
पेज नं 5
महालक्ष्मी स्तुति
अरे माता। लक्ष्मी मम गृह अलक्ष्मी द्रुत हरो
हरो माँ भव बाधा त्रिविध दुःख दूर अति करो
करो ना माँ देरी तुरंत मम टेरी हिय घरो
घरो पाणी मेरे शिर पर भवानी न बिसरो।।1।।
प्रतिज्ञा है तेरी शरण जन रक्षा करण की
इसी आशा पे मै शरण तव आयो भगवती
दया कीजे देवी शरम रख लीजे जगत में
नहीं तो लाजेगो विरद तुमरो सिंधु तनये।।2।।
यथा भाँति अंबे सुर भुवन मध्ये तुम बसो
बसो हो माँ जेसे हरि सहित बैकुण्ठ भुवने
पयोधि में माता सहस्त्र फणशायी युत यथा
उसी भाँति अंबे जगदम्बे तुम बसो।।3।।
बिना तेरे विधा विनय युत पाण्डित्य पदभी
नहीं शोभा पावे सकल गुण संपन्न जन भी
तुम्ही से है सारा सुयश उजियारा जगत में
बड़ायी दानयी अकल हुशियारी हर जगे।।4।।
पिता माता भ्राता भगिनी सुर दारादिक सबे
कृपा दृष्टि तेरी बिन कदर कोई न करते
जहाँ देखू तेरा विमल यश गाते सब जणे
उसी कि है शोभा जिस घर सदा वास तव है।।5।।
यथा बच्चा जच्च स्तन बिन न पाता कल जरा
सहारा जी का सलिल मछली को जिस तरा
जहा में कोई भी पवन बिन जिन्दा न रहता
उसी भाँति सत्ता तुमरी बिन पत्ता न हिलता।।6।।
कदाचारी कमी कलह प्रिय, क्रोधी। कुकरमी
कुबुद्धि, काकाक्षी, कुटिल, कुलघाती क्रतधनी
कुजाति, कुख्याति, शुभनजर तेरी पडत ही
जहा में हो जाता अदब करने योग्य झटही।।7।।
गृहस्थी की गाड़ी अटकी रह जाती तुम बिना
दिली बाते सारी दिल ही रह जाती तुम बिन
सिठाई सेठो की, नृपति ठकुराई न चलती
बिना तेरे मैया मनुज तनहे कौन गिनती।।8।।
पुराणो वेदो में सब जगह गाथा यह सुनी
तुम्ही है सारो की शिर मुकुट शोभा मयमणि
न आदि मधान्त पर अपर विधा इक तुम्ही
तुम्ही आदिमाता सत चित सुखानन्द लहरी।।9।।
मुनि विधारण्य प्रथम घर में थे निरधनी
परंतु माँ तेरे पद रज सहारे सिध हुए
सुनैये वर्षा की अखिल कर्नाटकक नगरी
भगाई सारो की बल पर तुम्हारे भुखमरी।।10।।
निशाना साधे जो तरुतल शिकारी गगन में
उड़े ऊंचा बाज, झपट चकवा को पकड़ने
अहो! माया तेरी विषधर डसा व्याध शर से
मरा पक्षी राजा निबल चकवा यो बच गया।।11।।
पड़ा मै भी ऐसा निबल चकवा सा विपद में
बचाने वाला माँ तुम बिन दिखाई न पड़ता
चलूँ अच्छी रीती तदापि फजीती, तुम बिना
सभी विधा, बुद्धि, सद्गुण सदाचार रद है।।12।।
रमे पद्मे लक्ष्मी प्रणत प्रतिपाली कर दया
न देखो माँ मेरी करणी, निज सोचो विरद को
बुरा हु तो भी माँ तनय तुमरा हु, विपद में
बचावो माँ आवो, तुरंत धन भंडार भर दो।।13।।
भरोसे पे तेरे कर गरव हे मात! सहसा
अवज्ञा की मैने सुर नर मुनीन्द्रादि सब की
सुनेगी ना मेरी अगर विनती ये दुःख भरी
कहाँ पे जावुंगा शरण किसकी माँ भगवती।।14।।
खड़े होना बाजु धवल युग हस्ती घट लिए
करे हिरा मोती मणि जलभिषेक सतत ही
करो में है तेरे युग कमल मुद्रा वर अभे
नमस्कार दामोदर जनतद्रिरिद्र दलिनी।।15।।
महालक्ष्मी का स्तवन नित भक्ति पढ़े
कभी वाके नहीं रहत घर में धन्य धन की
दरिद्री भी पाता विपुल धन कीर्ति जगत में
मनोवांछा सिद्धि मिलत सुख सरे सहज ही।।16।।
दीवाली को लक्ष्मी विधि सहित पूजा कर पुनः
सूती जो ये गाता गद गद गिरा रैन सगदी
दयालु माता का वरद कर ताके सर फिरे
सुखी होवे, खोवे विपद जग जंजाल सगरे।।17।।
