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प्रिय मित्रो,
आज से पण्डित एन. एम. श्रीमाली जी द्वारा रचित पुस्तक "लक्ष्मी साधना एवं प्राप्ति के उपाय" का हमारे द्वारा प्रकाशन किया जा रहा है। आज से प्रत्येक दिन हमारे द्वारा इस पुस्तक के कुछ अंश आप सभी मित्रो तक पहुचाये जायेंगे। आशा है की यह पुस्तक आप सभी के लिए लाभप्रद एवं उपयोगी सिद्ध होगी।पंडित जी का प्रयास रहा है, इस पुस्तक के माध्यम से आप सभी को अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त हो। आज हम इस पुस्तक का प्रथम अंक प्रकाशित कर रहे है।
।। श्री गणेशाय नमः ।।
दीपावली पर्व
श्री महालक्ष्मी साधना-पूजा
(यन्त्र-मंत्र प्रयोग पद्धति)
महालक्ष्मी प्राप्ति के अचूक उपाय
साधना एक दुरूह कार्य है। यह श्रद्धा एवं संपूर्ण विश्वास के साथ की जाती है तभी फलीभूत होती है। कभी कभी साधक को साधना का फल नही मिलता है तथापि उसे इसे करते रहना चाहिए। जो साधनाएँ इस पुस्तक में उदधृत है, वे पुराने ग्रंथो से ली गयी है अतः प्रामाणित है साधनाओं की सफलता या असफलता के मूल में साधक का सामर्थ्य एवं श्रद्धा शक्ति मुख्य रूप से प्रभावक रहती है। अतः साधना की विफलता के लिए प्रकाशक लेखक या संपादक उत्तरदायी नहीं है।
पुस्तक के संबंध में वाद विवाद की स्थिति में जोधपुर (राज.) न्यायालय ही मान्य होगा।
अनुक्रमाणिका
1. धन कि देवी लक्ष्मी
2. दीपावली पर्व से संबंधित संदर्भ एवं आख्यान
3. पंच दिवसीय उत्सव चक्र
4. धन्नवतरी कथा
5. लक्ष्मी पूजन कथा
6. लक्ष्मी का निवास कहा ?
7. लक्ष्मी का निवास कहा नही ?
8. लक्ष्मी को क्या है सर्वाधिक प्रिय
9. लक्ष्मी स्थायित्व के सात कल्प
एकाक्षी नारियल
कनकधारा यन्त्र
श्री-यन्त्र
दक्षिणावृति शंख
कुबेर कलश एवं श्रीफल
लक्ष्मी चरण पादुका
श्वेतार्क गणपति
10. दीपावली पंच महापर्वीय साधनाये
धन त्रयोदशी साधना
रूप चतुदर्शी साधना
विष्णु-महालक्ष्मी साधना एवं पूजा
सांगपाग महालक्ष्मी पूजनम्
11. महालक्ष्मी स्तुति
12. लक्ष्मी प्राप्ति के विविध प्रयोग
13. श्री-यन्त्र
14. श्री महालक्ष्मी यन्त्र
15. कुबेर यन्त्र-मंत्र
16. कनकधारा यन्त्र-मंत्र साधना
17. लक्ष्मी प्राप्ति के कुछ सिद्ध यन्त्र
18. धन प्राप्ति कारक यन्त्र
19. समृद्धिदायक बीसा यन्त्र
20. श्री लक्ष्मी बीसा यन्त्र
21. ऋद्धि सिद्धि प्राप्ति यन्त्र
22. श्री महालक्ष्मी यन्त्र एवं उपासना
23. लक्ष्मी पिरामिड
24. लक्ष्मी प्राप्ति के कुछ सिद्ध मंत्र
25. लक्ष्मी कमला मंत्र
26. महालक्ष्मी मंत्र
27. श्री मंजु घोष प्रयोग
28. दशाक्षर लक्ष्मी मंत्र
29. कनक दक्षिणी साधना
30. स्फटिक शिवलिंग प्रयोग
31. दक्षिणावृति शंख कल्प
32. कमलगट्टा माला प्रयोग
33. कांतियुक्त शांतिग्राम साधना
34. गौरी शंकर रुद्राक्ष
35. स्फटिक मणिमाला प्रयोग
36. शाबर मंत्रो से लक्ष्मी प्राप्ति
37. बिक्री बढ़ाने का मंत्र
38. व्यापार वृद्धि मंत्र
39. धन प्राप्ति मंत्र
40. मनोकामना सिद्धि मंत्र
41. व्यापार बाधा निवारक मंत्र
42. सम्मोहन मंत्र
43. शत्रु सम्मन मंत्र
44. अनवरत धन प्राप्ति मंत्र
45. कामना प्राप्ति मंत्र
46. विवाह बाधा निवारक मंत्र
47. बाधा निवारक मंत्र
48. दीपावली पर लक्ष्मी प्राप्ति के टोटके
49. लक्ष्मी प्राप्ति हेतु यह भी कीजिये
50. ज्योतिष शास्त्र में श्री धनदात्री श्रीविष्णु को प्रसन्न करने के उपाय
51. लक्ष्मी प्राप्ति के सामान्य सूत्र
