बुधवार, 13 नवंबर 2013

धन लक्ष्मी साधना एवं प्राप्ति के उपाय - पुस्तक (पेज न. 9)

                                 
                                                           
                                                                पेज न. 9
   
        ज्योतिषशास्त्र में धनरात्रि श्रीलक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के उपाय

                   प्रातः काल उठते ही मानसिक रूप से 21 बार "श्री" का उच्चारण कर अपनी माता के चरण स्पर्श करे अथवा घर में जो वृद्ध स्त्री हो, उनके चरण स्पर्श करे। श्री वृद्धि होगी।
                   अपने निवास में कुछ कच्चा स्थान अवश्य रखे। घर के मध्य में हो तो अच्छा है यदि वहाँ तुलसी का पौधा लगाकर नित्य प्रति जलाभिषेक से पूजा करे तो बाधित पूर्ण होंगे।
                  किसी भी प्रथम शुक्रवार को सफ़ेद रुमाल में सवा सौ ग्राम मिश्री बांधकर लक्ष्मीनारायण मंदिर में अर्पित कर दे। तीन शुक्रवार तक करने मात्र से आपको इसका प्रभाव दिखाई देने लगेगा। शुभ समाचार या धनागमन हो सकता है।
                   प्राण प्रतिष्ठित अभिमंत्रित घोड़े की नाल को अपने घर के मुख्य द्वार पर लगावे।
                   प्रत्येक शुक्रवार को माँ लक्ष्मी का स्मरण करके कोई भी सफेद प्रसाद कन्याओ को बांटे। लक्ष्मी प्रसन्न रहेगी।
                   प्रत्येक मंगलवार को रोटी पर गुड रखकर और शनिवार को सरसो का तेल लगाकर रोटी पर गुड रखकर कुत्तो को दे। माँ लक्ष्मी की कृपा रहेगी।
                   प्रत्येक शनिवार अमावस्या को आठ इमरती कुत्तो को देवे। आर्थिक लाभ प्राप्त होगा।
                   मंगलवार को हनुमानजी को 11 रूपये के गुड चने का भोग लगाए। फिर पान के पत्ते पर माखन और सिन्दूर रखकर 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करे। यह प्रयोग तीन मंगलवार तक करे। चमत्कार महसूस करेंगे। अचानक खर्चो में रूकावट आकर आपके पास धन स्थिर होने लगेगा।
                   घर में नियमित पूजा करते समय दीपक में रुई की बाती के स्थान पर मौली की बाती का प्रयोग करे, क्योकि माँ लक्ष्मी को रक्त वर्ण सर्वाधिक प्रिय है।
                   किसी भी श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर परिसर में शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार को 9 वर्ष से कम की 11 कन्याओ को खीर के साथ मिश्री का भोजन कराये तथा उपहार में लाल वस्त्र दे। यह उपाय प्रथम शुक्रवार से आरम्भ करके लगातार 6 शुक्रवार तक करना है। आर्थिक लाभ उतरोतर बढ़ने लगेगा।
                   प्रत्येक शुक्रवार को श्रीसूक्त या बीज युक्त श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ करे यह प्रयोग प्रतिदिन नियमित रूप से भी हो सकता है। श्री सूक्त के पाठ का प्रभाव सात शुक्रवार के पाठ से ही दिखने लगेगा और जो व्यक्ति श्री सूक्त का नियमित पाठ करता है उसके घर में धन वृद्धि के साथ-साथ उस व्यक्ति की अपमृत्यु भी नहीं होती है।


                                              लक्ष्मी प्राप्ति के सामान्य सूत्र       
               
                     सुगढ़ ग्रहणी को दैनं दिन कार्यो में बहुत ध्यान रखना चाहिए। अधोलिखित सूत्र प्रत्येक गृहस्थी के लिए माननीय है, करणीय है। ये सूत्र देवी लक्ष्मी प्राप्ति के स्वर्णिम सूत्र है।
                     याचक को दान देहरी के अंदर से ही करे, उसे घर की देहरी के अन्दर नहीं आने दे।
                     यदि नियमित रूप से घर की रोटी गाय को तथा अंतिम रोटी कुत्तो को जो लोग देते है तो उनके उतरोतर वृद्धि होती है, वंश वृद्धि होती है।
                     घर में कभी भी नमक खुले डिब्बे में न रखे। क्षार बंद ही होना चाहिए।
                     प्रातः उठकर सर्वप्रथम गृहलक्ष्मी यदि मुख्य द्वार पर एक गिलास अथवा लोटा जल डाले तो माँ लक्ष्मी के आने का मार्ग प्रशस्त होता है।
                     नित्य पीपल के पेड़ में जल डालने से भी आर्थिक सम्पन्नता रहती है।
                     यदि घर में सुख शांति चाहते है तो घर में कबाड़ न रखे। प्रत्येक अमावस्या को घर की पूर्ण सफाई कर फालतु के सामान को कबाड़ी को बेच दे, या बाहर फेंक दे। सफाई के बाद पांच अगरबत्ती पूजागृह में करे।
                    यदि हमेशा गेंहुँ शनिवार के दिन पिसवावे तथा गेंहुँ में एक मुठ्ठी काले चने डालकर पिसवावे तो आर्थिक वृद्धि होती है।
                    किसी बुधवार के दिन यदि आपके सामने हिंजड़ा आ जाये तो उसके मांगे बिना ही उसे पैसा अवश्य दे। यदि आप आर्थिक रूप से समस्या ग्रस्त है तो 21 शुक्रवार तक 9 वर्ष से कम आयु की पांच कन्याओ को खीर व मिश्री बांटे।
                   घर में जितने भी दरवाजे हो, उनमे समय-समय पर तेल डाले रखे जिससे बंद करते वक्त रगड़ से आवाज न आवे।
                   आर्थिक समस्या का निदान करने के लिए पांच शुक्रवार तक किसी सुहागिन स्त्री को सुहाग सामग्री का दान करे। सुहाग सामग्री आपकी क्षमतानुसार होनी चाहिए।
                   जब भी बैंक या ए.टी.एम. में से पैसे निकाले तब मन ही मन कोई भी लक्ष्मी मन्त्र का जाप अवश्य करे। बड़ा मंत्र याद न हो तो बीज मंत्र "श्री" का ही जाप कर ले।
                   संध्याकाल एवं प्रातः काल में किसी को उधार न दे। अन्यथा पैसे वापिस मिलने में मशक्कत करनी पड़ सकती है।
                   शुक्रवार को किसी सुहागिन को लाल वस्त्र अथवा सुहाग सामग्री दान करने का मौका मिले तो जरुर करे। माँ लक्ष्मी के आपके घर में आगमन का संकेत है।
                   यदि अचानक आर्थिक हानि हो रही है, या सट्टे में पैसे डूब गये है तो सात शुक्रवार को सात सुहागिनों को अपनी पत्नी के माध्यम से लाल वस्तु उपहार में दे। उपहार में इत्र का प्रयोग भी करे। हानि बंद होना लगेगी।
                   यदि गमन मार्ग पर मोर नृत्य करता दिखाई दे तो तुरंत उस स्थान की मिट्टी उठाकर जेब या पर्स में रखकर घर आवे तथा धूप दीप दिखाकर मिट्टी को चाँदी के ताबीज या लाल रेशमी वस्त्र में रखकर अपने धन रखने के स्थान पर रख दे।
                   यदि किसी शुक्रवार को कोई सुहागिन स्त्री अनायास बिन बुलाये आपके घर आती है तो उसका सम्मान कर जलपान कराये।
                   यदि धनतेरस के दिन घर में छिपकली के दर्शन होते है तो यह तय है कि पूरा वर्ष शुभ रहेगा। अगर संयोग से दिखाई दे जाये तो यह स्मृति में रखे कि आज छिपकली दर्शन एक विशेषश्शगुन है। तुरंत छिपकली को प्रणाम करे सम्भव हो तो छिपकली की कुमकुम के छींटे उछाल कर मंगल कामना करे। कहा भी है- धनतेरस को छिपकली दर्शन को तरसे। गर दिख जाय तो छप्पर फाड़कर धन बरसे।


                             फेंगशुई द्वारा सौभाग्यशाली बनने के सरल उपाय 

                    घरो में मंगल तथा शुभ चिन्हो का प्रयोग करे। प्राचीन काल से ही लोग भाग्यवान बनने के लिए मांगलिक लिपियों एवं प्रतिको का प्रदर्शन करते आए है। घरो में त्रिशूल, ॐ और स्वस्तिक चिन्ह होना ही चाहिए इनका प्रयोग एक साथ करना विशेष लाभप्रद माना गया है मांगलिक चिन्ह कई मुसीबतो से बचाते है।बैठक के दक्षिण-पश्चिम दिशा के कोने में परिवार के सदस्यो की प्रसन्न मुद्रा वाली छाया चित्र लगाना चाहिए। पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेम उतरोतर बढ़े इसके लिए शयनकक्ष के दक्षिण-पश्चिम दिशा वाले कोने में दोनों की प्रसन्नचित मुद्रा वाला छाया चित्र लगाना चाहिए।
                   दरवाजे के ठीक सामने कभी नहीं सोना चाहिए। सदैव यह ध्यान रखे कि प्रवेश द्वार की ओर पैर करके न सोए। सोये समय यह ध्यान रखे कि आपका सिर अथवा पैर सीधे दरवाजे के सामने न हो, इसलिए अपना पलंग दरवाजे के दायी ओर या बायीं ओर खिसका देना चाहिये।
                   झाड़ू सदा छिपाकर रखे। खुले स्थान पर झाड़ू रखना अपशकुन मन जाता है। यदि आप अपने घर के बाहर मुख्य द्वार के सामने झाड़ू उलटी करके रखते है तो यह घुसपैठियों से घर रक्षा करती है, किन्तु यह कार्य केवल रात को किया जा सकता है। दिन के समय झाड़ू छिपाकर रखे, ताकि वह किसी को नजर न आए। भोजन कक्ष में झाड़ू को भूलकर भी न रखे। इससे अन्न व आय के साफ होने का डर रहता है।
                   अलमारी सदैव बंद रखे। पुस्तके पढ़ने का शौक अच्छा है किन्तु घर के पुस्तकालय की अलमारी को बंद रखे एवं नकारात्मक ऊर्जा से बचे।
                   दर्पण को शयनकक्ष में नहीं लगाना चाहिए। पलंग के सामने आईना पति-पत्नी के वैवाहिक सम्बन्धो में तनाव पैदा कर सकता है। यदि दर्पण है तो उसे ढककर रखे। कमरे की छत पर भी आईना न लगावे। पलंग पर सो रहे पति-पत्नी को प्रतिबिम्ब करने वाला आईना तलाक का कारण बन सकता है, इसलिए रात्रि के समय आईना दृष्टि से ओझल हो या ढंका हुआ हो।
                   सूखे फूलो को घर से बाहर फेंक दे। पौधे एवं ताजे पुष्प फेंगशुई के उपयोगी शस्त्र है। ताजा फूल लगाये जा सकते है। तजा फूल जीवन के प्रतीक है जब कि सूखे फूल मृत्यु के सूचक है। फूलो के पौधे शयनकक्ष के बजाय बैठक अथवा भोजन कक्ष में रखना शुभ है। मुरझाने पर उन्हें हटा देना चाहिए। ताजा फूलो के बजाय कृत्रिम फूलो का उपयोग कर सकते है।
                   शुभ परिणामो के लिए दरवाजे के पास पानी रखे। यह उत्तर, पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर के दरवाजो के लिए उपयोगी है। पानी से भरे पात्र को दरवाजे के पास केवल बांयी ओर रखना चाहिए। अर्थात जब आप घर में खड़े हो और बाहर देखे तब आपके बांयी ओर पानी का पात्र हो। इसके तहत लघु मछली घर या पानी में स्थित डॉल्फिन का चित्र भी हो सकता है। दरवाजे के दांयी तरफ पानी रखने से व्यक्ति किसी दूसरी महिला प्रेमपाश में बद्ध हो सकता है अतः दरवाजे के दांयी तरफ पानी खराब परिणाम होता है।
                   फेंगशुई के अनुसार भी भाग्य वृद्धि के लिए घोड़े की नाल को मुख्य द्वार के ऊपर दरवाजे के फ्रेम के बाहर लगा सकते है। इसके दोनों सिरे नीचे की तरफ हो। घोड़े की नाल घातु तत्व है, इसलिए पूर्व और दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर वाले दरवाजो पर इसका प्रयोग न करे।


                                                        यहाँ तक नवां चरण समाप्त होता है।                      



  

धन लक्ष्मी साधना एवं प्राप्ति के उपाय - पुस्तक ( पेज न. 8 )

                                                         
     
                                                              पेज न. 8                                         
                                        दीपावली पर लक्ष्मी प्राप्ति के टोटके