दोहा
हरिवयरी जग जीवनी सुखदायिनी संसार।
"शंकर" की यह प्रार्थना माँ कीजे स्वीकार।।
और नहीं आधार मम जाऊ किसके द्वार।
तुझसी चौदह भुवन में है न बड़ी सरकार-1 ।।
पारब्रह्म की लाड़ली सब कुछ तेरे हाथ।
फिर विलंब क्यों तोरजन, तड़पत है दिन रात।।
आवो माँ आवो तुरंत, अब मत देर लगाव।
संग में ले रिध सिध धनद मोरे घट झट आव-2 ।।
इसके पश्चात् घी के दीपक व कपूर से आरती करे। ॐ कर्पूर गौरं करुणावतारं, संसारसरं भुजगेन्द्रहारम। सदा वसंत ह्रदयार विन्दे, भवं भवानि सहितं नमामि।। इसके बाद लक्ष्मी जी की आरती करे। पश्चात् आरती व धूप ज्योति का वंदन करे। देवाभिवन्दन, आत्मभिवन्दन, हस्त प्रक्षालन, मन्त्र पुष्पांजलि समर्पयामि- हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करे-
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यसन। ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे सध्या: सन्ति देवाः।। ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नभव्यम् वेश्रवणाय कुर्महे। स में कामान मध्य कामेश्वरो वेश्रवणा ददातु।। कुबेराय वेश्रवणाय महाराजाय नमः।
ॐ स्वस्ति साम्राज्य भोज्य स्वराज्य वै राज्य परमेष्ठय राज्य महाराज्यमधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात सार्वभौम: सार्वायूशान्तादपरार्धात् पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताय एकरदिति तदप्येष श्रलोकोडभिगीतो मरुतः परिवंशतारो मरुत्तस्यावसन गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेवीखेदेवाः सभासद इति।।
ॐ विश्वतश्चक्षुरुत: विश्वतोमुखे विश्वतोबहुरत विश्वतसपात। सं बाहुभ्यां धमति स पतत्रैर्धावभूमि जनयन देव एकः। ॐ एकदंताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नोदन्ति प्रचोदयात। ॐ तत्पुरुषाय विदनहे नारायणाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात।
ॐ महालक्ष्यै च विदन हे विष्णुपत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः। पुष्पांजलि समर्पयामि। क्षमा प्रार्थना:- मंत्र हीनं क्रियाहीनं, भक्ति हीनं सुरेश्वरी। यत्पूजित मयादेवी परिपूर्णम् तदस्तु में।।1।।
त्वमेव विधा द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वँ मम देव देव।।2।।
यजमान को आशीर्वाद:- ॐ श्रीर्वचस्व मायुष्य मारोग्य, माविधाश्चोभमान महयते। धन धान्य पशु बहुपुत्र लाभं शतसंवत्सर दीर्घमायुः।।3।।
ठडंता चावल गडंता शत्रुः (चावल उडा देवे।)
पूजन सामग्री को यथा स्थिति में रहने दे। प्रसाद ग्रहण कर ले। घी-तेल के दो बड़े दीपक रात भर जलते रखे। प्रातः काल भौर वेला में शुभ समय में गणेश, लक्ष्मी जी को चिरस्थायी निवास करने का निवेदन करके गणपति, सिक्को को तिजोरी में रखे। त्रेलोक्य पूजिते देवी कमले विष्णु वल्ल्भे। यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा।।1।। कमला चंचला लक्ष्मीश्चला भूतिर्हरि प्रिया। पद्मा पद्मालया सम्पद उच्चै: श्री पदमधारिणी।।2।। दादशे तानि नामानि लक्ष्मी संपूज्य यः पढ़ेत। स्थिर लक्ष्मी भर्वेत्स्य पुत्रदरादिमी: सह। लक्ष्मी त्वं सुस्थिरा भवः। प्रसन्नो भवः।।3।। महालक्ष्मीजी को पूजा कक्ष में सुस्थिर करे। कुबेर यंत्र को गल्ले में अन्य श्रीयंत्रादि कि नित्य पूजा करे।