52. फेंगशुई से सौभाग्यशाली बनने के सरल उपाय
धन की देवी लक्ष्मी
लक्ष्मी को धन का प्रतीक माना गया है। धन की महिमा अपरम्पार है। समस्त आश्रमो की सम्पूर्ण संतुष्टि का आधार धन है। बिना पैसे उच्च विधाध्ययन नही, बिना द्रव्य के गृहस्थाश्रम भार स्वरुप है। जिसके घर में दो जून की रोटी नसीब नही होती है उसके लिए दान की बात दूभर है। वानप्रस्थ एवं सन्यास अवस्था में भी परोपकारार्थ धन की आवश्यकता होती है। दुनिया में सभी लेन देन धन यानि मुद्रा के माध्यम से होता है। हमारी क्रयशक्ति का आधार भी धन ही होता है सोना-चाँदी, हीरे-मोती भी धन ही है, ये सब प्रकार की सुख-सुविधाएँ जुटाने के माध्यम मात्र है। रोटी-कपडा-मकान की मूलभूत जरूरत से लेकर अंतहीन चाहत भी धन यानि लक्ष्मी पर टिकी होती है। सभी प्रकार के विकास के पीछे धन का ही हाथ होता है। ज्ञान, चरित्र, श्रम को भी धन की उपमा दी गयी है, लेकिन इनका उपयोग भी धन कमाने के लिए किया जाता रहा है। धन बहुत बड़ी ताकत है, जिसे नकारा नही जा सकता। संस्कृत में सुभाषितानि है-
यस्यास्ति वितं स नर: कुलीन
स पंडित: स श्रुतवान् गुनग्य
स एव वक्ता स च दर्शनीय
सर्वेगुणा कांचन माश्रयन्ते ।।1।।
अर्थात जिसके पास धन है, वह कुलीन है, पंडित है, गुणवान है। उसे सुना जाता है, वह वक्ता है और दर्शनीय है। अतः यह स्पष्ट है समस्त मानव जाति को धन की आकांक्षा रहती है। धन की इच्छा की सार्वभौमिकता के साथ सर्व सुख की कामना भी निहित है। धन का आवागमन स्वास्थ्यवर्धक है, परन्तु उसका अनुपयोगी संचय दु:खदायी होता है, जैसे पेट में पडा अपच अन्न अजीर्ण पैदा करता है। वस्तुत: मर्यादित धन ऊर्जा देता है और अमर्यादित धन अपने चैन का हरण करता है।
सर्वसुख एवं धनाकांशा के लिए हमारे देश में कार्तिक कृष्णा अमावस्या को धन कि अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मीजी की आराधना तथा पूजा-अर्चना करते है। वेद का उपदेश है- सद्गुणी लक्ष्मी का आह्वान करो न कि दुर्गाणी का। अथर्ववेद में दुर्गणी लक्ष्मी की तुलना उस अमरबेल से की गयी है जो किसी पेड़ पर चढ़कर उसका रक्त चूसती रहती है तथा एक दिन पेड़ पूर्णत सुख जाता है।
संस्कृत में कहा है- अन्यायोपार्जानि वित्तानी दश वर्षाणि तिष्ठति प्राप्तेतु षोडषे वर्ष समूलं च विनश्यति अर्थात अन्याय से कमाया हुआ धन मात्र दस वर्ष तक रहता है। सोलहवे वर्ष में वह समूल नष्ट हो जाता है अतः इस दिन हम प्रार्थना करे कि अनर्थो की जड़ पापी लक्ष्मी को हमारे से दूर रखे। हम कल्याणकारी लक्ष्मी के स्वामी बने जिससे हमारे साथ सम्पूर्ण वंश का कल्याण हो।
दीपावली पर्व से सम्बंधित सन्दर्भ एवं आख्यान
दीपावली पावन पुण्य पर्व युगाब्दियो से हमारी आस्था, विश्वास एवं धार्मिक मान्यता का प्रतीक है। यह पर्व हमारे तन, मन एवं मस्तिक में रचा बसा है। यह आज भी उतना ही जीवंत, प्रसन्नता, उल्लासमय एवं प्रेरणादायक है, जितना अपने अभ्युदय काल में था। इसका उदभव स्त्रोत त्रेतायुग है। वर्तमान युग से पहले भी सिंधुघाटी सभ्यता, पूर्व/उत्तर वैदिककाल, गुप्त, मौर्य, शुंग एवं राजपूतवंशीय शासनकाल यह पर्व मनाया जाता था। इसके ऐतिहासिक प्रमाण प्राचीन साहित्य में उपलब्ध है। यह मात्र धार्मिक आस्था परक पर्व नही है, अपितु इसके अनेकानेक आयाम तथा आधार है। यह ज्ञान, विज्ञान, परिज्ञान, अपरा तथा पर प्रज्ञान के उत्कृष्ट