                         दीपावली के  दिन पूजन से पहले रात्रि को नारियल खीर घर के ऊपर से नीचे सब जगह घूमे। ध्यान रहे जिस स्थान से आप निकल चुके है , वहां दुबारा न जाये। फिर नीचे मुख्यद्वार पर नारियल फोड़ दे एवं खीर वही छोड़ दे।
                         दीपावली के पूजन से पहले किसी गरीब सुहागिन स्त्री को अपनी पत्नी के द्वारा सुहाग सामग्री अवश्य दे। इससे लक्ष्मी प्रसन्न होती है। सामग्री में इत्र अवश्य होना चाहिए।
                        दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के समय लाल कपडे में काली हल्दी के साथ सिंदूर व कुछ सिक्के तथा रुपयो की भी पूजा करे। अगले दिन उनको उसी लाल कपडे में बांधकर अपनी तिजोरी में रखे एवं चमत्कार देखे।
                       दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के समय 501 ग्राम सूखे छुआरों का भी पूजन करे। अगले दिन उन छुआरों को लाल कपडे में बांधकर तिजोरी या गल्ले में रखे। 51 दिन तक एक रुपया मंदिर में लक्ष्मी के नाम से अर्पित कर सम्पन्नता की प्रार्थना करे एवं उसका असर देखे।
                       माँ लक्ष्मी के स्थिरत्व के लिए प्रति वर्ष दीपावली के दिन रात्रि ठीक 12 बजे घी के दीपक जलाकर अपने निवास के चौक में एक चक्र बनाकर उसके मध्य रोली से "श्री" लिखे, उसके चारो ओर दीपक रख दे एवं "श्री" शब्द की एक माला का जाप करे।
                      दीपावली के दिन अभिमंत्रित प्राण प्रतिष्ठित "व्यापार वृद्धि यंत्र" को पञ्च तत्व से शुद्ध करके नागकेशर लगाकर, मूंगे की माला से निम्न मन्त्र का 108 बार जाप करे- ।। ॐ श्रीं श्रियै नमः स्वाहा।। व्यापार में उतरोधर लाभ को प्राप्त करे।
                      दीपावली रात्रि में 21 हकीक पत्थरो का पूजन करके निवास में कही गाढ़ दे तो आपके निवास में वर्ष भर माँ लक्ष्मी का वास स्थायी रहेगा।
                     दीपावली पूजन से पूर्व पीपल के पांच पत्ते लेकर प्रत्येक पत्ते पर एक पनीर या छेने की मिठाई रखकर आटे का दीपक बनाकर उसके साथ जल में दूध, शहद व शक्कर मिलाकर पीपल के वृक्ष के निचे पत्तो को अर्पित कर दे, अगरबत्ती, दीपक व दुध भी चढ़ावे। हाथ जोड़कर मानसिक प्रार्थना कर वापिस आ जाये। पीछे मुड़कर न देखे। इसके बाद शनिवार व मंगलवार को भी इसी क्रिया को करना है। पत्तो का प्रयोग नहीं करके आटे के दीपक में पंचामृत, पनीर का टुकड़ा, अगरबती जलनी है चमत्कार आप खुद देखेंगे।
                    दीपावली रात्रि पूनम के समय 108 पत्तो पर "ॐ श्री हीं महालक्ष्म्यै नमः" का जाप करते हुए रोली से "श्री" लिखे। पूजन के बाद इन पत्तो की वन्दनवार बनाकर अपने घर के मुख्यद्वार पर लगा दे। प्रातः धूप दीप एवं अगरबत्ती लगाकर वन्दनवार उतार ले एवं नए लाल वस्त्र में बांधकर उस पर सिंदुर में चमेली का तेल मिलाकर "श्री" लिखकर अपने धन के स्थान पर रखे। फिर 21 दिन लगातार "श्री" उच्चारण के साथ 11 अगरबत्ती करे एवं प्रत्यक्ष प्रभाव को देखे।
                   माता अन्नपूर्णा की कृपा के लिए स्वानुभाव यह प्रयोग करे - तीन छोटी मटकियों में दीपावली पूजन के समय क्रमशः 800 ग्राम साबुत काली उड़द, 300 ग्राम चने एवं 900 ग्राम लाल मसूर की दाल का भी पूजन करे। एक अन्य मटकी में पांच प्रकार के अनाज भरकर पूजन करे। एक अन्य सवा मीटर काले कपडे में आठ सौ ग्राम काली साबुत उड़द व इतने ही काले तिल व सवा किलो नमक के साथ एक नारियल रखे। यह सामग्री पूजा स्थल से अलग रखनी है। जब पूजा समाप्त हो जाय तो तीन मटकियों को रसोईघर में रखे। नारियल के अतिरिक्त बाकि सारी सामग्री काले कपडे में लपेटकर पोटली बनाकर किसी चौराहे पर रख दे तथा नारियल वही फोड़ दे। आते वक्त पीछे नही देखे। घर में हाथ पैर धोकर प्रवेश करे। इस प्रयोग से नजर बाधा दूर होकर माँ अन्नपूर्णा की कृपा होकर धनागमन होता है। राहु-शनि की दशा का कुप्रभाव भी समाप्त हो जाता है।



                                 लक्ष्मी प्रसन्न करने के लिए यह भी करिये 

              दीपावली के दिन मोर पंख लगाइये- डाईंग रुम एवं शयनकक्ष में। इनकी संख्या सात-सात होनी चाहिए। ये पंख नकारात्मक प्रभाव को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव करेंगे। 
              लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए गृह लक्ष्मी को प्रसन्न करे। दीपावली के दिन नींद में सोयी पत्नी के पांव में चुपचाप चाँदी की पायल पहना दे। 
              दीपावली के दिन श्याम तुलसी के चारो ओर उगी घास को पीले रंग के कपडे में बांधे और उसे ड्रेसिंग टेबल पर रखे, सौभाग्य बढ़ेगा।
              चार मुख वाले दीपक को पूरी रात जलाये, बुझने न दे। आंगन में हो तो और अच्छा है। मुख्य द्वार खुला रखे। लक्ष्मी की कृपा बरसेगी। 
              महानिशाकल अर्थात रात के 12 बजे से 4 बजे घर के किसी भी भाग कमरो, बरामदे में अँधेरा न हो। दीपक जलाये रखे पूरा वर्ष प्रकाशमय रहेगा। 
              तिजोरी, गुल्ला, या घर का वह भाग जहा जेवर, रूपये पैसे रखते है, वहा उल्लू के पंख को रख दे। प्रत्येक शुक्रवार को धुप-अगरबत्ती करे। भगवती लक्ष्मी का ध्यान करे। वह स्थान हमेशा भरा रहेगा।                 दीपावली के दिन अगर बिल्ली या उल्लू घर में आकर बैठ जाये तो भूल से भी उन्हें भगाए नही, ये आपके घर में धन-समृद्धि के संकेत है। 
              दीपावली के दिन जहा रूपये, जेवरात रखते है उस तिजोरी, बक्सा या लॉकर पर धनिये के दाने, काली गूंजा के दाने डाले। इससे व्यापर में होता नुकसान, घाटा रुक जायेगा। 
              दीपावली के दिन घर की मुख्य महिला को घर के मुख्य दरवाजे पर ताम्र पात्र से पानी छिड़कना चाहिए। यह प्रयोग प्रति दिन हो तो धन-धान्य में कोई कमी नही रहेगी। 
              दीपावली के दिन गोपी चन्दन की नौ डडल्या लेकर एक पीले रंग के दागे से केले के वृक्ष पर बांध कर अगरबत्ती करे। इससे धन का योग बनता है। 
             दीपावली के दिन ब्रह्म मुहर्त में स्नानादि से निवृत होकर एक मुठ्ठी शुद्ध बासमती चावल बहते जल में प्रवाहित करे। लाभ होगा। 
             दीपावली के दिन सात रंग के हकीक पत्थर को महीन-झीने (पारदर्शी) कपडे में बांधकर घर के मुख्य दरवाजे पर लटका दे। ग्राहको का आना बढ़ेगा तथा साथ ही अधिक आमदनी होगी। 

                                         
                                        यहाँ तक आठवां चरण समाप्त होता है। 







            




































                                                     




        

बुधवार, 6 नवंबर 2013

धन लक्ष्मी साधना एवं प्राप्ति के उपाय - पुस्तक ( पेज न.7)

लक्ष्मी प्राप्ति के सरल प्रयोग :-
भगवती लक्ष्मी कि श्री नाम से सम्बोधित किया जाता है। यह धनदायक संकेत है।  दीपावली के दिन रक्त वस्त्र पर पीले पुष्प के आसन पर श्री चक्र स्थापित कर पूजन करे।  फिर निम्न मंत्र का 51 बार जाप करे। 
   मंत्र है - ।। ॐ ह्रीं श्री ह्रीं नम:।। 
यह प्रयोग दीपावली के दिन प्रात : सांय एवं मध्यरात्रि में करे। अर्द्ध रात्रि में श्री चक्र को वस्त्र में बांधकर तिजोरी में रख दे , ग्यारह दिन के बाद इसे नदी में बहा दे।  आकस्मिक धन कि प्राप्ति होगी। 
हल्ट हकीक का पूजन कर दीपावली के दिन धारण करने से मानसिक तनाव ख़त्म हो जाता है।  सवा मॉस के बाद इसे नदी में बहा दे। 
विद्या प्राप्ति के मंत्र :- साधक दीपावली के दिन पेन्सिल , जिससे बच्चा लिखता हो , को श्वेत वस्त्र में बांधकर निम्न मंत्र का 21 बार जाप करे मंत्र हैं - ।। ॐ ऍ क्री ऍ ॐ ।। इसके बाद किसी भी गुरूवार से प्रारम्भ कर अगले गुरूवार तक नित्य उसी पेन्सिल से उक्त मंत्र को बच्चे द्वारा तीन बार लिखाए। पेंसिल को सुरक्षित रखे। 
 धन का आगमन :- किसी पात्र में कुंकुम से अष्टदल कमल का निर्माण कर प्रमोदा को स्थापित कर उस पर कमल के पांच पुष्प चढ़ाए।  घी का दीपक कर निम्न मंत्र का जाप करे। 
      ।। ॐ श्री श्री महाधनं देहि ॐ नम: ।। 
यह प्रयोग सांत दिन तक करे , सातवे दिन प्रमोदा को जल में प्रवाहित कर दे। 
कमल के बीज ( कमलगट्टा ) से निम्न मंत्र का जाप करते हुए घी के साथ 101 आहुतिया देने से साधक की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है। 
   ।। ॐ क्ली चामुंडे मनोवांछित कुरु कुरु फट ।।
सम्मोहन मंत्र :- कमलगट्टे कि माला से दक्षिण दिशा कि ओर मुँह करके , अष्टगंध का तिलक लगाकर इस मंत्र का जाप करने से साधक में सम्मोहन शक्ति आ जाती है। यह प्रयोग पांच दिन तक करे।
मंत्र है - ।। ॐ सं सर्व सम्मोहनाय फट ।।
पांच दिन बाद माला नदी में प्रवाहित कर दे।
शत्रुशमन मंत्र :-चार अंगुल की नीम की लड़की लेकर उससे शत्रु का नाम किसी कागज पर लिखे , उस कागज पर लकड़ी रख दे तथा उस पर ही तेल का दीपक रख दे। 'शत्रु स्तम्भन माला ' से निम्न मंत्र की ग्यारह माला फेरे।
मंत्र है - ।। ॐ की क्ली शत्रुशमन क्ली क्री फट ।।
यह प्रयोग तीन दिन तक करे , दीपक को न बदले , अपितु उसमे ही तेल डालकर जला दे। यह अत्यंत तीव्र प्रयोग है। शत्रु कितना भी शक्तिशाली हो, शांत हो जायेगा। तीसरे दिन अग्नि प्रज्वलित कर माला को तोड़कर प्रत्येक मनके को घी में डुबोते हुए मंत्र से आहुति करे। अंतिम आहुति में कागज व लकड़ी को भी डाल दे।
अनवरत: धन प्राप्ति मंत्र :- निम्न मंत्र को अष्टगंध से सफ़ेद वस्त्र पर लिखे। उस वस्त्र पर बांया हाथ रखकर साधक दांये हाथ से लक्ष्मी माला से एक माला फेरे। साथ दिन तक प्रयोग करे। सातवे दिन वस्त्र को धन रखने के स्थान पर रख दे तथा माला को नदी में प्रवाहित कर दे। अनवरत धन प्राप्ति का स्त्रोत प्राप्त होगा।
मंत्र है - ।। ॐ ह्रीं अक्षय धनभादाय फट ।।
कामना प्राप्ति मंत्र :- किसी कागज पर लाल चन्दन से गणपति बनाकर उस पर लक्ष्मीयंत्र रखकर लाल पुष्प चढ़ावे।  तेल दीपक एवं अगरबत्ती लगाकर निम्न मंत्र का 65 बार जप करे
मंत्र है - ।। ॐ ह्रीं विचित्रे काम पूरय ॐ ।।
यह प्रयोग पांच दिन का है । पांचवे दिन यन्त्र को उसी कागज में लाल धागे से बांधकर नदी में प्रवाहित कर दे। व्यक्ति कि कामना पूर्ण होती है।
विवाह बाधा निवारण मंत्र :- वट वृक्ष के पांच पत्ते लेकर उनको एक के ऊपर एक रख दे , उस पर 'शक्ति खड्ग ' को स्थापित कर लाल कणेर के पुष्प चढ़ाते हुए निम्न मंत्र का 21 बार जप करे। साधक या साधिका में आ रही बाधा दूर होगी।
मंत्र है - ।। ॐ ऐ अभीष्ट सिद्धि विवाह बाधा निवारणाय फट ।।
बाधा निवारण मंत्र :- किसी पत्र में जल लेकर उसको देखते हुए निम्न मंत्र का 21 बार जप कर उस जल को पुरे घर में छिड़क देवे।  यह प्रयोग नित्य करने से घर में आयी छोटी - मोटी बाधाए समाप्त होगी एवं वातावरण सुखमय रहेगा।
मंत्र है - ।। ॐ ख़े खौ बाधा निवारणाय फट ।। 