न्वग्रहादि विसर्जन:- यांतु देवगणा सर्वे पूजामादाय मामकिम। इष्ट काम समधर्थ पुनरागभ्नायच।।4।।पूजन के जल का सर्वत्र छिटकाव करे। पूजन का सारा उपस्कार ब्राह्मण को देकर, दक्षिणा, प्रसाद आदि से संतुष्ठ करे।
लक्ष्मी प्राप्ति के विविध प्रयोग
नागरखंड के अनुसार जो श्री सूक्त द्वारा भक्ति से श्री लक्ष्मी देवी का पूजन करता रहेगा वह सात जन्म तक निर्धन नहीं रहेगा।
विष्णु धर्मोतर पुराण का मत है कि जो व्यक्ति की सूक्त का भक्ति से पाठ या हवन करता है, उसकी दरिद्रता नष्ट हो जाती है।
मेरुदण्ड के अनुसार दरिद्रता नाशक कलिकाल में मात्र श्री सूक्त का जप ही है।
लक्ष्मी सहस्रनाम से पुष्पो का चढ़ाना व् पुरुष सूक्त के साथ संपुट प्रयोग का भी उल्लेख है। लक्ष्मी के साथ विष्णु पूजन भी आवश्यक है। बिना पति के पत्नी पराये घर में क्यों स्थिर होवे ? अतः विष्णु लक्ष्मी पूजन के पश्चात् विष्णु सहस्त्र नाम व गोपाल सहस्त्र नाम का भी पाठ करना चाहिए।
दीपावली के हदन महालक्ष्मी आदि सभी देवो की सपत्नीक पूजन करके वेदपाठ के साथ कमल पुष्पादि सुख शय्या बिछाकर सुला देना चाहिए।
व्रतराज में कहा है- न कुर्वन्ति नरा इत्थं लक्ष्म्या ये सुख सुप्तिकाम।
धन चिंता विहीनस्ते कथं रात्रौ स्वपन्ति हि।।
सारांश यही है कि जो व्यक्ति कमलो की सुख शय्या पर लक्ष्मी जी को सुलाता है, उसके घर को छोड़कर लक्ष्मी नही जाती।
श्री सूक्त से पूजा अर्चना करने से समस्त ब्राह्मण जाती भी लक्ष्मी के दरिद्रता के श्राप से मुक्त हुई थी। आख्यान इस प्रकार है महर्षि मृगु द्वारा सहनशीलता एवं क्षमा की परीक्षा में जहाँ बृह्मा, रुद्रदेव असफल हो चुके थे वहाँ भगवन विष्णु सफल घोषित हुए थे। महर्षि मृगु बिना पूर्व सुचना के शयनागार में प्रविष्ठ हुए जहाँ भगवन विष्णु लक्ष्मी के साथ विराजमान थे। महर्षि मृगु ने आव देखा न ताव भगवन विष्णु के वक्ष:स्थल पर पदाघात कर दिया। भगवन विष्णु ने अपने श्वसुर के पदो को सहलाते हुए कहा- मेरी वज्रकर्कश छाती से आपके कोमल चरणो को चोट तो नही लगी? हे ब्राह्मण देव! आज आपने अतीव अनुग्रह किया। आज मै कृतार्थ हो गया। आपके दिव्य चरणो की रज सदा सर्वदा मेरे ह्रदय पर अंकित रहेगी। किन्तु लक्ष्मी जी यह दृश्य देख सहन नहीं कर सकी, उसका अंग प्रत्यंग आक्रोश से भर उठा। पति के अपमान से आहत हो अपने पिता को शाप दे डाला। "हे ब्राह्मण आपका घर एवं अन्य सभी ब्रह्मणो के आवासो का आज से मै परित्याग करती हूँ।" लक्ष्मी के श्राप के बाद पिता (भृगु) ने पुत्री (लक्ष्मी) को बहुत मान-मनुहार की किन्तु टस से मस नही हुई। आखिर में उन्होंने श्री सूक्त से लक्ष्मी की दिव्यस्वरूप की स्तुति की। लक्ष्मी जी प्रसन्न हुई कहा दीपावली की रात को जो ब्राह्मण या साधक इसका पाठ एवं हवन करेगा उस पर लक्ष्मी प्रसन्न होगी। ब्रह्मणो के घरो में शांति एवं समृद्धि दोनों बनी रहेगी। श्री सूक्त का पाठ लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए रामबाण है।
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