यदि श्री यन्त्र को स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा एवं पूजा कि जाए तो लक्ष्मी को अवश्य आना पड़ेगा। ऋषि महर्षियो ने गुरु बृहस्पति के निर्देशानुसार श्री यन्त्र का निर्माण कर एवं उसकी मंत्रादि से प्राण प्रतिष्ठा कर दीपावली से दो दिन पूर्व यानि धनतेरस को स्थापित कर शोडषोपचार से विधिवत पूजन किया। पूजा समाप्त होते ही लक्ष्मी वहां उपस्थित हो गयी और कहा श्री यन्त्र ही तो मेरा आधार है और इसी कारण मुझे यहाँ आना पड़ा। श्री यन्त्र में लक्ष्मी की आत्मा वास करती है, इसी कारण से इसे यन्त्र राज कहते है। दीपावली की महानिशा रात्रि को लक्ष्मी पूजन के समय इसकी पूजा-अर्चना तथा "ॐ श्रीं हीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं हीं श्रीं ॐ महालक्ष्मै नम:" मंत्र की 11 माला तथा श्री सूक्त का पाठ अवश्य करना चाहिए।
दक्षिणावर्ती शंख
यह शंख समुंद्र में पैदा होता है. जहा लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ।
इस दृष्टि से एक ही पिता की संतान होने से यह शंख लक्ष्मी का लघु भ्राता कहलाता है। विश्व के समस्त जल जन्तुओ में यही एक मात्र शंख है, जो कुरूप होने पर भी सर्वाधिक पूज्य और मान्य है।
जो व्यक्ति इस शंख को प्राण प्रतिष्ठित युक्त अभिमंत्रित कर पूजा घर में स्थापित करता है,उस घर में लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है सामन्यत सभी शंख बायीं तरफ से खुले रहते है, लेकिन बहुत कम शंख ऐसे भी होते है जो दायी ओर खुले हो। दायी ओर से खुले शंख की ही महता है। इसे ही दक्षिणाव्रती शंख भी कहते है।
कुबेर कलश एवं श्रीफल
कुबेर धन सम्पत्ति के अधिपति है और देवताओ के कोषाधिपति है उनकी साधना देवता भी करते है। कुबेर में लक्ष्मी का वास है और सुख समृद्धि एव सम्पदा के प्रतीक है। अत: लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कुबेर कलश एवं श्री फल ही विशिष्ठ कल्प है। आर्थिक उन्नति, व्यापारिक सफलता एवं स्थायी धन सम्पति प्राप्ति के लिए धन त्रयोदशी की रात्रि अथवा दीपावली रात्रि में अभिमंत्रित कुबेर कलश एवं श्री फल को स्थापित करना विशेष शुभ फलदायी है। जिससे आपके धन सम्पति का खजाना हमेशा कुबेर के खजाने की तरह भरा रहेगा। लक्ष्मी का स्थायी निवास रहेगा। वास्तव में वह घर सौभाग्यशाली है जहाँ कुबेर का स्थायी निवास, अर्थात धन की कमी नहीं है।
लक्ष्मी चरण पादुका
माँ लक्ष्मी की कृपा दृष्टि हेतु लक्ष्मी चरण पादुका एक सुनहरा कल्प है। जहाँ जहाँ लक्ष्मी के चरण होंगे वहाँ सुख, समृद्धि का निवास होगा। लक्ष्मी के स्थायी निवास के लिए लक्ष्मी चरण पादुका का विशेष महत्व है। बशर्ते वह अभिमंत्रित, सिद्ध एवं मन्त्रचेतनय युक्त हो। प्राण प्रतिष्ठा के बिना चरण पादुका का कोई महत्व नही। अत: दीपावली की शुभ रात्रि पर विशेष रूप से अभिमंत्रित लक्ष्मी स्वरुप चरण पादुका को अपनी तिजोरी, पर्स या पूजन कक्ष में स्थापित कर लक्ष्मी के स्थायी वास का संकल्प करे।
श्वेतार्क गणपति
सफ़ेद आकड़े का पौधा दुर्लभ है। यह लाखो करोडो पौधो में से एक आध पौधा सफ़ेद रंग का होता है। इसी श्वेत आर्क की जड़ को सावधानी से निकालकर, ऊपरी परत को कई दिन तक पानी में भिगोए रखने के बाद उस पर गणेश जी का उभरा चित्र दिखाई देगा। अथवा सफ़ेद आर्क से बने गणपति की महिमा भी अपरम्पार है। जिस परिवार में श्वेतार्क गणपति की नित्य पूजा होती है, उसके यहाँ जीवन भर धन-धान्य एवं समृद्धि का अटूट भंडार रहता है यह स्वानुभुत है।
सच तो यह है कि धन बिना जीवन व्यर्थ है। और धन की देवी लक्ष्मी है। वह जिस जिस कल्प में विधमान है, प्रत्येक गृहस्थ का उस कल्प को पाने और साधना करने की आवश्यकता है। कहा भी है- धनात् धर्म ततो जय: यानि धन से धर्म हो सकता है और धन से सांसारिक भवबंधन से विजय निश्चित है। इस सन्दर्भ में यह जानना-समजना आवश्यक है कि लक्ष्मी कहां रहती है और कहां नहीं रह पाती।
यहाँ तक तृतीय चरण समाप्त होता है।
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