शनिवार, 2 नवंबर 2013

धन लक्ष्मी साधना एवं प्राप्ति के उपाय - पुस्तक (पेज न. 6)

                                                         
                                                                      पेज न. 6

                                            लक्ष्मी प्राप्ति के कुछ सिद्ध यंत्र 
   
          श्री महालक्ष्मी सर्वतोभद्र यंत्र:-  इस यन्त्र की रचना मात्र दीपावली की रात्रि में ही की जाती है - इसे भोपपत्र पर अष्टगंध की स्याही एवं अनार की कलम से लिखा जाता है। चारो ओर इस यंत्र को लिखे- ॐ श्रीं हीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं हीं श्रीं ॐ नमः। यंत्र को पीत वस्त्र पर प्रतिष्ठित करने से पूर्व गूगल का धूप देवे फिर गूगल से ही 108 या 1008 बार उपर्युक्त मन्त्र को पढ़ते हुए हवन करे। यंत्र की रचना रजत या ताम्र पात्र पर भी की जा सकती है। इस यंत्र को पूजा घर, दुकान, गोदाम, गल्ले में भी रखा जा सकता है। इसके प्रभाव से उत्तरोतर लक्ष्मी में वृद्धि होने लगती है।
            धन प्राप्ति कारक यंत्र:-  कुछ यंत्र ऐसे भी होते है जो छोटे होते है किन्तु उनका प्रभाव तुरंत होता है और आर्थिक दृष्टि से अनुकूलता होने लगती है। यह यंत्र भी दीपावली रात्रि को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर धुप दीप जलाकर चाँदी के ताबीज में भरकर दाहिने हाथ की भुजा में बांधे तो व्यक्ति के जीवन में निश्चय ही आर्थिक उन्नति प्राप्त होती है।
            लक्ष्मी प्राप्ति में सहायक:- बीज मन्त्र:-  कहा भी है जिसके घर में हो बीसा, उसका क्या करे जगदीशा। बीसा यंत्रो को यंत्र राज भी कहा जाता है। ये कई प्रकार के है कुछ लक्ष्मी प्राप्ति बीसा यंत्रो का उल्लेख आवश्यक है।
              1.  समृद्धिदायक बीसा यंत्र:-  इस बीसा यंत्र को अष्टगंध कि स्याही से भोजपत्र पर सोने या अनार की कलम से लिखना चाहिए। गुरु पुष्य, रवि पुष्प या दीपावली रात्रि इसके निर्माण में शुभ है। मन्त्र लिखते समय आपका मुँह पूर्व-उत्तर में होना चाहिए फिर उस पर धुप दीप अगरबत्ती से यंत्र का वंदन करे। यंत्र तैयार होने पर व्यक्ति खड़ा होकर यंत्र को दोनों हाथो की अंजलि में लेकर मस्तक पर लगावे एवं सदेव अपने बटुवे में रखे। अवश्य सफलता एवं आर्थिक लाभ होगा।
              2.  श्री लक्ष्मी बीसा यंत्र:-  इस यंत्र को ताम्र पात्र पर बनाकर आधी रात के समय केशरयुक्त रक्त चन्दन से इस यंत्र पर ॐ के ऊपर "श्री" लिखकर रक्त या पीत पुष्प तथा बिल्बपत्र से पूजन करे। श्री सूक्त के 16 मंत्रो का पाठ करे एवं 7 माला का जाप करे "ॐ श्री"। महालक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती है। आहुतियाँ दे, ब्राह्मण को भोजन कराकर, चावल व गोटा उसे दान कर दे माला को नदी में प्रवाहित कर दे। यदि साधक अनुष्ठान न कर सके तो नित्य एक माला, एक वर्ष तक फेरे। दीपावली की रात्रि करे इस मन्त्र की एक माला (108 बार जप) एवं 108 बादाम (मन्त्र मुख) से आहुतिया देने से भी इसका तुरंत प्रभाव होता है। साधक को मनोवांछित लक्ष्मी प्राप्त होती है। व्यापारिक बांधाएं दूर होकर व्यापार में उन्नति होने लगती है।
               श्री मंजु घोष प्रयोग:-  दरिद्रता को दूर करने एवं बुद्धि की दृष्टि से यह यंत्र महत्वपूर्ण है। इसे "धन-धान्य लक्ष्मी मन्त्र" भी कहा जाता है।
                           यह प्रयोग भोजन करते समय किया जाता है। दिन में साधक अपने मुँह को जुठा नही करे। भोजन थाली सम्मुख आ  जाय, आसन पर बैठे बैठे निम्न पाठ करे-
                                             शशधरमिव शुभ्र खड्ग पुस्तांक-पाणी।
                                             चुरचिरमति-शांत पंचचूड़ कुमारम।।
                                             पृथुतर वर मुख्य पदम पत्रयनक्ष।
                                             कुमति दहन दक्षं मंजु घोष नमामि।।
                                                    मंजु घोष लक्ष्मी के ध्यान के बाद अधोलिखित षडाक्षर मन्त्र का मन ही मन 108 बार जप करे। मन्त्र जन के लिए हल्दी की माला का प्रयोग करे।
                                      मन्त्र है- ।। अ र व च ल धी ।।
                                                    भोजन करते समय अन्य से बात न करे मन ही मन इस मन्त्र का जाप करे। भोजन करने के पश्चात् थाली में पानी डालकर इस मन्त्र को थाली में लिखे फिर खड़ा हो जाये। हाथ मुह धोकर पुनः इस मन्त्र का मन ही मन 108 बार उच्चारण करे। दीपावली की रात्रि भोजन का समय सर्वथा उपयुक्त है। इसका प्रयोग स्वानुभूत है। इससे घर में आर्थिक अनुकूलता प्रारम्भ हो जाती है।
                  दशाक्षर लक्ष्मी मन्त्र:-  यह मन्त्र दरिद्रता विनाश के लिए रामबाण है। "शारदा तिलक" ग्रन्थ में इस मन्त्र की बड़ी महिमा की गयी है।
                  कनक यक्षिणी साधना:-  यह प्रयोग भी अचूक है, किन्तु इसमें एकाक्षी नारियल की आवश्यकता होती है, इस पर कई प्रयोग आर्थिक सम्पन्नता के लिए किये जाते है। वैसे मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित एकाक्षी नारियल पूजा घर में रखने मात्र से आर्थिक अनुकूलता देखी गयी है।
                  स्फटिक शिवलिंग प्रयोग:-  पारद शिवलिंग एक स्फटिक शिवलिंग की शास्त्रो में बहुत महिमा कही गयी है। जो जीवन में अतुलनीय सम्पदा के साथ सम्मान और यश चाहते है, उन्हें अपने घर में इनको अवश्य स्थापित करना चाहिए।
                  दक्षिणावर्ती शंख कल्प:-  तांत्रिक-मांत्रिक ग्रंथो में अनेकानेक कल्प है, परन्तु दक्षिणावर्ती शंख पर लक्ष्मी साधना का तुरंत प्रभाव है। शास्त्रो में कहा है कि जिनके जीवन में भाग्योदय होना होता है, उन्ही के घर दक्षिणावर्ती शंख होता है, क्योकि प्रथम तो दक्षिणावर्ती दुर्लभ है, किन्तु महत्वपूर्ण माने गए है एवं दूसरे इसमें नर-मादा एवं नपुंसक शंख भी होते है। इसलिए मात्र नर दक्षिणावर्ती शंख का प्रयोग ही मान्य है।
                 कमलगट्टा माला प्रयोग:-  लक्ष्मी का निवास स्थान कमल दल है और कमलगट्टा इसी कमल पुष्प का बीज होता है। यह काले रंग का गोलाकार बीज होता है और इसी धागे में पिंरोकर माला का रूप दे दिया जाता है।
                कांतियुक्त शालिग्राम साधना:-  शालिग्राम भगवान विष्णु के विग्रह है और भगवान विष्णु लक्ष्मी के पति है। जहाँ पति है वहाँ पत्नी रहती है। अतः जहाँ भगवान विष्णु है वहाँ लक्ष्मी का आना तय है। जिन साधको ने इस साधना का प्रयोग किया उनको आर्थिक रूप से आश्चर्यजनक उपलब्धिया प्राप्त हुई है।
                             इस साधना में सामान्य शालिग्राम के स्थान पर कांति युक्त शालिग्राम का प्रयोग होता है।कांतियुक्त शालिग्राम सूर्य के सामने देखने पर काले होने पर भी इनमे लाल झांई दिखाई देगी, तो समझिये ये शालिग्राम शुद्ध है एवं इस प्रयोग के अनुकूल है।
                 गौरी शंकर रुद्राक्ष:-  देखने पर ये दो रुद्राक्ष मिले हुए लगते है। इसे शिव-पार्वती का जोड़ा कहा जाता है, इसलिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका भी महत्व एक मुखी रुद्राक्ष के समान है। हालाँकि इस प्रकार का रुद्राक्ष भी दुर्लभ है, फिर भी आसानी से मिल जाता है। वे लोग भाग्यशाली होते है जिनके घर में एक मुखी या गौरी शंकर रुद्राक्ष होता है। आजकल नकली रुद्राक्ष को असली बताकर बेचते है। अतः ध्यान रखना चाहिए, कि रुद्राक्ष असली हो।
                स्फटिक मणिमाला प्रयोग:-  यह सफ़ेद रंग की चमकीली प्रभायुक्त ओर अनुकूल फलदायी मानी गयी है। आजकल नकली स्फटिक मालाओ का अंबार है अतः साधक को परख कर शुद्ध स्फटिक माला लेनी चाहिए।
                   सामान्य रूप से स्फटीक माला अनुकूल होती है, फिर यदि वह मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित चैतन्य हो तो क्या कहना।? इस प्रकार की माला पर लक्ष्मी के संबंधित अनेक प्रयोग है। प्रत्येक गृहस्थ के घर में इस प्रकार की माला होनी चाहिए।
                शाबर मंत्रो से लक्ष्मी प्राप्ति:-  शाबर मंत्रो का इतिहास भी बहुत पुराना है। शाबर शब्द शबर से बना है, जिसका अर्थ है किएतः। महाभारत में किरात वेशधारी महादेव शंकर और अर्जुन का युद्ध प्रसंग आता है।किरात वेषधारी शिव ने उन्हें शाबर मन्त्र से ही पुनर्जीवन प्रदान किया था। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने शाबर मन्त्र जाल का उल्लेख किया है- कलि बिलो कि जग-हित गिरजा। शाबर मन्त्र जाल जिन्ह सिरसा।। अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट महेस प्रतापू।। इससे स्प्ष्ट होता है कि शाबर मंत्रो का चलन भी अति प्राचीनकाल से हो रहा है। ये मन्त्र अत्यंत सरल एवं व्यव्हार की भाषा में पाये जाते है, किन्तु श्रद्धा एवं विश्वास के साथ जपने पर लाभ निश्चित है। ये मन्त्र नर नारी या कोई भी जाती वर्ण का व्यक्ति कर सकता है। इसकी साधना किसी भी श्रेष्ठ दिन या रात्रि में हो सकती है। किन्तु ग्रहण काल, महारात्रियाँ (होली, दीपावली, शिवरात्रि, नवरात्री) श्रेष्ठ है।
                बिक्री बढ़ाने का मन्त्र:-  यह मंत्र केवल रविवार के दिन नही किया जा सकता है। रविवार दीपावली हो तो सर्वश्रेष्ठ है। तीन रविवार का ही प्रयोग है।
                व्यापर वृद्धि मन्त्र:-  इस मन्त्र को सिद्ध करने की आवश्यकता नही है। नित्य दुकान, ऑफिस या फैक्ट्री खोलने से पूर्व एक माला फेरनी है, यानि 108 बार उच्चारण करना है।
                             मंत्र है- श्री शुक्ले महाशुक्ले कमलदल निवासे महालक्ष्म्यै नामौ नमः लक्ष्मी माई सत्य की सवाई आवो माई करो भलाई, न करो तो सात समुद्र की दुहाई ऋटि सिद्धि खावोगी तो नौ नाथ चौरासी की दुहाई।
              धन प्राप्ति मंत्र:-  नित्य प्रातः काल मुखशुद्धि करने के पश्चात 108 बार पाठ करने से व्यापर वृद्धि एवं उत्तरोत्तर लाभ होता है।
                        मंत्र है ।। ॐ हीं श्रीं हीं क्लिं श्रीं लक्ष्मी माम गृहे धन पूरय चिन्ताम् तुरय स्वाहा।।
              मनोकामना सिद्धि मंत्र:-  दीपावली की रात्रि को इस मन्त्र का दस हजार जप करने से मनोकामना पूर्ण होती है। साधक जो चाहता है, सिद्ध हो जाता है। मंत्र है-  हीं मातसे मनसे ॐ ॐ ।।
             व्यापार बाधा निवारक मंत्र:-   व्यापर सम्बन्धी बाधाओ को दूर करने के लिए यह अचूक प्रयोग है- दीपावली रात्रि में स्नानादि से निवृत हो शुद्ध वस्त्र एवं शुद्धसन पर बैठकर सामने एक हाथ लम्बा सूती लाल कपड़ा बिछा दे। उस पर काले तिल की ढेरी बनाकर तेल का दीपक जला ले।
                         मंत्र है- ॐ हनुमंत वीर, रखो हद थिर, करो यह काम, वेपार बड़े, तुरंत दूर हो, टाना टूटे, ग्राहक बड़े, कारज सिद्ध होय, न होय तो अंजनी की दुहाई।
                     इस मंत्र से व्यापारिक बाधाये नष्ट होकर व्यापारिक उन्नति का अनुभव होना लगता है।
             