सिद्धांतो पर आधारित है। इसकी वैदिक एवं वैदांतिक पृष्टभूमि भी है। तमसो मा ज्योतिर्गमय…… यजुर्वेद के इस मंत्र में परमपिता परमेश्वर से अंधकार से प्रकाश में ले जाने की प्रार्थना की गयी है। दीपक का प्रकाश, सूर्य भगवान के प्रकाश का प्रतीकात्मक अंश है जिसे इस पर्व में अपने गृह में आदर, सत्कार, पूजा, अर्चना द्वारा आमंत्रित करते है। ऐसा हम जीवन में सुख, स्वास्थय, समृद्धि, आनंद तथा अपने सर्वांगीण कल्याण के लिए करते है। दीप जलाते वक्त हम प्रार्थना करते है-
शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यंधन संपद: ।
शत्रुबुद्धि विनाशाय दीप ज्योतिनमोस्तुते ।।
इस प्रकार दीपावली सुख, समृद्धि, उत्साह, उल्लास और उमंग का मंगल पर्व है। इसे दीपावली, दीवाली, दीपोत्सव आदि कई नामो से उच्चारित किया जाता है, परन्तु इसका मूल तथा केंद्रीभूत आशय एवं प्रयोजन है- जीवन में प्रकाश का आगमन, स्वयं एवं सभी के लिए 'सर्वेभवन्तुसुखिन:', समृद्धि एवं आनंद की कामना से प्रार्थना करने का पवित्र त्यौहार है।
दीपावली पर्व के प्रादुर्भाव कि तिथि तथा कारण आज भी शोध का विषय है। यधपि जिस मास, पक्ष, तिथि को हम इसे युगो से मानते है, वह सर्वमान्य है। यह तथ्य भी है कि भगवान राम लंका विजय के पश्चात् अयोध्या आये एवं उनके राज्याभिषेक की ख़ुशी में प्रजा ने दीपक जलाये। हालाँकि तुलसीकृत रामचरित मानस तथा महर्षि वाल्मिकीकृत रामायण में भगवान राम के अयोध्या पहुचने की तिथि का उल्लेख नही है। वाल्मिकी रामायण के युद्धकाण्ड में भगवान राम का पंचमी तिथि को भरद्वाज आश्रम (प्रयाग) में रुकने का उल्लेख है। अनुमान है यह कार्तिक कृष्ण पंचमी ही रही होगी और अयोध्या पहुचने तक अमावस्या आ गयी होगी तथा उनके स्वागत में दीपोत्सव मनाया गया होगा। दीपावली पर्व को इसी परिपेक्ष्य में देखना ही उचित होगा।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार समस्त सृष्टि की मूलभूत आधशक्ति महालक्ष्मी है। यह सत, रज और तम तीनो गुणो का समन्वय है। इसे त्रिपुरा शक्ति भी कहा गया है। ज्ञान रूप में यह सत्व गुण प्रधान सरस्वती, इच्छा रूप में यह रजोगुण प्रधान लक्ष्मी तथा क्रिया रूप में यह तमोगुण प्रधान काली के रूप में उपास्य होती है।
'समुन्द्र मन्थनाख्यान' के अनुसार मंदर नामक पर्वत मन्मथ दण्ड से संघर्ष रूप मंथन से प्राप्त चतुर्दश रत्नो में महालक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ था वह दीपावली का दिन ही था। देवताओ ने उन्हें भगवान विष्णु की पत्नी स्वीकार कर उन दोनों का विवाह करा दिया था।
दानवीर राजा बलि ने जब अपने बाहुबल से तीनो लोको पर विजय प्राप्त कर ली तो बलि से भयभीत देवताओ की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग पृथ्वी दान के रूप में मांगी थी। महाप्रतापी राजा बलि ने सब कुछ समजते हुए भी याचक को निराश नही किया और तीन पग पृथ्वी दान में दे दी थी। भगवान विष्णु ने तीन पग में तीन लोको को नाप लिया था। राजा बलि की दानवीरता से प्रभावित हो विष्णु भगवान ने उन्हें पाताल लोक का राज्य तो लौटा ही दिया, साथ ही यह आश्वासन भी दिया कि उसकी स्मृति में भू-लोक वास सदैव प्रति वर्ष दीपावली मनाएंगे।