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शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

धन लक्ष्मी साधना एवं प्राप्ति के उपाय - पुस्तक (पेज न. 5)

                                   

                                                      पेज नं 5 

                                                 महालक्ष्मी स्तुति 

                                   अरे माता। लक्ष्मी मम गृह अलक्ष्मी द्रुत हरो
                                   हरो माँ भव बाधा त्रिविध दुःख दूर अति करो
                                   करो ना माँ देरी तुरंत मम टेरी हिय घरो
                                   घरो पाणी मेरे शिर पर भवानी न बिसरो।।1।।
                                   प्रतिज्ञा है तेरी शरण जन रक्षा करण की
                                   इसी आशा पे मै शरण तव आयो भगवती
                                   दया कीजे देवी शरम रख लीजे जगत में
                                   नहीं तो लाजेगो विरद तुमरो सिंधु तनये।।2।।
                                   यथा भाँति अंबे सुर भुवन मध्ये तुम बसो
                                   बसो हो माँ जेसे हरि सहित बैकुण्ठ भुवने
                                   पयोधि में माता सहस्त्र फणशायी युत यथा
                                   उसी भाँति अंबे जगदम्बे तुम बसो।।3।।
                                   बिना तेरे विधा विनय युत पाण्डित्य पदभी
                                   नहीं शोभा पावे सकल गुण संपन्न जन भी
                                    तुम्ही से है सारा सुयश उजियारा जगत में
                                    बड़ायी दानयी अकल हुशियारी हर जगे।।4।।
                                    पिता माता भ्राता भगिनी सुर दारादिक सबे
                                    कृपा दृष्टि तेरी बिन कदर कोई न करते
                                    जहाँ देखू तेरा विमल यश गाते सब जणे
                                    उसी कि है शोभा जिस घर सदा वास तव है।।5।।
                                    यथा बच्चा जच्च स्तन बिन न पाता कल जरा
                                    सहारा जी का सलिल मछली को जिस तरा
                                    जहा में कोई भी पवन बिन जिन्दा न रहता
                                    उसी भाँति सत्ता तुमरी बिन पत्ता न हिलता।।6।।
                                    कदाचारी कमी कलह प्रिय, क्रोधी। कुकरमी
                                    कुबुद्धि, काकाक्षी, कुटिल, कुलघाती क्रतधनी
                                    कुजाति, कुख्याति, शुभनजर तेरी पडत ही
                                    जहा में हो जाता अदब करने योग्य झटही।।7।।
                                    गृहस्थी की गाड़ी अटकी रह जाती तुम बिना
                                    दिली बाते सारी दिल ही रह जाती तुम बिन
                                    सिठाई सेठो की, नृपति ठकुराई न चलती
                                    बिना तेरे मैया मनुज तनहे कौन गिनती।।8।।
                                    पुराणो वेदो में सब जगह गाथा यह सुनी
                                    तुम्ही है सारो की शिर मुकुट शोभा मयमणि
                                    न आदि मधान्त पर अपर विधा इक तुम्ही
                                    तुम्ही आदिमाता सत चित सुखानन्द लहरी।।9।।
                                    मुनि विधारण्य प्रथम घर में थे निरधनी
                                    परंतु माँ तेरे पद रज सहारे सिध हुए
                                    सुनैये वर्षा की अखिल कर्नाटकक नगरी
                                    भगाई सारो की बल पर तुम्हारे भुखमरी।।10।।
                                    निशाना साधे जो तरुतल शिकारी गगन में
                                    उड़े ऊंचा बाज, झपट चकवा को पकड़ने
                                    अहो! माया तेरी विषधर डसा व्याध शर से
                                    मरा पक्षी राजा निबल चकवा यो बच गया।।11।।
                                    पड़ा मै भी ऐसा निबल चकवा सा विपद में
                                    बचाने वाला माँ तुम बिन दिखाई न पड़ता
                                    चलूँ अच्छी रीती तदापि फजीती, तुम बिना            
                                    सभी विधा, बुद्धि, सद्गुण सदाचार रद है।।12।।
                                    रमे पद्मे लक्ष्मी प्रणत प्रतिपाली कर दया
                                    न देखो माँ मेरी करणी, निज सोचो विरद को
                                    बुरा हु तो भी माँ तनय तुमरा हु, विपद में
                                    बचावो माँ आवो, तुरंत धन भंडार भर दो।।13।।
                                    भरोसे पे तेरे कर गरव हे मात! सहसा
                                    अवज्ञा की मैने सुर नर मुनीन्द्रादि सब की
                                    सुनेगी ना मेरी अगर विनती ये दुःख भरी
                                    कहाँ पे जावुंगा शरण किसकी माँ भगवती।।14।।
                                    खड़े होना बाजु धवल युग हस्ती घट लिए
                                    करे हिरा मोती मणि जलभिषेक सतत ही
                                    करो में है तेरे युग कमल मुद्रा वर अभे
                                    नमस्कार दामोदर जनतद्रिरिद्र दलिनी।।15।।
                                    महालक्ष्मी का स्तवन नित भक्ति पढ़े
                                    कभी वाके नहीं रहत घर में धन्य धन की
                                    दरिद्री भी पाता विपुल धन कीर्ति जगत में
                                    मनोवांछा सिद्धि मिलत सुख सरे सहज ही।।16।।
                                    दीवाली को लक्ष्मी विधि सहित पूजा कर पुनः
                                    सूती जो ये गाता गद गद गिरा रैन सगदी
                                    दयालु माता का वरद कर ताके सर फिरे
                                    सुखी होवे, खोवे विपद जग जंजाल सगरे।।17।।
 
                                                              दोहा

                                    हरिवयरी जग जीवनी सुखदायिनी संसार।
                                    "शंकर" की यह प्रार्थना माँ कीजे स्वीकार।।
                                     और नहीं आधार मम जाऊ किसके द्वार।
                                     तुझसी चौदह भुवन में है न बड़ी सरकार-1 ।।
                                     पारब्रह्म की लाड़ली सब कुछ तेरे हाथ।
                                     फिर विलंब क्यों तोरजन, तड़पत है दिन रात।।
                                     आवो माँ आवो तुरंत, अब मत देर लगाव।
                                     संग में ले रिध सिध धनद मोरे घट झट आव-2 ।।
              इसके पश्चात् घी के दीपक व कपूर से आरती करे। ॐ कर्पूर गौरं करुणावतारं, संसारसरं भुजगेन्द्रहारम। सदा वसंत ह्रदयार विन्दे, भवं भवानि सहितं नमामि।। इसके बाद लक्ष्मी जी की आरती करे। पश्चात् आरती व धूप ज्योति का वंदन करे। देवाभिवन्दन, आत्मभिवन्दन, हस्त प्रक्षालन, मन्त्र पुष्पांजलि समर्पयामि- हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करे-
                                              ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यसन। ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे सध्या: सन्ति देवाः।। ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नभव्यम् वेश्रवणाय कुर्महे। स में कामान मध्य कामेश्वरो वेश्रवणा ददातु।।  कुबेराय वेश्रवणाय महाराजाय नमः।
                                             ॐ स्वस्ति साम्राज्य भोज्य स्वराज्य वै राज्य परमेष्ठय राज्य महाराज्यमधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात सार्वभौम: सार्वायूशान्तादपरार्धात् पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताय एकरदिति तदप्येष श्रलोकोडभिगीतो मरुतः परिवंशतारो मरुत्तस्यावसन गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेवीखेदेवाः सभासद इति।।
                                              ॐ विश्वतश्चक्षुरुत: विश्वतोमुखे विश्वतोबहुरत विश्वतसपात। सं बाहुभ्यां धमति स पतत्रैर्धावभूमि जनयन देव एकः। ॐ एकदंताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नोदन्ति प्रचोदयात। ॐ तत्पुरुषाय विदनहे नारायणाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात।
                                               ॐ महालक्ष्यै च विदन हे विष्णुपत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात।
                                               ॐ महालक्ष्म्यै नमः। पुष्पांजलि समर्पयामि।                                                         क्षमा प्रार्थना:-  मंत्र हीनं क्रियाहीनं, भक्ति हीनं सुरेश्वरी। यत्पूजित मयादेवी परिपूर्णम् तदस्तु में।।1।।
                               त्वमेव विधा द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वँ मम देव देव।।2।।
       यजमान को आशीर्वाद:-  ॐ श्रीर्वचस्व मायुष्य मारोग्य, माविधाश्चोभमान महयते। धन धान्य पशु बहुपुत्र लाभं शतसंवत्सर दीर्घमायुः।।3।।
                                          ठडंता चावल गडंता शत्रुः (चावल उडा देवे।)
                                 पूजन सामग्री को यथा स्थिति में रहने दे। प्रसाद ग्रहण कर ले। घी-तेल के दो बड़े दीपक रात भर जलते रखे। प्रातः काल भौर वेला में शुभ समय में गणेश, लक्ष्मी जी को चिरस्थायी निवास करने का निवेदन करके गणपति, सिक्को को तिजोरी में रखे। त्रेलोक्य पूजिते देवी कमले विष्णु वल्ल्भे। यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा।।1।। कमला चंचला लक्ष्मीश्चला भूतिर्हरि प्रिया। पद्मा पद्मालया सम्पद उच्चै: श्री पदमधारिणी।।2।। दादशे तानि नामानि लक्ष्मी संपूज्य यः पढ़ेत। स्थिर लक्ष्मी भर्वेत्स्य पुत्रदरादिमी: सह। लक्ष्मी त्वं सुस्थिरा भवः। प्रसन्नो भवः।।3।। महालक्ष्मीजी को पूजा कक्ष में सुस्थिर करे। कुबेर यंत्र को गल्ले में अन्य श्रीयंत्रादि कि नित्य पूजा करे।
       न्वग्रहादि विसर्जन:-  यांतु देवगणा सर्वे पूजामादाय मामकिम। इष्ट काम समधर्थ पुनरागभ्नायच।।4।।पूजन के जल का सर्वत्र छिटकाव करे। पूजन का सारा उपस्कार ब्राह्मण को देकर, दक्षिणा, प्रसाद आदि से संतुष्ठ करे।


                                               लक्ष्मी प्राप्ति के विविध प्रयोग   

           नागरखंड के अनुसार जो श्री सूक्त द्वारा भक्ति से श्री लक्ष्मी देवी का पूजन करता रहेगा वह सात जन्म तक निर्धन नहीं रहेगा।
           विष्णु धर्मोतर पुराण का मत है कि जो व्यक्ति की सूक्त का भक्ति से पाठ या हवन करता है, उसकी दरिद्रता नष्ट हो जाती है।
           मेरुदण्ड के अनुसार दरिद्रता नाशक कलिकाल में मात्र श्री सूक्त का जप ही है।
           लक्ष्मी सहस्रनाम से पुष्पो का चढ़ाना व् पुरुष सूक्त के साथ संपुट प्रयोग का भी उल्लेख है। लक्ष्मी के साथ विष्णु पूजन भी आवश्यक है। बिना पति के पत्नी पराये घर में क्यों स्थिर होवे ? अतः विष्णु लक्ष्मी पूजन के पश्चात् विष्णु सहस्त्र नाम व गोपाल सहस्त्र नाम का भी पाठ करना चाहिए।
           दीपावली के हदन महालक्ष्मी आदि सभी देवो की सपत्नीक पूजन करके वेदपाठ के साथ कमल पुष्पादि सुख शय्या बिछाकर सुला देना चाहिए।
           व्रतराज में कहा है-  न कुर्वन्ति नरा इत्थं लक्ष्म्या ये सुख सुप्तिकाम।
                                         धन चिंता विहीनस्ते कथं रात्रौ स्वपन्ति हि।।
           सारांश यही है कि जो व्यक्ति कमलो की सुख शय्या पर लक्ष्मी जी को सुलाता है, उसके घर को छोड़कर लक्ष्मी नही जाती।
           श्री सूक्त से पूजा अर्चना करने से समस्त ब्राह्मण जाती भी लक्ष्मी के दरिद्रता के श्राप से मुक्त हुई थी। आख्यान इस प्रकार है महर्षि मृगु द्वारा सहनशीलता एवं क्षमा की परीक्षा में जहाँ बृह्मा, रुद्रदेव असफल हो चुके थे वहाँ भगवन विष्णु सफल घोषित हुए थे। महर्षि मृगु बिना पूर्व सुचना के शयनागार में प्रविष्ठ हुए जहाँ भगवन विष्णु लक्ष्मी के साथ विराजमान थे। महर्षि मृगु ने आव देखा न ताव भगवन विष्णु के वक्ष:स्थल पर पदाघात कर दिया। भगवन विष्णु ने अपने श्वसुर के पदो को सहलाते हुए कहा- मेरी वज्रकर्कश छाती से आपके कोमल चरणो को चोट तो नही लगी? हे ब्राह्मण देव! आज आपने अतीव अनुग्रह किया। आज मै कृतार्थ हो गया। आपके दिव्य चरणो की रज सदा सर्वदा मेरे ह्रदय पर अंकित रहेगी। किन्तु लक्ष्मी जी यह दृश्य देख सहन नहीं कर सकी, उसका अंग प्रत्यंग आक्रोश से भर उठा। पति के अपमान से आहत हो अपने पिता को शाप दे डाला। "हे ब्राह्मण आपका घर एवं अन्य सभी ब्रह्मणो के आवासो का आज से मै परित्याग करती हूँ।" लक्ष्मी के श्राप के बाद पिता (भृगु) ने पुत्री (लक्ष्मी) को बहुत मान-मनुहार की किन्तु टस से मस नही हुई। आखिर में उन्होंने श्री सूक्त से लक्ष्मी की दिव्यस्वरूप की स्तुति की। लक्ष्मी जी प्रसन्न हुई कहा दीपावली की रात को जो ब्राह्मण या साधक इसका पाठ एवं हवन करेगा उस पर लक्ष्मी प्रसन्न होगी। ब्रह्मणो के घरो में शांति एवं समृद्धि दोनों बनी रहेगी। श्री सूक्त का पाठ लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए रामबाण है।                              
                       
  

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सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

धन लक्ष्मी साधना एवं प्राप्ति के उपाय - पुस्तक (पेज न. 4)

                                           

                                                       पेज न. 4

                                      दीपावली पंचमहापर्वीय साधनाएँ                                
                                    धनत्रयोदशी साधना 

                       जैसा कि हम सभी जानते है कि धन त्रयोदशी के दिन आयुर्वेदाचार्य धनवंतरी जी का जन्म हुआ था, साथ ही धनाध्यक्ष कुबेर की पूजा-अर्चना का भी विशेष महत्व है। इसलिए इस दिन धनाध्यक्ष कुबेर लक्ष्मी की साधना का विशेष महत्व है, जिससे घर का खजाना भी सदैव हरा-भरा रहे।
                   
                         साधना सामग्री:-  कुबेर लक्ष्मी चौतीसा युक्त त्रिशक्ति यन्त्रम्, गौमती चक्र, अभिमंत्रित सरसो एवं मंत्रसिद्ध लक्ष्मी दायक मणिया।
                               इस साधना को संपन्न करने हेतु अपने मंदिर या पूजा कक्ष या घर के किसी भी कोने में तीन बाजोट स्थापित करे तथा उन पर लाल वस्त्र बिछाकर बायीं ओर बाजोट पर चावल से शुभ का चिन्ह (शुभ) बनाये तथा दायी ओर के बाजोट पर चावल से लाभ का चिन्ह अर्थात लाभ लिखे। फिर बाये ओर दाये वाले बाजोट के चारो कोनो में गेहूँ की छोटी-छोटी ढेरी बनाकर उन दोनों पर चार-चार तेल के दीपक प्रज्वलित करे व सभी दीपक में थोड़ी थोड़ी अभिमंत्रित सरसो डाले तत्पश्चात बायीं ओर वाले बाजोट पर जहाँ शुभ का चिन्ह लिखा है, उस पर बड़ा पीतल अथवा मिटटी के तेल का दीपक व दायी ओर वाले बाजोट जहाँ लाभ का चिन्ह लिखा है, उस पर भी पीतल या मिटटी का दीपक प्रज्वलित करे। तत्पश्चात मध्य के बाजोट पर चावल से श्री लिखे व् बाजोट के चारो कोनो में उड़द की ढेरी बनाकर उस प्राण प्रतिष्टा युक्त अभिमंत्रित एक एक गोमती चक्र विराजमान करे। उसके बाद एक शुद्ध चांदी या स्टील की थाली लेकर उसमे पुष्प का आसान बनाकर उस पर प्राण प्रतिष्ठा युक्त अभिमंत्रित कुबेर लक्ष्मी व चौतीसा युक्त त्रिशक्ति यन्त्र स्थापित करे तथा उसके चारो तरफ आपके घर के सोने-चांदी के सिक्को को भी थाली में यन्त्र के चारो ओर रख दे और यन्त्र पर मंत्र सिद्ध लक्ष्मी दायक मणिया स्थापित कर दे फिर उस पर सवा पाव पंचामृत द्वारा निम्न मंत्र का जप करते हुए अभिषेक करे-
            यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्यधिपतये धनधान्यसमृद्धि में देहि दापय स्वाहा।
               अभिषेक पूर्ण हो जाने के पश्चात् यन्त्र, सिक्के एवं मणियो को शुद्ध जल से स्नान करवाये तथा दूसरी शुद्ध चांदी या स्टील की थाली लेकर उसमे अष्टगंध से "श्री" का चिन्ह बनाकर, उस पर पुष्पो का आसन बनाकर मध्यवाले बाजोट पर रखे व उसमे त्रिशक्ति यन्त्रम्, सिक्के एवं मणियो को भी विराजमान करे। फिर हाथ में जल लेकर विनियोग करे। -
            अस्य श्री कुबेरमंत्रस्य विश्रवा ऋषि: बृहती छन्द: घनेश्वर: कुबेरो देवता ममाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोग।
                यन्त्र को विराजमान करने के बाद कुबेर का ध्यान करे -
                                       मनुजवाहमविमानवरस्थितं गरुड़रत्ननिभं निधिनायकम्। 
                                       शिवसखं कुमुकुरादिविभूषितं वरगदे दघतं भज तुन्दिलम्।।
               कुबेर का ध्यान करते हुए सभी सामग्रियों पर केसर-अष्टगंध द्वारा तिलक करे, अक्षत चढ़ाये, अबीर-गुलाल, पुष्प, नैवेध चढ़ाते रहे- ॐ श्रीं ॐ ह्नीं श्रीं ह्नीं क्लिं वित्तश्वराय नम:
                     मंत्र जाप पूर्ण हो जाने के बाद कुबेर जी का ध्यान करते हुए क्षमा प्रार्थना करे कि हे कुबेर देवता, मैने मन्त्रहीन, क्रियाहीन एवं बुद्धिहीन होकर जो पूजन किया है उसे स्वीकार करे। कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा करे तथा मुझे आशीर्वाद प्रदान करे कि मेरे घर में सदैव सुख समृद्धि एवं शांति रहे, चिराय़ू हो एवं आपकी कृपा दृष्टि सदैव बनी रहे। इस तरह कुबेर ध्यान एवं क्षमा प्रार्थना के पश्चात् नैवेद्म (प्रसाद) परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करे। सभी पूजन सामग्री यथास्थिति में रहने दे तथा अगले दिन रूप चतुर्दशी कि सांयकाल में उसी स्थिति में पूजा प्रारम्भ करे। कुबेर उपासना तथा ध्यान से दुःख दरिद्रा दूर होकर अन्नत ऐश्वर्य कि प्राप्ति होती है। शिव के सखा होने से कुबेर भक्त की सभी आपत्तियों से रक्षा कर साधक में आध्यात्मिक उन्नति, शांति, सौभाग्य आदि सात्विक गुण प्रदान करते है।

                                              रूप चतुर्दशी साधना 

                     सुख-सौभाग्यदायक कलश, लक्ष्मी प्रिय सिक्के, अभिमंत्रित हल्दी की गांठ एवं 11 लक्ष्मी दायक कौड़िया आदि साधना सामग्री तैयार रखे।
                     यह साधना रूप चतुर्दशी की शाम 07 से 09 के मध्य संपन्न करनी है। इस साधना को केवल स्त्रिया ही कर सकती है और पति इनके पास बैठकर हवन संपन्न कर सकते है।
                    सर्वप्रथम धन त्रयोदशी के दिन पूजित कुबेर लक्ष्मी चौतीस युक्त त्रिशक्ति यन्त्रं को अपने घर के पूजा कक्ष में स्थापित करे तथा उस पर सौभाग्यशाली मणिया भी यन्त्र पर स्थापित कर दे। साथ ही दाये व बाये बाजोट पर रखी सामग्रीयो को यथास्थिति में रहने दे और दोनों बाजोट के  दीपक बदलकर नए दीपक प्रज्ज्वलित करे एवं मध्य के बाजोट पर पूर्व की सामग्री हटाकर एक पात्र में रख दे तथा इस पर पुन: लाल वस्त्र बिछाकर उसके चारो कोनो में लाल मसूर की चार ढेरी बनाकर उस पर मंत्र चैतन्ययुक्त एक-एक हकीक पत्थर रख दे। फिर मध्य में चावल द्वारा स्वस्तिक चिन्ह बना ले। एक शुद्ध चाँदी या स्टील की थाली लेकर उसमे अष्टगंध, केसर या कुमकुम चावल और गुलाब की पंखुड़िया डाले और महालक्षमी से मन ही मन पति की दीर्घायु, सुख शांति, आर्थिक उन्नति एवं जो भी समस्या हो उसे दूर करने की कामना करे और मेरी साधना सफल हो "अहंकरिस्यामि" कहते हुए जल छोड़ दे। फिर अपने हाथश्शुद्ध जल से धोले। अब पीले चावल ले या हल्दी युक्त चावल की तीन मुठ्ठी थाली में डाले। बाद में थाली में सुख सौभाग्यर्धक कलश विराजमान करे तथा कलश के चारो ओर जो सिक्के धनत्रयोदशी की पूजा में रखे थे उन्हें भी चारो ओर रख दे। फिर कलश के अंदर लक्ष्मी प्रिय सिक्के डाले। उन पर केसर, कुमकुम से तिलक करे, अक्षत चढ़ावे, पुष्प नैवेद्य चढ़ावे फिर एक पात्र (कुण्ड) लेकर उसमे थोड़ी कपूर की टिकिया और अभिमंत्रित सिद्ध कमलगट्टे एवं हल्दी की गांठ उसमे डालनी है। फिर उन पर घी डालकर अग्नि प्रज्ज्वलित करे और निम्न मंत्र का उच्चारण करने के साथ साथ एक-एक कोडिया उसमे डालते रहे। चिंतन करे कि जैसे जैसे यह क्रिया संपन्न हो रही है, घर में व्याप्त दुःख, विपत्तिया, कष्ट एवं पति की सभी परेशानियां समाप्त हो रही है। मंत्र इस प्रकार है -
                                                           ॐ  ऐं  ऐं  अक्षय  लक्ष्मी  ऐं  ऐं  नम:।
                      इस मंत्र को 11 बार पढे और एक कौड़ी को अग्नि में डाले, फिर मंत्र को 11 बार पढ़े और एक कौड़ी अग्नि में डाले। यह प्रक्रिया दुहराकर सारी कौड़िया (11) अग्नि में डालनी है। साथ ही साथ घी व कपूर भी डालते रहे जिससे अग्नि निरंतर जलती रहे।
                      यह क्रिया संपन्न करने के पश्चात् माँ लक्ष्मी से आशीर्वाद मांगने की मुद्रा में प्रार्थना करे, तत्पश्चात सुख-सौभाग्यवर्द्धक कलश को अपनी तिजोरी में सिक्के सहित सादर विराजमान कर दे तथा बाकि बचे सिक्के पूजा कक्ष में रख दे। थाली में चावल लेकर घर के सभी कोनो में थोड़े-थोड़े डाल दे। कौड़िया पूर्ण रूपेण नही जलती इसलिये कौड़ियो को उठाकर अपने घर के उत्तर-पूर्व ईशान कोण में गड्ढा खोदकर गाड़ दे। काली हल्दी की राख को पूजा कक्ष या घर में रख दे तथा अगले दिन उसे अपने गले पर लगावे। ऐसा करने से पति की आयु में वृद्धि, पति-पत्नी में मनमुटाव ख़त्म तथा आर्थिक सुख समृद्धि एवं शांति प्राप्त होती है।

                                   विष्णु महालक्ष्मी साधना एवं पूजा  

              धन त्रयोदशी, रूप चतुर्दशी साधनाये प्रत्येक साक्षार व्यक्ति कर सकता है, विद्धान ब्राह्मण हो तो और भी अच्छा है, किन्तु दीपावली के दिन विष्णु महालक्ष्मी साधना और पूजा में विद्वान ब्राह्मण की आवश्यकता होती है। विद्वत् ब्रह्मण द्वारा की गयी साधना, पूजा-अर्चना ही श्रेयस्कर एवं फलीभूत होती है। दीपावली का दिन, जिसका सभी को वर्ष भर इंतजार रहता है प्रत्येक व्यक्ति माता लक्ष्मी का आशीर्वाद पाना चाहता है, किन्तु भगवान विष्णु को याद नही करता। कोई भी पत्नी अपने पति के बिना आपके यहाँ कैसे आएगी इसलिए दीपावली के विशेष अवसर पर माता लक्ष्मी के साथ शेष शैययाधारी भगवान विष्णु की पूजा करना अत्यंत आवश्यक है। इस दिन विष्णु-लक्ष्मी साधना  एवं पूजा संपन्न की जानी चाहिए।
                  साधना सामग्री:-  प्राण प्रतिष्ठित अभिमंत्रित विष्णु-लक्ष्मी प्रतिमा, अभिमंत्रित कमल पुष्प, सिंहासन, मंत्रसिद्ध माला, ब्राह्मण निर्देशित पूजन सामग्री, सौभाग्यदायक कलश, दीपक, शंख, कुबेर लक्ष्मी यन्त्र, बही रजिस्टर रोकड़ खाता, तराजू, लेखनी, दवात आदि।
                  साधना पूजा सामग्री:-  वैसे दीपावली की सम्पूर्ण रात्रि ही शुभ है, तथापि साधना-पूजा वृषभ एवं सिंह लग्न में करना सर्वश्रेष्ठ है। इसके लिए स्नानादि से निवृत होकर स्त्रिया लाल साड़ी एवं पुरुष श्वेत वस्त्र धारण करे। फिर दायी और बाये वाले बजट के मध्य में जहाँ शुभ और लाभ लिखा हुआ है, उस पर तांबे के कलश में पानी भरकर, उस पर अशोक वृक्ष के पत्ते लगाकर नारियल स्थापित करे तथा चारो ओर गेहुं की ढेरियों पर पुन: नए दीपक प्रज्ज्वलित करे और मध्य के बाजोट को पुन: साफ करके कपडा बिछा दे। तत्पश्चात मध्य के बाजोट पर चारो कोनो में चावल की ढेरिया बना दे और थाली लेकर उसमे पुष्प का आसन बनावे तथा उसमे मन्त्र चैतन्ययुक्त एवं अभिमंत्रित विष्णु लक्ष्मी प्रतिमा विराजमान करे तथा उनके आगे लक्ष्मी प्रिय कमल पुष्प रख दे।