दीपावली के ही दिन राक्षसो का वध करने के लिए माँ देवी ने महाकाली का रूप धारण किया था। राक्षसो का वध करने के बाद भी जब महालक्ष्मी का क्रोध कम नही हुआ, तब भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से उनका क्रोध समाप्त हुआ। इस घटना कि स्मृति में उनके शांत स्वरुप लक्ष्मी जी का पूजन प्रारंभ हुआ, जो अब भी किया जाता है।
इसके अलावा भी कई संदर्भ दीपोत्सव से जुड़े हुए है:-
1. कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्री कृष्ण सर्वप्रथम ग्वाल बालो के संग वन में गाये चराने गए थे। सांयकाल उनकी वापसी पर गोकुलवासियों ने घर-घर दीप जलाकर उनका स्वागत किया।
2. ऋषि उद्धालक के पुत्र नचिकेता जन्म मरण का रहस्य जानने के लिए यम के पास गए तब यमराज ने उनकी कई प्रकार से परीक्षा ली थी। नचिकेता परीक्षा में सफल रहे और यम ने प्रसन्न होकर उन्हें मृत्यु पर विजय का ज्ञान दिया। नचिकेता कि पुन: पृथ्वी पर वापसी पर पृथ्वीवासियो ने घी के दिए जलाकर उनका स्वागत किया। कहा जाता है कि आर्यावर्त की यह पहली दीपावली थी।
3. बौद्ध धर्म के प्रवर्त्तक गौतम बुद्ध जब 17 वर्ष बाद अनुयायियो के साथ अपने गृह नगर कपिलवस्तु लौटे तो उनके स्वागत में लाखो दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। साथ ही महात्मा बुद्ध ने अपने प्रथम प्रवचन के दौरान 'क्वअप्पो दीपोभव' का उपदेश देकर दीपावली को नया आयाम प्रदान किया था।
4. सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दीपावली के ही दिन हुआ था।
5. सम्राट अशोक ने दिग्विजयी अभियान इसी दिन प्रारम्भ किया था। इसी ख़ुशी में दीपदान किया गया था।
6. जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी ने भी दीपावली के दिन निर्वाण प्राप्त किया था। 7. आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन सन् 1883 अजमेर में अपने प्राण त्यागे थे। आर्य समाज में इस दिन का महत्त्व है।
8. महाराज धर्मराज युधिष्ठर ने इसी दिन राजपूत यज्ञ किया था। दीप जलाकर खुशियां मनाई थी।
9. अमृतसर के प्रख्यात स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के दिन ही प्रारम्भ हुआ था। 10. इस प्रकार अनेकानेक संदर्भो में दीपावली (दीपोत्सव) जुड़ा हुआ है। ऋतु विज्ञान की दॄष्टि से यह पर्व दो ऋतुओ में संधिकाल में मनाया जाता है। यह पर्व यह संकेत देता है कि अब शीतकाल आ रहा है और उसके अनुरूप हमें अपनी दिनचर्या करनी है। वास्तव में यह पर्व सर्वजनहिताय सामाजिक चेतना का मूर्त्तरूप है।
11. यह पर्व कृषि विज्ञानं के सिद्धांतो पर भी आधारित है। जिस समय यह पर्व मनाया जाता है, उस समय खरीफ की फसल किसानो को प्राप्त हो जाती है। मानव अनाज विक्रय कर धन प्राप्त करता है। श्रम से प्राप्त प्रसन्नता दीपोत्सव के रूप में प्रकट होती है। यह पर्व नव सस्येष्टि के रूप में भी जाना जाता है।
12. पर्यावरण कि दॄष्टि से भी यह पर्व समस्त वायुमंडल को रोगाणु रहित बनता है। वर्षा ऋतु से व्याप्त अनेकानेक विषाणु, मच्छरादि उत्पन्न हो जाते है। उस पर्व के आगमन के पूर्व सभी लोग अपने घर की सफाई तथा रंग रोगन करते है, इससे विषैले जीव जंतु नष्ट हो जाते है। दीपावली पर पटाखो से उत्पन्न ऊष्मा व दुर्गन्ध जिवाणुओं/मच्छरो को नष्ट कर देती है। इस प्रकार वर्षा ऋतु का प्रदूषण भी समाप्त हो जाता है।
यहाँ तक प्रथम चरण समाप्त होता है।
अनुक्रमाणिका
1. धन कि देवी लक्ष्मी
2. दीपावली पर्व से संबंधित संदर्भ एवं आख्यान
3. पंच दिवसीय उत्सव चक्र
4. धन्नवतरी कथा
5. लक्ष्मी पूजन कथा
6. लक्ष्मी का निवास कहा ?