                                       सांगपाग महालक्ष्मी पूजनम् 
                                             
                    पूजन की सामग्री विद्वान ब्राह्मण के निर्देशानुसार कटोरियों में रख देवे। केसर को घिसकर कटोरी में लेवे। कुमकुम का स्वास्तिक करे। उस पर कोरा तांबुल, सुपारी, मोली, गुड, धाणा, घ्रोब(पूर्वा), पैसा (मुद्रा) रखकर गदी बिछा देवे। फिर गदी पर यजमान बैठकर पूजन प्रारम्भ करे।
                   
                     शिखा (चोटी) बंधन करे:-      ॐ चिद्रुपिणी महाम्माये दिव्यतेज:समन्विते।
                                                                   तिष्ठ देवी शिखा बंधे तेजो वृद्धि: कुरुष्वमें।। ।।
                                           
                                                                   आचमन-प्राणायाम करे।
                                                                   फिर-ॐ अपवित्र: पवित्रोर्वा सर्वावस्थाडंगतोडपिवा।
                                                                   य: स्मरेतपुण्डरीकाक्षं स बाहयामभ्यवर: शुचि: क।। 2 ।।
                          इस मंत्र से वाम (बाया) हाथ में जल लेकर दाये (दक्षिण) हाथ से स्वयं एवं पूजा सामग्री पर जल के छींटे लगाने, श्री कृष्ण का ध्यान करने से अपवित्र भी पवित्र हो जाता है। इसके पश्चात् यजमान के ललाट में तिलक इस मंत्र से करे -
                                                        ॐ स्वस्तिना इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्तिन: पूषा विश्ववेदा:।
                                                        स्वस्तिनस्तारक्ष्र्यो अरिष्टनेमि: स्वस्तिनो बृहस्पतिद्रघतु:।। 3 ।।
                         
                             यजमान के कुमकुम तिलक करके अक्षत लगावे। पुरुष के दाये (जिमणे) हाथ व स्त्री के बाये (डावे) हाथ में मोली बांधे। सिर पर पगड़ी पहिने तथा या सिर पर मोली रखकर पूजन प्रारम्भ करे।

                           प्रथम नमस्कार करे:-  ॐ श्री मन्महागणाधिपतये नम:। इष्ट देवताओ नम: कुलदेवताभ्योनम:। ग्राम देवताभ्योनम:। स्थानदेवताभ्योन्म:। वास्तुदेवताभ्यो नम:। वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नम:। श्री लक्ष्मीनारायणाभ्याम् नम:। श्री उमामहेश्वराभ्याम् नम:। शची पुरन्दराभ्याम् नम:। मातृपितृचरण कमलेभ्यो नम:। श्री गुरुभ्यो नम:। परमगुरुभ्योनम:। परमेश्दी गुरुभ्योनम:। पराप्तरगुरुभ्यो नम:। सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम:। निर्विघन मस्तु।।
                         
              गणपति स्मरण:- 
                      ॐ समुखश्चेक दन्तश्च कपिलो गजकर्णक:। लम्बोदरश्च  विकटो विध्नाशोगणाधिप: ।। 1 ।।                             धुम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भाल चन्द्रो गजानन:। द्वादशे तानि नामानि य: पठेच्छ्रणुयादपि ।। 2।।
                      विधारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्वस्य न जायते ।। 3।।
                      शुक्लाम्बर धरंदेवं शशिवर्ण चतुर्भुजम, प्रसन्नवदनं ध्यायेत सर्वविघ्नोपशान्तये ।। 4 ।।
                      अभिसितार्थ सिद्धयर्थ पूजितो य: सुरासुरै:। सर्व विघ्न हरस्तस्मै गणाधिपतये नम: ।। ।।
                      सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।। ।।
                      सर्वदा सर्वकार्येषु नास्तितेषाममंगल येषा ह्रदिस्थो भगवान मंगलायतनं हरि।। ।।
                      तदैव लग्न सुदिनं तदैव ताराबलं चन्द्र बलं तदैव। विधाबलं दैव बलं तदैव लक्ष्मीपते तेंघ्रियुगं                           स्मराभी ।। ।।
                      लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषा पराजय:। येषामिन्दिवरश्यामो ह्रदयस्थो जनार्दन:।। 9 ।।
                      यत्र योगीश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्घर:। तत्र श्री विर्जयो भूतिधुर्वा नीतिर्मतिमर्म ।। 10 ।।
                      सर्वेष्वारब्ध कार्येषु त्रयस्त्रि भुवनेश्वरा:। देना दिशन्तुन: सिद्धि ब्रहमेशान जनार्दना ।। 11 ।।
                      विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्म विष्णु महेश्वरान। सरस्वती प्रणभयादौ सर्वकार्यार्थ सिद्धये ।। 12 ।।
                     अनन्यअश्चिन्तयन्तो माँ ये जना: पर्युपास्ते।तेषां नित्याभियुक्तानां योग क्षेम वहाभ्यम्।।13।।
                      स्मृते सकल कल्याण भाजन यत्र भाजते। पुरुष तमजं नित्यव्रजामि शरणं हरिम ।। 14 ।।
                      विश्वेशं माघवं ढुदीं दण्डपापी च भैरव। वंदे काशी गुहा गंगा भवानी मणिकर्णिकाम ।। 15 ।।
                     
          अथ संकल्प:-   ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्री मदभगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्री ब्रहमणोड द्वितीयेपराद्वेर श्री श्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुग कली प्रथम चरणे जम्बुद्विये भरत खण्डे आर्यावर्तान्तगर्त ब्रहमाव्रतकदेशे कुमारिका क्षेत्रे श्री मन्महान्ध भागीरथ्या: पश्चिम दिग्भागे श्री मन्नर्प विक्रमादित्य राज्यात अमुक वर्षे, अमुक सवत्सरे, अमुकअयने, अमुकऋतो, अमुकमासे, अमुक पक्षे, अमुकतिथौ, अमुकवासरे, एवमादि ग्रह्गुण विशेषण विशिष्टे देशेकाले, अमुक गोत्रोत्प्न्नोह, अमुक नाम, मम सकुटंबस्य सपरिवारस्य कायिक, वाचिका, मानसिक सांसर्गिक चतुर्विध पाप क्षयपूर्वक सर्वापच्छन्ति पूर्वक, पुत्र पौत्र धनधान्य समृद्धि दीर्घायु ऐश्वर्याभिवृद्धयर्थम मम भवने स्थिर लक्ष्मी निवासार्थ सर्वाभीष्ट संसिद्य़र्थ सर्वविध व्यापारे उत्तरोत्तर लाभार्थ, सुवर्ण रजत मणि माणिक्य सम्पदा अभिवृद्धार्थ महालक्ष्मी देवता प्री त्यर्थ महालक्ष्मया: पुजनमहं करिष्ये।
                           ( यहाँ करिष्ये- अपने लिए पूजा पाठ करते समय।  करिष्यामि- यजमान के लिए पूजा पाठ करते समय।  कारयिष्ये- ब्राह्मण द्वारा पूजा पाठ कराना हो तो कहना चाहिए। )

                          दिग रक्षण:-   अप्सर्यन्तु ते भुता ये भुता भूमि संस्थिता। ये भुता विघ्नकर्तारस्ते-नश्यन्तु शिवज्ञया ।। 1।।     चारो दिशायों में से सरसो के दाने फेंके।
                        भैरव नमस्कार:-  ॐ तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पान्त दहनोपम। भैरवाय नमस्तुभ्यं मनुज्ञा दातु मह्रसी।। 2 ।।    ॐ भं भं भैरवाय नम:। भैरव को नमस्कार करे।
                        कलश पूजनम:-   ॐ वं वं वरुणाय नम:, सर्वे समुद्रा: सरितसतीर्थानी जलदा नदा:। आयान्तु देव पूजार्थ दुरित क्षय कारक: ( सम्मुखस्थ कलश के मोली बांधे, पांच पान, सुपारी, दूर्वा, मुद्रा, अक्षत व जल से पुरितकर ऊपर पूर्ण पात्र, लाल वस्त्र से वेष्टित सेदुरूप नारियल रखे )  कलश के चारो दिशाओ में चार बिंदिया देते हुए बोले- ॐ पूर्वे ऋग्वेदाय नमः, दक्षिणे यजुर्वेदय नमः, पश्चिमे सामवेदय नमः, उतरे अर्थववेदय नमः। हाथ जोड़े- ॐ कलशस्य मुखे विष्णु: कष्टे रुद्र: समाश्रित:। मुले तत्र स्थितो ब्रहमा मध्ये मातृगणा: स्मृता।।1।।
 कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्रद्वीपा वसुंधरा। ऋग्वेदास्थ यजुर्वेद: सामवेदोहयथर्वण:।। 2 ।।
अङ्गेश्च सहिता: सर्वे कलशांतु समाश्रिता:। अत्रगायिनी सावित्री शांति: पुष्टि करी तथा ।। 3 ।।
आयान्तु मम शान्त्यर्थ द्रितक्षय कारका:। गंगे च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधि कुरु ।। 4।।
ब्रह्माण्डोडरतीर्थानि करै:। स्प्रस्टानी ते रवे। तेन सत्येन में देव तीर्थ देहि दिवाकर।। 5।। ( आस्मिंकलशे वरुण सांडगं सपरिवार सायुध सशक्तिम आवाहयामि )
                          कलश प्रार्थना:-   देवदानव संवादे मध्यमाने महोदधौ। उत्पन्नोडसी तदा कुम्भ विघ्रतो विष्णुना स्वयं। त्वतोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वेत्वयि स्थिताः। त्वयि तिष्ठन्ति भूतानी त्वयि प्राणा: प्रतिष्ठिता:। शिव स्वयं त्वमेवाड़सी विष्णुस्त्वं च प्रजापति:। आदित्य वसवो रूद्र विश्वेदेवा: सपत्रक:। त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेपि यतः कामफल प्रदा:। त्वत्प्रसादाद इमा पूजां कर्तुमिदे जलोदभ्व। सानिध्य कुरु में देव प्रसन्नो भव सर्वदा। प्रसन्नोभव। वरदोभव (कलश का जल पूजा के लिए पंचपात्र में या अन्य पात्र में कुछ ले लेवे व् उस जल से भी छींटे डालकर प्रोक्षण करे। यजमान के सम्मुख दक्षिण दिशा को छोड़कर पाटा बिछाकर या अष्टदन बने कोष्ठक के बिच में कलश को स्थापित कर सकते है। कलश के मध्य सेंदरूप नारियल की पूजा कर लाल या पीला कपडा वेष्टित कर कलश के ऊपर रखे, ताम्बूल, पीपल या अशोक वृक्ष के पत्ते, कुमकुम अक्षत एवं पुष्पादि से पूजा कर सिक्का भी कलश में डाले।
                          दीप पूजनम्:-   भो दीपदेवी रूपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्राविहनकृत। यवतकर्म समाप्ति: स्यात तावतवं सुस्थिरो भव ।। 1 ।।
                          शंख पूजनम:-   शंखादौ चन्द्रदेवतयं कुक्षेवरुण देवता। पृष्ठे प्रजापतिश्चैव अग्रे गंगा सरस्वती। त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि वासुदेवस्य चाज्ञया। शंखे तिष्ठन्ति विरपेन्द्र तस्मशंख प्रपूजते। त्वं पूरा सगरोत्पन्नो विष्णुना विघ्रता करे। निर्मितः सर्वे देवैश्च पांचजन्य नमोस्तुते। ॐ पांच जनयाय विदभहे पावमानय धीमहि। तन्न: शंख प्रबोदयत। (शंख के चन्दन, पुष्प चढ़ावे)
                          घंटा पूजनम:-   आगमनार्थ तु देवानां गमनार्थ च रक्षसां। कुरुघंटे वरं नादं देवता स्थान सन्निघौ। प्रार्थना के बाद घण्टा बजाये और यथास्थान रख दे ( घण्टा को चन्दन-फूल से अलंकृत कर उक्त मंत्र पडे )
                         ॐ भूभुर्वः स्व: घन्टास्थापय गरुड़ाय नमः आवाहयामि। सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि नमस्करोमि।
                          इसके पश्चात् स्वस्ति पुष्याहवाहन भी करना चाहिए।
                           स्वस्त्ययन-  ॐ आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतोड़दबदासो अपरितस उद्विद:। देवा नो यथा सदमिद वृधे असन्नप्रयुवो रक्षितारो दिवे दिवे।।
                             देवना भद्रा सुमतिॠजूयतां देवना छुं रातिरभि नो निवर्तताम। देवानां छुं सख्यमुपसेदिभा वयं देवा न आयु: प्रतिरन्तु जीवसे।। तनपूर्वया निविदा हुम्हे वयं भंग मित्रमदिति दक्षमस्त्रिधम्। अर्यमण वरुण छुं सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत।। तन्नो वातो मयो भु वातु भेषज तन्मता पृथिवी तत्पिता ह्यो:। तद ग्रावान: सोमसुतो मयोभुवस्तदशविना श्रृणत घिषया युवम्।। तभीशान जगतस्तुसथुशासपति घीयनजीनवभव्से हुम्हे वयम। पूषा नो यथा वेदसांसद व्रघे रक्षिता प्युर्दब्ध स्व्स्तये।। सवस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति नस्ताश्रयों अरिष्टनेमी स्वस्ति नो बृहस्पतिदर्घातु।। प्रषदश्वा मरुत: प्रश्नीमातर: शुभ यावानो विद्थेषु जगमय:। अग्निजिह्म मनव: सुरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह।।भद्र कर्णेभी: श्रृनुयाम देवा भद्र पश्येमाक्षभीर्यजत्रा:। स्थिरेरडगेस्तुष्टुवा घू सस्तनूभिवर्यशेमहि देवहित यदायुः। शतमिभु शरदो अंति देवा यत्रा नश्चक्रा जरस तनूनाम। पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्य रिरिश्तायुगन्ति:। अदितिगौरधितिरन्त्रिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्र:। विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिरजातमदितिरजनितवं।। घौ: शान्तिरन्तरिक्ष घूं शांति: पृथिवी शान्तिराप:  शांतिरोषिधय: शांति। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवाः शांतिब्रह्म शांतिः सर्व घुश्शन्ति: शान्तिरेव शांति: सा मा शान्तिरेधि।।यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु। शं नः कुरु प्रजाभ्योडभय नः पशुभ्य:।। सुशान्तिर्भवतु।।
                          संक्षिप्त पुन्यहवाहनम:-   यजमान बोले- ब्रह्मा पुण्य महर्यच्च सृष्टय़ुत्पादनकारकम्।                                                                              वेद वृक्षोदवं नित्यं तत्पुन्याह ब्रुवन्तु नः।
                                                                   भो ब्राह्मणा: मम सकुट्मबस्य स परिवारस्य गृहे लक्ष्मी
                                                                   पूजन कर्मण: पुण्याहं भवन्तो ब्रुवन्तु।
                                                                   ब्राह्मण- ॐ पुण्याहं, ॐ पुण्याहं, ॐ पुण्याहं।
                                                                   ॐ पुनन्तु मा देवजना: पुनन्तु मनसाधिय:।                
                                                                   पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेद: पुनिहिमा।।
                                           यजमान बोले:-  पृथिव्यामुद्घ्रताया तु यत्कल्याण पुरा कृतम।
                                                                    ऋषिभि: सिद्धगन्धवेस्तत्कल्याण ब्रुवन्तु नः।
                        भो ब्राह्मणा: मम सकूटमबस्य सपरिवारस्य गृहे लक्ष्मीपूजन  कर्मण: कल्याण भवन्तो ब्रुवन्तु।                          ब्राह्मण:-  ॐ कल्याणम्, ॐ कल्याणम्, ॐ कल्याणम्
                                        ॐ  यथेमा वाचं कल्याणमावदानी जनेभ्यः। ब्रह्मराजन्याभ्या घू शूद्राय चार्यय च स्वाय चरणाय च। प्रियो देवना दक्षिणाये दतुरिह भूयासभयं में कामः समृध्यतामुप मादो नमतु
                                           यजमान बोले:-   ॐ सागरस्य तू या ऋद्विर्महालक्ष्मयादिभि: कृता।
                                                                     संपूर्णा सुप्रभावा च तां च ऋद्वि ब्रुवन्तु नः।।
                       भो ब्राह्मणाः मम सकुट्मबस्य सपरिवारस्य गृहे महालक्ष्मीपूजन कर्मण: ऋद्वि भवन्तो ब्रुवन्तु।
                          ब्राह्मण:-  ॐ कर्म ऋध्यताम, ॐ कर्म ऋध्यताम, ॐ कर्म ऋध्यताम
                              ॐ सत्रस्य ऋद्विरस्यगनम ज्योतिरमृता अभूम। दिव पृथिव्यां अध्याडरूहामाविदाम देवान्त्स्वज्योर्ति:
                                           यजमान पुनः बोले:-  ॐ स्वस्तिस्तु याडविनशाख्या पुष्यकल्याणवृद्विदा।
                                                                            विनायकप्रिया नित्यं तां च स्वस्ति ब्रुवन्तु नः।
                       भो ब्राह्मणा: मम सकूटमबस्य सपरिवारस्य गृहे लक्ष्मीपूजन  कर्मण: स्वस्ति भवन्तो ब्रुवन्तु।
                         ब्राह्मण:-  ॐ आयुष्मते स्वस्ति, ॐ आयुष्मते स्वस्ति, ॐ आयुष्मते स्वस्ति
                               ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति नस्ताश्रर्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।
                                            यजमान बोले:-  ॐ समुद्रमथानाज्जता जगदानन्दकारिका।
                                                                     हरिप्रिया चा मांगल्या तां श्रिय च ब्रुवन्तु नः।
                        भो ब्राह्मणा: मम सकूटमबस्य सपरिवारस्य गृहेकरिष्यमाणस्य महालक्ष्मी पूजनकर्माण: श्रीरस्तु इति भवन्तो ब्रुवन्तु।
                         ब्राह्मण:-  ॐ अस्तुश्री:, ॐ अस्तुश्री:, ॐ अस्तुश्री:
                                ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्योवहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनो व्यातम्। इषणन्निषाणाभु म ईशाण सर्वलोक म ईशाण।
                                            यजमान बोले:-  ॐ मृकण्डसूनोरयुर्यद ध्रुवलोमश्योस्तथा।
                                                                     आयुषा तेन संयुक्त जीवेम शरदः शतम।।
                         ब्राह्मण:-  ॐ शतम जीवन्तु भवन्त:, ॐ शतम जीवन्तु भवन्त:,
                                        ॐ शतमिन्नु शरदो अंति देवा यत्रा नच्चक्रा जरसं तनूनाम।
                                        पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषताय़ुर्गान्तो:।।
                                           यजमान बोले:-  ॐ शिवगौरी विवाहे तु या श्री रामे नृपात्नजे।
                                                                    घनदस्य गृहे या श्रीरस्माकं सास्तु सञनि ।।
                     