7. लक्ष्मी का निवास कहा नही ?
8. लक्ष्मी को क्या है सर्वाधिक प्रिय
9. लक्ष्मी स्थायित्व के सात कल्प
एकाक्षी नारियल
कनकधारा यन्त्र
श्री-यन्त्र
दक्षिणावृति शंख
कुबेर कलश एवं श्रीफल
लक्ष्मी चरण पादुका
श्वेतार्क गणपति
10. दीपावली पंच महापर्वीय साधनाये
धन त्रयोदशी साधना
रूप चतुदर्शी साधना
विष्णु-महालक्ष्मी साधना एवं पूजा
सांगपाग महालक्ष्मी पूजनम्
11. महालक्ष्मी स्तुति
12. लक्ष्मी प्राप्ति के विविध प्रयोग
13. श्री-यन्त्र
14. श्री महालक्ष्मी यन्त्र
15. कुबेर यन्त्र-मंत्र
16. कनकधारा यन्त्र-मंत्र साधना
17. लक्ष्मी प्राप्ति के कुछ सिद्ध यन्त्र
18. धन प्राप्ति कारक यन्त्र
19. समृद्धिदायक बीसा यन्त्र
20. श्री लक्ष्मी बीसा यन्त्र
21. ऋद्धि सिद्धि प्राप्ति यन्त्र
22. श्री महालक्ष्मी यन्त्र एवं उपासना
23. लक्ष्मी पिरामिड
24. लक्ष्मी प्राप्ति के कुछ सिद्ध मंत्र
25. लक्ष्मी कमला मंत्र
26. महालक्ष्मी मंत्र
27. श्री मंजु घोष प्रयोग
28. दशाक्षर लक्ष्मी मंत्र
29. कनक दक्षिणी साधना
30. स्फटिक शिवलिंग प्रयोग
31. दक्षिणावृति शंख कल्प
32. कमलगट्टा माला प्रयोग
33. कांतियुक्त शांतिग्राम साधना
34. गौरी शंकर रुद्राक्ष
35. स्फटिक मणिमाला प्रयोग
36. शाबर मंत्रो से लक्ष्मी प्राप्ति
37. बिक्री बढ़ाने का मंत्र
38. व्यापार वृद्धि मंत्र
39. धन प्राप्ति मंत्र
40. मनोकामना सिद्धि मंत्र
41. व्यापार बाधा निवारक मंत्र
42. सम्मोहन मंत्र
43. शत्रु सम्मन मंत्र
44. अनवरत धन प्राप्ति मंत्र
45. कामना प्राप्ति मंत्र
46. विवाह बाधा निवारक मंत्र
47. बाधा निवारक मंत्र
48. दीपावली पर लक्ष्मी प्राप्ति के टोटके
49. लक्ष्मी प्राप्ति हेतु यह भी कीजिये
50. ज्योतिष शास्त्र में श्री धनदात्री श्रीविष्णु को प्रसन्न करने के उपाय
51. लक्ष्मी प्राप्ति के सामान्य सूत्र
52. फेंगशुई से सौभाग्यशाली बनने के सरल उपाय
धन की देवी लक्ष्मी
लक्ष्मी को धन का प्रतीक माना गया है। धन की महिमा अपरम्पार है। समस्त आश्रमो की सम्पूर्ण संतुष्टि का आधार धन है। बिना पैसे उच्च विधाध्ययन नही, बिना द्रव्य के गृहस्थाश्रम भार स्वरुप है। जिसके घर में दो जून की रोटी नसीब नही होती है उसके लिए दान की बात दूभर है। वानप्रस्थ एवं सन्यास अवस्था में भी परोपकारार्थ धन की आवश्यकता होती है। दुनिया में सभी लेन देन धन यानि मुद्रा के माध्यम से होता है। हमारी क्रयशक्ति का आधार भी धन ही होता है सोना-चाँदी, हीरे-मोती भी धन ही है, ये सब प्रकार की सुख-सुविधाएँ जुटाने के माध्यम मात्र है। रोटी-कपडा-मकान की मूलभूत जरूरत से लेकर अंतहीन चाहत भी धन यानि लक्ष्मी पर टिकी होती है। सभी प्रकार के विकास के पीछे धन का ही हाथ होता है। ज्ञान, चरित्र, श्रम को भी धन की उपमा दी गयी है, लेकिन इनका उपयोग भी धन कमाने के लिए किया जाता रहा है। धन बहुत बड़ी ताकत है, जिसे नकारा नही जा सकता। संस्कृत में सुभाषितानि है-
यस्यास्ति वितं स नर: कुलीन
स पंडित: स श्रुतवान् गुनग्य
स एव वक्ता स च दर्शनीय
सर्वेगुणा कांचन माश्रयन्ते ।।1।।
अर्थात जिसके पास धन है, वह कुलीन है, पंडित है, गुणवान है। उसे सुना जाता है, वह वक्ता है और दर्शनीय है। अतः यह स्पष्ट है समस्त मानव जाति को धन की आकांक्षा रहती है। धन की इच्छा की सार्वभौमिकता के साथ सर्व सुख की कामना भी निहित है। धन का आवागमन स्वास्थ्यवर्धक है, परन्तु उसका अनुपयोगी संचय दु:खदायी होता है, जैसे पेट में पडा अपच अन्न अजीर्ण पैदा करता है। वस्तुत: मर्यादित धन ऊर्जा देता है और अमर्यादित धन अपने चैन का हरण करता है।
सर्वसुख एवं धनाकांशा के लिए हमारे देश में कार्तिक कृष्णा अमावस्या को धन कि अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मीजी की आराधना तथा पूजा-अर्चना करते है। वेद का उपदेश है- सद्गुणी लक्ष्मी का आह्वान करो न कि दुर्गाणी का। अथर्ववेद में दुर्गणी लक्ष्मी की तुलना उस अमरबेल से की गयी है जो किसी पेड़ पर चढ़कर उसका रक्त चूसती रहती है तथा एक दिन पेड़ पूर्णत सुख जाता है।
संस्कृत में कहा है- अन्यायोपार्जानि वित्तानी दश वर्षाणि तिष्ठति प्राप्तेतु षोडषे वर्ष समूलं च विनश्यति अर्थात अन्याय से कमाया हुआ धन मात्र दस वर्ष तक रहता है। सोलहवे वर्ष में वह समूल नष्ट हो जाता है अतः इस दिन हम प्रार्थना करे कि अनर्थो की जड़ पापी लक्ष्मी को हमारे से दूर रखे। हम कल्याणकारी लक्ष्मी के स्वामी बने जिससे हमारे साथ सम्पूर्ण वंश का कल्याण हो।
दीपावली पर्व से सम्बंधित सन्दर्भ एवं आख्यान
दीपावली पावन पुण्य पर्व युगाब्दियो से हमारी आस्था, विश्वास एवं धार्मिक मान्यता का प्रतीक है। यह पर्व हमारे तन, मन एवं मस्तिक में रचा बसा है। यह आज भी उतना ही जीवंत, प्रसन्नता, उल्लासमय एवं प्रेरणादायक है, जितना अपने अभ्युदय काल में था। इसका उदभव स्त्रोत त्रेतायुग है। वर्तमान युग से पहले भी सिंधुघाटी सभ्यता, पूर्व/उत्तर वैदिककाल, गुप्त, मौर्य, शुंग एवं राजपूतवंशीय शासनकाल यह पर्व मनाया जाता था। इसके ऐतिहासिक प्रमाण प्राचीन साहित्य में उपलब्ध है। यह मात्र धार्मिक आस्था परक पर्व नही है, अपितु इसके अनेकानेक आयाम तथा आधार है। यह ज्ञान, विज्ञान, परिज्ञान, अपरा तथा पर प्रज्ञान के उत्कृष्ट सिद्धांतो पर आधारित है। इसकी वैदिक एवं वैदांतिक पृष्टभूमि भी है। तमसो मा ज्योतिर्गमय…… यजुर्वेद के इस मंत्र में परमपिता परमेश्वर से अंधकार से प्रकाश में ले जाने की प्रार्थना की गयी है। दीपक का प्रकाश, सूर्य भगवान के प्रकाश का प्रतीकात्मक अंश है जिसे इस पर्व में अपने गृह में आदर, सत्कार, पूजा, अर्चना द्वारा आमंत्रित करते है। ऐसा हम जीवन में सुख, स्वास्थय, समृद्धि, आनंद तथा अपने सर्वांगीण कल्याण के लिए करते है। दीप जलाते वक्त हम प्रार्थना करते है-
शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यंधन संपद: ।
शत्रुबुद्धि विनाशाय दीप ज्योतिनमोस्तुते ।।