                        ब्राह्मण:-  अस्तु श्री:, अस्तु श्री:, अस्तु श्री:।
                                         ॐ मनसः काममाकूति वाच: सत्यमशीय ।
                                         पशुना घूं रूपभन्नस्य रसोयश: श्री: श्रयता मयि स्वाहा ।।
                                                 यजमान पुन: बोले:-  प्रजापतिर्लोकपालो घाता ब्रह्मा च देवराट।
                                                                                 भगवान्छाश्रवतो नित्यं स नो रक्षतु सर्वत:।
                                                                                 योडसो प्रजापति: पूर्वे य: करे पदमसम्भव:।
                                                                                 पदभा वै सर्वलोकानां तन्नोडस्तु प्रजापते ।।
                       पश्चात् हाथ में जल लेकर छोड़ दे और कहे:- भगवान प्रजापति: प्रियताम्।
                         ब्राह्मण:-  ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा रूपाणि परिताबभूव।
                                          यत्कामास्ते जुहमस्तभो अस्तुवय घूं स्याम पतयो रयीणाम ।।
                                                 यजमान बोले:-   आयुष्मते स्वस्तिमते यजमानाय दाशुषे।
                                                                           श्रिये दताशिष: सन्तु ऋत्विग्भिर्वेद पारगे:।।
                                                                           या स्वस्तिर्ब्राह्मणो भूता या च देवे व्यवस्थिता।
                                                                           धर्मराजस्य या पत्नी स्वस्ति: शांति: सदा मम।।
                                                                           देवेन्द्रस्य यथा स्वस्तिर्यथा स्वस्तिरगुरोरगृहे।
                                                                           एकलिंगे यथा स्वस्ति तथा स्वस्ति सदा मम।।
                       ब्राह्मण:-   ॐ आयुषमेत स्वस्ति, ॐ आयुषमेत स्वस्ति, ॐ आयुषमेत स्वस्ति
                                         ॐ प्रति पन्थामपदनहि स्वस्तिगामनेहसम।
                                         येन विश्वा: परि दिषो वृणक्ति विदंते वसु।।नत्
                                         ॐ पुण्याहवाहन समृद्धिरस्तु।।   
                                                  यजमान बोले:-    अस्मिन् पुन्यहवाहन न्यूना तिरिक्तो योविधिरूपविष्ट ब्राह्मणानां वचनात श्री महागणपति प्रसादच्च परिपूर्णेडिस्तु।
                    दक्षिणा संकल्प:-   कृतस्य पुण्याहवाहनकर्मण: समृद्धयर्थ पुन्यहवाहकेभयो ब्राह्मणेभ्य इमां (जितनी दक्षिणा देनी हो) दक्षिणा विभज्य अहं दास्ये।
                     ब्राह्मण:-  ॐ स्वस्ति।
आगे पाटे या बर्तन में अभिमंत्रित प्रतिष्ठा युक्त गणेश जी , चाँदी आदि के सिक्के , अभिमंत्रित विष्णु लक्ष्मी प्रतिमा , महालक्ष्मी श्री यन्त्र , कुबेर यन्त्र आदि को व्यवस्थित रखकर मंत्रो के द्वारा गंधाक्षत , पुष्पादि से पूजा करे।
गणपति पूजनम :- ॐ गं गणपतये नम : । ॐ गजवक्त्र गणाध्यक्ष सर्व विघ्न विनाशन:। लम्बोदर त्रिनेत्राढ़य आगच्छ गणनायक ।। 1 ।। ॐ गणनंतवा गणपति घू हवामहे प्रियानांतवा प्रियपति घू हवामहे निधिनान्त्वा निधिपति घू हवामहे वासो मम । आहमजानि गर्भधभत्वाभजासि गर्भधम। ॐ भूर्भुव : स्व: ऋद्धि सिद्धि : लक्ष लाभ सहित गणपते इहागच्छ इहातिष्ठ । ॐ श्री ही  क्लीं ग्लौ गं गणपतये नम: गणपतिभावाहयामी स्थापयामि। ( दूध , दही , घी , शहद और शक्कर से स्नान कराकर , शुद्ध जल से स्नान कराकर कुमकुम , केशर या चन्दन का तिलक गंधाक्षत एवं पुष्प चढ़ावे तथा धूप दीप नैवेद्य फल तथा ताम्बुल चढ़ाकर प्रार्थना करे -
                            नमस्ते ब्रम्हरूपाय विष्णु रूपाय ते नम: ।
                            नमस्ते रूद्ररूपाय करिरूपाय ते नम: ।
                            विश्वरुपस्वरूपाय नमस्ते ब्रम्हचारिणी।
                            भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक।।
                           अनेन कृत पूजनेन सिद्धि बुद्धि सहित : श्री भगवान गणाधिपति : प्रियन्ताम्।
                            एक आचमनी जल निर्माल्य पात्र में छोड़ दे।
लक्ष्मी आह्वाहनम् :-  या श्री स्वयं सुकृतिनां भुवनेश्व लक्ष्मी : पापात्मनां कृतधियां ह्रदयेषु बुद्धि :। श्रृद्धा सतां कुलजन प्रभवस्य लज्जा , ता त्वां नता : स्म् परिपालय देवी विश्वम।  श्री आवाहयामि , ॐ श्रीं हीं क्लीं लक्ष्मिरागच्छागच्छ मम मन्दिरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा।  ॐ श्रीं हीं क्लीं श्रीं सिद्ध लक्ष्मयै नम: । ॐ श्रीं हीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री हीं श्रीं महालक्ष्मयै नम : ।
अर्थ: ध्यानम:-   या सा पद्नासनस्था विपुलकटितरि पदमपत्रायताक्षी गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता                                  शुभ्रवस्त्रोतशिया
                         या लक्ष्मिर्दिव्यरुपेमणिगणखचितै: सापिता हेमकुम्भै:
                         स नित्यं पदमहस्ता मम वास्तु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता ।।
ॐ अम्बेडमभीकेभ्वालिके नमा:, क्लिं महालक्ष्मी, श्री महालक्ष्मी हीं महासरस्वती सहित महालक्ष्मी आवाहयामि स्थापयामि। आवाहनार्थे आसनार्थे कमलादि पुष्पाणि समर्पयामि। पूजयामि।                       विष्णु का ध्यान एवं पूजन करे:-   शान्ताकारं भुजग शयनं पदमनाभं सुरेशं, विश्वधर गगन सदृशं मेघवर्ण शुभाडगम। लक्ष्मीकान्त कमल नयन योगिभिर्ध्यान गम्य, वन्दे विष्णु भवभय हरण सर्वलोक नाथम ।।1।।
                                                  आवह्येत गरुडोपरि स्थित, रमार्ध देह सुरराजवन्दितम्। कंसंतक चक्रगदाब्ज हस्त भजामि देव वासुदेव सुनुम ।।2।।
 ॐ विष्णोरराटमसि विष्णो: शनप्रे स्थो विष्णो: स्युरसि विष्णोधरवोडसि। वैष्णवमसि विष्णवे त्वा ।। देवदेव जगन्नाथ भक्तानुग्रहकारम्। चतुर्भुज रमानाथ विष्णुभावाहयाम्यहम्। ॐ नारायणाय विदभहे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु: प्रचोदयात ।। वैकुण्ठलक्ष्मी सहित विष्णो आवाहयामि, स्थापयामि ।। पूजयामि ।। गंधाक्षत, फल-पुष्पर्ण समर्पयामि।
    शिव:-   ऐ हयेहि गौरीश पिनाकपाणे शशांक मौले वृषभाधिरूढ़। देवाधि देवेश महेश नित्यं ग्रहणा पूजा भगवान नमस्ते ।।1।। ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवाय धीमहि । तन्नो रूद्र : प्रचोदयात ।। 2 ।। ॐ नम: शम्भवाय च रुद्रकालशोपरि रूद्र आवाहयामि , स्थापयामि , पूजयामि।  गंधाक्षत , फल - पुष्पाणी समर्पयामि।
    सूर्य :-  आवाह्यन्तं द्धिभुजं दिनेश सप्ताश्ववाहनं धुमणि ग्रहेशम।
                सिंदूरवर्ण प्रतिमावभासं भजामि सूर्य कुलवृद्धिहेतो ।। 2 ।।
                ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्य च।
                हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।
नवग्रह स्मरण - पूजन :-  ॐ ब्रह्मभुरारि स्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशि भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुकः शनि राहु केतवः सर्वेग्रहा शान्तिकरा भवन्तु। (नौ सुपारी लेकर कुंकुमादि लिकर कर गंधाक्षत पुष्प फलादि समर्पित कर अष्ट-नवदलादि कोष्टकों में रखे। नवग्रहो को नमस्कार करे।)
नवग्रह सहित:-  ॐ  सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुरवे नमः, ॐ शुक्राय नमः, ॐ शनैश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः,ॐ केतवे नमः आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि।
इन्द्र:-  ऐरावत समारुढो व्रज हस्तो महाबल:। शतयज्ञाधिपो देव स्तस्मै इन्द्रय ते नमः।। स्वर्ग लक्ष्मी सहित इन्द्रम आवाहयामि स्थापयामि, पूजयामि।
कुबेर पूजा:-  तिजोरी या गल्ले में स्वस्तिक करे। कुबेर यन्त्र की स्थापना करे। पान पर सुपारी, हल्दी गंठिया, धनिया, कमलगट्टा, सिक्का, रूपये आदि रखे फिर मंत्र बोले- ॐ आवाहयामि कुबेरत्व मिहायही कृपा करन। कोष वर्दक नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।    कुबेरत्व धनाधीश गृह्यते कमलस्थितां। ता देवी प्रेषयाशु त्वं मद्गृहे ते नमोनमः।।  धनदाय नमस्तुभयं निधि पद्भाधिपय च। भगवंतु त्वत्प्रसदनमे धन धान्यादि सम्पदः।।    ॐ श्री वित्तेश्वराय, कुबेराय आवाहयामि स्थाप्यमि।।   इष्टदेवता कुल देवी देवताध्यान, आवाहयामि स्थापयामि पूजयामि च।
  फिर आचमनी से जल चढ़ावे:-  पादयोः पद्म समर्पयामि।  हस्यो अध्र्य समर्पयामि, मुखे आचभनीय समर्पयामि। सर्वागे स्नानीय समर्पयामिगङगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदा जले:। स्नापितोडसी मायदेव तथा शांति कुरुष्व में।।  पंचामृत स्नानं समर्पयामि-पयोदधि घृत चैव मधु च शर्करायुतम्। पंचामृत मयनित स्नानार्थ प्रतिग्रहयतम।।  शुद्धिदक स्नानं समर्पयामि (इद मत्र वस्त्र, पुष्प, धुप, दीप, नैवेध दक्षिणा, समर्पयामि।
 अमृताभिषेक:-  यहां गणपति अथर्वशीर्ष, पुरुष सूक्त, श्री सूक्त आदि किसी भी मंत्रो से दुग्धधारा, पंचामृतदी से गणपति, सिक्को, विष्णुलक्ष्मी प्रतिमा, श्री यन्त्र पर अभिषेक करे।
  श्री सूक्त से अमृताभिषेक-पूजा सम्मुचय में न्यास क्रम:-    हिरण्यवणाम…....  मुघ्न।  ताम्र आवह…… नत्रमा।  अश्वपुर्णमी…… कर्णयो।  कंसोस्मितम्……नाशिकयों। चन्द्रा प्रभासाम……  नाभो। मनस: कामना  .... गुह्ये। कर्दमेन…… आपाने।  आये: सृजन्तु  ….... ऊर्वो। आद्र यः करणीय.......  जंवो। आद्र पुष्कर्णिम .......  जंघयो:। तोम आवह …… पड्यो। यः ष्षुचि…… सर्वगड़े।  1. आछान- ऑन हिरण्यवर्णा हरिणी सुवर्ण रजतरत्रजाम। चन्द्र हिरण्यमयी लक्ष्मी जातवेदो म आवह।। इस मंत्र से महालक्ष्मी जी का आह्वान करे।      2. आसान- तामडआवह जातवेदो लक्ष्मी मनपजमिनीम्।  यस्य हिरण्य विन्दे गामश्व पुरुषानहम।। इस मंत्र का आसान समर्पण करे। 3. पाधम- अश्व पूर्णा रथमध्यां हस्तिनद प्रमोदिनीम्। श्रिय देवीमुपह्वये श्री माँ देवीजुशतम।। इस मंत्र से पाध समर्पण करे। 4. अधर्य- ॐ कांसोस्मिता हिरण्य प्रकारमर्दा ज्वलन्तीं तृप्ता पात्यन्तिम। पधे स्थित पढ़वर्ण तमिहोपहवये श्रियम।। इस मंत्र से अध्र्य दे। 5. आचमन- ॐ चन्द्रा प्रभास यश सा ज्वलन्तीं श्रीय लोके देवजुष्टा मुदारम। तां पढ़िनिमि  शरनं प्रप्ध्ये अलक्ष्मीम्रे नशयतात्वावृणोमि।। इस मंत्र से आचमन करावे। अन्नतर पंचामृत से स्नान करावे। 6.  स्नान- ॐ आदित्यवर्णे तपसोधिजातो वनस्पतित्व वृक्षोडथ बिल्वः। तस्य फलानि तपसानुदन्तु मयन्त्रायतश्च बाह्या ड अलक्ष्मी।। इस मंत्र से स्नान करावे। 7.  वस्त्र- ॐ उपैतु मा देवसख: कीर्तिश्च मणिना सहु। प्रादुभूतो सुराष्ट्रेस्मिन कीर्ति वृद्धि ददातुमे।। इस मंत्र से वस्त्र चढ़ावे। 8.  उपवस्त्र- ॐ क्षुप्तिपसामला ज्येष्ठमलक्ष्मी नश्यभीहम। अभूतिमसमृद्धि च सर्व निर्णुद में गृहात।। इस मंत्र से कंचुकी(चोली, ब्लाउज) चढ़ावे। 9. गंध- ॐ गंध द्वारा दुराधर्षां नित्यपुष्टां कृषिनीम्। ईश्वरी सर्वभूतानां तामिहोपहाये क्ष्रीयम।। इस मंत्र से इत्र चन्दन चढ़ावे। 10.  सौभाग्यद्रव्य- ॐ मनसः काममाकुति वाचः सत्यमशीमहि। पशुना रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयता यशः।।इस मंत्र से सौभाग्यद्रव्य(सुहाग चाबड़ा) सिंदूरदी चढ़ावे। 11.  पुष्प- ॐ कर्धभेन प्रजा भुता मयि सम्भ्रम कर्धां। श्रिय वसायमे कुले मातरे पधमलिनीम्।। इस मंत्र से कमल पुष्प चढ़ावे। 12.  धूप- ॐ आप: स्त्रजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वसु में गृहे। निचदेवी मातर श्रिय वासमये कुले।। इस मंत्र से धुप बत्ती दिखावे। 13. दीप- ॐ आद्रा पुष्करिणी पुष्टि सुवर्ण हेममलिनीम्। सूर्य हिरण्यमयी लक्ष्मी जातवेदो ममावह।। इस मंत्र से दीपक दिखावे। 14. ॐ यःशचि प्रयतो भुत्वा जुहूयदाज्यमनवहम। सूक्त पंचदश्र्चच श्री कामः सतत जपेत।। इस मंत्र से नमस्कार करे। पश्चात् यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रिया दीषु। न्यून सम्पूर्णता याति सद्यो वन्द्र तमच्युतम्।। इस मंत्र को कहकर तीन बार ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः। कहे। पश्चात् लक्ष्मी सूक्त का पाठ करे।
  लक्ष्मी सूक्तम:-  सरसिज निलये सरोजहस्ते धवलतरा शुकगंधमाल्य शोभे। भगवती हरिवॉल्भभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरी प्रसिद्ध मह्यम।। धनमग्निर्धनवयु धनसूर्यो धनवासु:। धनमिन्द्रो ब्रहस्पतिर्वरुन धनमष्विनो।। वैनतेय सोम पिबसोभ पिबतु वृत्रहा। सोम धनस्य सोमनो महय ददातु सोमिनः।। धुप अग्रयामी। दीप दर्शयामि। नैवेध निवेदयामि। नैवेध मध्ये पानीयम। ॐ प्रणय स्वाहा, ॐ पानाय स्वाहा, ॐ उदानाय स्वाहा, ॐ व्यानाय स्वाहा, ॐ साभानाय स्वाहा। दि आचमन, उतरपोशन, हस्तप्रक्षालन, मुख प्रक्षालन, आचमनीय च समर्पयामि। मुख वासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि। पुंगीफल महदिव्य नागवल्ली दलेर्युतम्। एलाचूर्णादि संयुक्त ताम्बूल प्रतिगृह्यतां।। फलम समर्पयामि। दक्षिणा समर्पयामि (इस प्रकार नवग्रहादि का भी साथ में पूजन कर ले।)
  इसके पश्चात् महाकाली मसि पात्र (दवात) एवं कलम ले मौली बांधकर कुमकुम से पूजा करे:-  ॐ महाकल्ये नमः। ॐ कलिकेतवं जगन्मात मसिरूपेणावर्तते। उत्पन्न त्वं च लोकानां व्यव्हार प्रसीदये।। ॐ लेखनी निर्माता पूर्व ब्रह्मणा परमेष्ठिना। लोकाना च हितार्थाय, तस्माता पुज्यभयहम्।।
 बही रजिस्टर रोकड खाता पूजनम:- महासरस्वती स्वरूप बहियो में स्वस्तिक (साखिया) करे। सादा पान, गुड, धनिया, चावल, मौली आदि रखकर पूजन करे। ॐ वीणा पुस्तक धारिण्यै नमः। पंजीके सर्वलोकानां निधिरूपेण व्रतसे अतस्त्वां पूजयिष्यामि व्यवहारस्य सिध्ये।। बहियो में श्री गणेशाय नमः लिख कर दिनांक संग्रदी, मासादि लिखे।
ध्यान करे:- ॐ या कुन्देन्दुतुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता। या वीणा वरदण्ड मण्डितकरा या श्वेत पढासना। या ब्र्ह्माच्युतशंकर प्रभृतिभीदेवे: सदा वन्दिता। सा मा पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड़सा पहा।।
 तुला (तराजू) पूजन:- तराजू के मौली बांधकर, स्वस्तिक बनाकर पूजन करे। (यह उन व्यवसायियों के लिए है, जो तराजू का उपयोग करते है )
                     ॐ तुलाये नमः। ॐ नमस्ते सर्वदेवानां शक्तिस्तवेसत्य मश्रिता। साक्षी भुता जगद्धात्री निर्मिता                        विश्वयोनिना।।
  दीपमालिका (दीपक) पूजन- प्रथम दीप ज्योति करे:- किसी पात्र में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपक प्रज्ज्वलित करे, मंत्र बोले- त्वं ज्योति द्रीप ज्योति: स्थित नमः। महालक्ष्मी के समीप उक्त दीपो को रखकर ॐ दीपवत्यै नमः इस नाम मन्त्र से गन्धादि उपचारो द्वारा पूजन करे। दीपमालिकाओं का पूजन कर अपने आचार के अनुसार संतरा, ईख. पानी फल, धान का लावा आदि चढ़ावे। धान के लावे (खिल) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी देवताओ को समर्पित करे। अंत में एक बड़ा दीपक लक्ष्मी जी के सम्मुख रखकर अन्य दीपो से घर को अलंकृत करे। बहार पटाखे छोड़े एवं लक्ष्मी जी के सम्मुख अंदर धूपिये पर अग्नि ज्योति प्रज्वलित करे। फिर सभी घर के सदस्य अधोलिखित ह्रदयस्पर्शी लक्ष्मी प्रार्थना जो रमलशास्त्री पं शंकरलाल जी (पद्मसागर) द्वारा लिखी गयी थी, सस्वर पाठ करे। हो सके तो इस लक्ष्मी स्तुति को कंठस्थ कर ले। नित्य पढ़ सकते है किन्तु दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के पश्चात् इसका अत्यंत भाव के अनुसार पाठ करना चाहिए। महालक्ष्मी जी का प्रसन्न होना सुनिश्चित है।

                                                    यहाँ तक चतुर्थ चरण समाप्त होता है।  
                     
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