इस प्रकार दीपावली सुख, समृद्धि, उत्साह, उल्लास और उमंग का मंगल पर्व है। इसे दीपावली, दीवाली, दीपोत्सव आदि कई नामो से उच्चारित किया जाता है, परन्तु इसका मूल तथा केंद्रीभूत आशय एवं प्रयोजन है- जीवन में प्रकाश का आगमन, स्वयं एवं सभी के लिए 'सर्वेभवन्तुसुखिन:', समृद्धि एवं आनंद की कामना से प्रार्थना करने का पवित्र त्यौहार है।
दीपावली पर्व के प्रादुर्भाव कि तिथि तथा कारण आज भी शोध का विषय है। यधपि जिस मास, पक्ष, तिथि को हम इसे युगो से मानते है, वह सर्वमान्य है। यह तथ्य भी है कि भगवान राम लंका विजय के पश्चात् अयोध्या आये एवं उनके राज्याभिषेक की ख़ुशी में प्रजा ने दीपक जलाये। हालाँकि तुलसीकृत रामचरित मानस तथा महर्षि वाल्मिकीकृत रामायण में भगवान राम के अयोध्या पहुचने की तिथि का उल्लेख नही है। वाल्मिकी रामायण के युद्धकाण्ड में भगवान राम का पंचमी तिथि को भरद्वाज आश्रम (प्रयाग) में रुकने का उल्लेख है। अनुमान है यह कार्तिक कृष्ण पंचमी ही रही होगी और अयोध्या पहुचने तक अमावस्या आ गयी होगी तथा उनके स्वागत में दीपोत्सव मनाया गया होगा। दीपावली पर्व को इसी परिपेक्ष्य में देखना ही उचित होगा।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार समस्त सृष्टि की मूलभूत आधशक्ति महालक्ष्मी है। यह सत, रज और तम तीनो गुणो का समन्वय है। इसे त्रिपुरा शक्ति भी कहा गया है। ज्ञान रूप में यह सत्व गुण प्रधान सरस्वती, इच्छा रूप में यह रजोगुण प्रधान लक्ष्मी तथा क्रिया रूप में यह तमोगुण प्रधान काली के रूप में उपास्य होती है।
'समुन्द्र मन्थनाख्यान' के अनुसार मंदर नामक पर्वत मन्मथ दण्ड से संघर्ष रूप मंथन से प्राप्त चतुर्दश रत्नो में महालक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ था वह दीपावली का दिन ही था। देवताओ ने उन्हें भगवान विष्णु की पत्नी स्वीकार कर उन दोनों का विवाह करा दिया था।
दानवीर राजा बलि ने जब अपने बाहुबल से तीनो लोको पर विजय प्राप्त कर ली तो बलि से भयभीत देवताओ की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग पृथ्वी दान के रूप में मांगी थी। महाप्रतापी राजा बलि ने सब कुछ समजते हुए भी याचक को निराश नही किया और तीन पग पृथ्वी दान में दे दी थी। भगवान विष्णु ने तीन पग में तीन लोको को नाप लिया था। राजा बलि की दानवीरता से प्रभावित हो विष्णु भगवान ने उन्हें पाताल लोक का राज्य तो लौटा ही दिया, साथ ही यह आश्वासन भी दिया कि उसकी स्मृति में भू-लोक वास सदैव प्रति वर्ष दीपावली मनाएंगे।
दीपावली के ही दिन राक्षसो का वध करने के लिए माँ देवी ने महाकाली का रूप धारण किया था। राक्षसो का वध करने के बाद भी जब महालक्ष्मी का क्रोध कम नही हुआ, तब भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से उनका क्रोध समाप्त हुआ। इस घटना कि स्मृति में उनके शांत स्वरुप लक्ष्मी जी का पूजन प्रारंभ हुआ, जो अब भी किया जाता है।
इसके अलावा भी कई संदर्भ दीपोत्सव से जुड़े हुए है:-
1. कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्री कृष्ण सर्वप्रथम ग्वाल बालो के संग वन में गाये चराने गए थे। सांयकाल उनकी वापसी पर गोकुलवासियों ने घर-घर दीप जलाकर उनका स्वागत किया।
2. ऋषि उद्धालक के पुत्र नचिकेता जन्म मरण का रहस्य जानने के लिए यम के पास गए तब यमराज ने उनकी कई प्रकार से परीक्षा ली थी। नचिकेता परीक्षा में सफल रहे और यम ने प्रसन्न होकर उन्हें मृत्यु पर विजय का ज्ञान दिया। नचिकेता कि पुन: पृथ्वी पर वापसी पर पृथ्वीवासियो ने घी के दिए जलाकर उनका स्वागत किया। कहा जाता है कि आर्यावर्त की यह पहली दीपावली थी।
3. बौद्ध धर्म के प्रवर्त्तक गौतम बुद्ध जब 17 वर्ष बाद अनुयायियो के साथ अपने गृह नगर कपिलवस्तु लौटे तो उनके स्वागत में लाखो दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। साथ ही महात्मा बुद्ध ने अपने प्रथम प्रवचन के दौरान 'क्वअप्पो दीपोभव' का उपदेश देकर दीपावली को नया आयाम प्रदान किया था।
4. सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दीपावली के ही दिन हुआ था।
5. सम्राट अशोक ने दिग्विजयी अभियान इसी दिन प्रारम्भ किया था। इसी ख़ुशी में दीपदान किया गया था।
6. जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी ने भी दीपावली के दिन निर्वाण प्राप्त किया था। 7. आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन सन् 1883 अजमेर में अपने प्राण त्यागे थे। आर्य समाज में इस दिन का महत्त्व है।
8. महाराज धर्मराज युधिष्ठर ने इसी दिन राजपूत यज्ञ किया था। दीप जलाकर खुशियां मनाई थी।
9. अमृतसर के प्रख्यात स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के दिन ही प्रारम्भ हुआ था। 10. इस प्रकार अनेकानेक संदर्भो में दीपावली (दीपोत्सव) जुड़ा हुआ है। ऋतु विज्ञान की दॄष्टि से यह पर्व दो ऋतुओ में संधिकाल में मनाया जाता है। यह पर्व यह संकेत देता है कि अब शीतकाल आ रहा है और उसके अनुरूप हमें अपनी दिनचर्या करनी है। वास्तव में यह पर्व सर्वजनहिताय सामाजिक चेतना का मूर्त्तरूप है।
11. यह पर्व कृषि विज्ञानं के सिद्धांतो पर भी आधारित है। जिस समय यह पर्व मनाया जाता है, उस समय खरीफ की फसल किसानो को प्राप्त हो जाती है। मानव अनाज विक्रय कर धन प्राप्त करता है। श्रम से प्राप्त प्रसन्नता दीपोत्सव के रूप में प्रकट होती है। यह पर्व नव सस्येष्टि के रूप में भी जाना जाता है।
12. पर्यावरण कि दॄष्टि से भी यह पर्व समस्त वायुमंडल को रोगाणु रहित बनता है। वर्षा ऋतु से व्याप्त अनेकानेक विषाणु, मच्छरादि उत्पन्न हो जाते है। उस पर्व के आगमन के पूर्व सभी लोग अपने घर की सफाई तथा रंग रोगन करते है, इससे विषैले जीव जंतु नष्ट हो जाते है। दीपावली पर पटाखो से उत्पन्न ऊष्मा व दुर्गन्ध जिवाणुओं/मच्छरो को नष्ट कर देती है। इस प्रकार वर्षा ऋतु का प्रदूषण भी समाप्त हो जाता है।
यहाँ तक प्रथम चरण समाप्त होता है।
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